Sunday 11 August 2013

विकीलीक्स : पत्रकारिता की ताकत के आगे महाशक्ति बेबस

विकीलीक्स नाम की इंटरनेट वेबसाइट के पतले दुबले ३९ वर्षीय संपादक जूलियन पॉल असांजे की पत्रकारिता ने ये साबित कर दिया है कि कलम वो हथियार है जिसके आगे सारे शस्त्र बौने साबित होते हैं। असांजे ने अमेरिकी राजनयिक के ढाई लाख गुप्त संदेशों को अपने वेबसाइट पर जारी कर महाशक्ति को ऐसी पटखनी दी है कि इससे चोटिल होने के बाद महाशक्ति का संभलना मुश्किल हो रहा है। पिछले १० सालों से अफगानिस्तान में और सात सालों से इराक में लड रहे लडाकों से अमेरिका जितना परेशान नहीं था, आज विकीलीक्स के आगे उससे कई गुणा ज्यादा बेबस नजर आ रहा है। दरअसल इसकी वजह भी अमेरिका के अपने ही सिद्धांत है। अमेरिका अपने आप को दुनियाभर में मानवाधिकार के अगुआ के तौर पर पेश करता है। अमेरिकी लोकतंत्र को भी दुनिया का सबसे खुला लोकतंत्र माना जाता है। बाहरी तौर अमेरिका न सिर्फ अपने देश में, बल्कि दुनियाभर में सूचना का अधिकार (जानने का हक) का समर्थक करता रहा है। पिछले दिनों भारत दौरे पर आए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारत में लागू सूचना का अधिकार कानून का दिल खोलकर प्रशंसा की थी, लेकिन विकीलीक्स के खुलासे ने अमेरिका की कथनी और करनी के अंतर को पूरी दुनिया के सामने खोलकर रख दी है। बडे. बडों की होश उडा देने वाली इस बेवसाइट के जरिए लीक हुए दस्तावेजों से अब ये जग जाहिर हो गया है कि अमेरिका जानने के हक से ज्यादा छिपाने की करतूत में यकीन रखता है। इतना ही नहीं विकीलीक्स ने अमेरिकी राजनयिकों का असली चेहरा भी दुनिया के सामने बेनकाब कर दिया है। दरअसल अमेरिकी राजदूतों ने वैश्विक नेताओं के लिए जिन शब्दों और उपनामों का इस्तेमाल किया है, उससे असभ्यता की बहुत बुरी गंध आती है। इस खुलासे से अमेरिका को शर्मसार होने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय संबंध खराब होने का भय भी सताने लगा है। गुप्त संदेशों के खुलासे से जाहिर हुआ है कि अमेरिकी राजनयिक जब आपस में बातचीत करते हैं तो राजनयिक शिष्टाचार को ताक पर रख देते हैं और विदेशी राजनीतिज्ञों के बारे में अपशब्दों का प्रयोग करने से भी बाज नहीं आते। शीतयुध्द खत्म होने के बाद भी रूस के नेताओं के प्रति अमेरिकी द्वेष में कोई कमीं नहीं आई है और उनके लिए रूस के प्रधानमंत्री पुतिन अल्फा डॉग हैं जो अपने झुण्ड की अगुवाई करता है। रूसी राष्ट्रपति मेदवेदेव को पुतिन का पिछलग्गू बताया गया हैए क्योंकि वह अमेरिकियों की नजर में मरियल और दब्बू है। जर्मन चांसलर भले ही हर बात में अमेरिका की हां में हां मिलाती हों, लेकिन अमेरिकी राजनयिकों की नजर में वह सृजनशील नहीं है तथा जोखिम उठाने से कतराती हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी को नग्न सम्राट और इटली के प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी वाहियात आदमी बताया गया है, जो यूरोप में पुतिन का भोंपू हैंए तो ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद को हिटलर का विशेषण दिया गया है।
विकीलीक्स के खुलासे से केवल अमेरिकी राजनयिकों की बदजुबानी ही जाहिर नहीं होती है बल्कि इसने अमेरिका के कई काले कारनामों पर से भी पर्दा उठा दिया है। लीक दस्तावेज से खुलासा हुआ है कि अमेरिका संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून सहित यूएन नेतृत्व और सुरक्षा परिषद में शामिल चीन, रूस, फ्रांस व ब्रिटेन के प्रतिनिधियों की जासूसी में जुटा है। अमेरिकी प्रशासन के निर्देश पर यूएन के आला अधिकारियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कम्प्यूटर्स और अन्य संचार तंत्र के पासवर्ड इनकी बायोमीट्रिक जानकारियां जुटाने का काम विदेश मंत्रालय के अधिकारी करते थे। ऐसे ही खुफिया निर्देश कांगो, रवांडा, उगांडा और बुरुंडी में अमेरिकी दूतावासों में तैनात अधिकारियों को भेजे गए थे। जुटाए जाने वाली सामग्रियों में बायोमीट्रिक डाटा में डीएनएए फिंगरप्रिट्स और आइरिस स्कैन शामिल हैं और यह सब कुछ अमेरिकी राष्ट्रपति की जानकारी में हो रहा था। इस संबंध में जारी निर्देशों पर कोंडालीजा राइस यजॉर्ज बुश के कायर्काल में विदेश मंत्री और हिलेरी क्लिंटन यमौजूदा विदेश मंत्री के नाम लिखे होते थे।
भारत की उम्मीदों पर पानी फेरने वाला खुलासा भी हुआ है। अभी कुछ ही समय पहले भारत दौरे पर आए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा संयुक्त राष्ट्र में स्थाई सदस्यता की भारत की दावेदारी का समर्थन किए जाने को भारत अपनी बडी जीत के रूप में देख रहा हैए लेकिन अमेरीकी दूतावासों की ओर से भेजे गए संदेशों से यह साफ हो गया कि अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की भारतीय दावेदारी की खिल्ली उडाई थी। विकीलीक्स में सार्वजनिक किए गोपनीय दस्तावेजों के मुताबिक अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन न कहा था कि भारत ने खुद ही अपने आपको संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की दौड में सबसे आगे करार दे दिया है। गौरतलब है कि सार्वजनिक हुए संदेशों में से करीब ५०,००० राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में जारी हुए हैं। लीक दस्तावेजों के अनुसार यूरोप के बेल्जियमए नीदरलैंडए जर्मर्नी और तुर्की में अब भी करीब २०० अमेरिकी परमाणु हथियार तैनात हैं। अमेरिका के ये सबसे पुराने परमाणु हथियार बी.६१ बम १९५० के दशक के हैं जिसे शीत युध्द के दौरान संभावित युध्दक्षेत्रों के समीप ऐसे हथियार तैनात कर नाटो की सुरक्षा के प्रति कटिबध्दता प्रदर्शित करने का प्रयास किया था। वहीं इस रहस्योद्धघाटन से पता चला है कि मुसलमानों का अगुआ होने का दावा करने वाले सऊदी अरब के शाह अब्दुल्लाह ने अमेरिकी राजनयिकों से अपील की थी कि ईरान रूपी सांप का सिर कलम कर दिया जाना चाहिए। सऊदी अरब के शाह का पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को पागल और पाक की बर्बादी की वजह बताने का मामला भी सामने आया है। साथ ही पता चला है कि इस्राइल बिना अमेरिकी मदद के भी ईरान पर हमला करने की तैयारी में है।
विकीलीक्स के इन रहस्योदघाटनों से साख पर बट्टा लगने से चिंतित अमेरिक बार.बार गुप्त दस्तावेजों को लौटाने की अपील कर रहा है और ऐसा न करने पर कानूनी कार्रवाई करने की धमकी भी दे रहा है। इसके साथ ही अमेरिका एक बार फिर मानवीय होने की दुहाई देता दिख रहा है। विकीलीक्स के रहस्योद्धाटन पर तीखी प्रतिक्रिया में अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने आरोप लगाया है कि इस खुलासे से दुनियाभर के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं स्वतंत्र पर्यवेक्षकों और पत्रकारों की सुरक्षा खतरे में पड सकती है। साथ ही इससे विभिन्न देशों के बीच शांतिपूर्ण संबंधों को खराब होने की भी संभावना है लिहाजा इसे साहसिक नहीं कहा जा सकता। मानवता और शांति की दुहाई देने वाला ये वही अमेरिका है जिसने इराक युद्ध के दौरान २ पत्रकारों सहित १२ मासूम लोगों को मौत के घाट उतारने की वीडियों जारी करने के आरोप में अपने २३ वर्षीय पूर्व सैनिक ब्रैडले मैनिंग को वर्जीनिया के क्यानटिको मरीन बेस से सलाखों के पीछे डाल चुकी है जबकि मानवता के इस सपूत ने अपने राष्ट्रीय हितों की पवाह किए बिना इराक युध्द की विभीषिका और अंधाधुंध बमबारी व बल प्रयोग के कारण निर्दोष नागरिकों की मौत से विचलित होकर सच्चाई दुनिया के सामने लाने के इरादे से ये सब किया था। इसके बाद भी विकीलीक्स के खुलासे के प्रभाव पर गहराई से अध्ययन करने पर पता चलता है कि इस रिपोर्ट से अगर दुनिया में अशांति आती भी है तो इसके लिए अमेरिका खुद ही दोषी हो क्योंकि ये उनकी काली करतूतों का ही परिणाम होगा। अगर अमेरिका ऐसा कुछ करता ही नहीं तो विकीलीक्स को खुलासे का मौका कहा से मिलता आखिर लोकतंत्र और खुलेपन का दम भरने के बाद ऐसा किया ही क्यों जिससे कि वैश्विक शांति खतरे में पड जाए जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गुप्त संधियों को सही नहीं माना जाता है क्योंकि इस तरह की संधियों से अविश्वास को बढावा मिलता है और संदेह की आड में गुप्त अंतरराष्ट्रीय संधियों और गठबंधनों का जाल फैलने लगता है। इसके बाद एक छोटी सी चिंगारी भी वैश्विक शांति को खतरे में डाल देती है। द्वितीय विश्व युद्ध को अंजान तक पहुंचाने में गुप्त संधियों का बहुत बडा योगदान रहा है। यही वजह है कि जब कभी दो देशों के नेता मिलते हैं तो वार्ता के बाद प्रेस ब्रीफ करते हैंए ताकि जिन मुद्दों पर बात हुई है या सहमति बनी है उसे दुनिया के सामने रखी जा सकें। इसके बाद भी दुनिया को खतरे में डालने वाली गुप्त कूटनीति को कहीं से भी उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
विकीलीक्स ने अपना पक्ष रखते हुए साफ कर दिया है कि लोगों को जोखिम में डालने की हमारी कोई इच्छा नहीं है और न ही हम अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा को नुकसान पहुंचाने का इरादा रखते हैं। इसके साथ ही अमेरिका पर आरोप लगाया है कि उसने ही रचनात्मक वार्ता की पेशकश को ठुकरा दिया है। विकीलीक्स के मुताबिक दरअसल अमेरिकी सरकार खुलेपन के पक्ष में नहीं है और मानवाधिकार उल्लंघन तथा अन्य आपराधिक चीजों को दबाने की कोशिश कर रही है। लाख दबाव और धमकियों के बाद भी विकीलीक्स ने बेबाक कहा है कि जब तक अमेरिका हमारी पेशकश पर बातचीत के लिए तैयार नहीं होता हैए तब तक हम गुप्त सामग्रियों को जारी करते रहेगे।
विकीलीक्स के अपने विचार पर अडिग रवैये से अमेरीकियों की खिसियाहट बढती जा रही है। कलम के सिपाहियों के खिलाफ हथियार न उठाने पर ओबामा प्रशासन बेबस है। वहीं विकीलीक्स के दबंग पत्रकारिता की धार को सुस्त करने के लिए जिस अमेरिकी अधिकारी और नेता को जो मन में आ रहा है बके जा रहे हैं। कोई विकीलीक्स को आतंकी संगठन घोषित करने की मांग कर रहा है तो कोई उनके खिलाफ अलकायदा और तालिबान जैसी कार्रवाई की बात कर रहा है। रिपब्लिकन पार्टी की ओर से २०१२ की राष्ट्रपति पद की संभावित उम्मीदवार सारा पॉलिन ने ओबामा प्रशासन से पूछा है कि विकीलीक्स के मालिक जूलियन असांजे के खिलाफ इस अत्यधिक संवेदनशील दस्तावेज को बांटने के मामले में क्या कार्रवाई हुई है क्या हम इसके खिलाफ उतनी तेजी से कारर्वाई नहीं कर सकते जितनी तेजी से अल.कायदा या तालिबान नेताओं के खिलाफ करते हैं वहीं इस पर्दापाश से नाराज अमेरिका के सभी प्रमुख दलों के सांसदों ने ओबामा प्रशासन से कहा है कि प्रशासन हर संभव कानूनी उपाय करके वेबसाइट को बंद कर दे। सीनेट की विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष सीनेटर जॉन कैरी की दलील है कि इन परिस्थितियों में गोपनीय दस्तावेजों को जारी करना पूरी तरह गलत काम है क्योंकि ये बहुत सी जिंदगियों को खतरे में डाल सकता है। इसके साथ ही उन्होंने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मामला भी मानने से इनकार करते हुए कहा कि यह पेंटागन से जुडे दस्तावेजों को जारी करने के समान नहीं है बल्कि यह दस्तावेज वतर्मान समय में जारी मामलों के विश्लेषण से जुडे हैंए जिन्हें गोपनीय बनाए रखना बहुत ही जरूरी है।
पोल खुलने और दोहरा चरित्र सामने आने की बौखलाहट में अमेरिकी नेता भले ही विकीलीक्स को बंद करने की मांग कर रहे हैंए लेकिन आज के तकनीकी युग में सूचना के प्रवाह को रोक पाना शायद ही किसी के बस की बात हो। यूं तो खुलासे से पहले ही विकीलीक्स की साइट को हैक कर लिया गया था लेकिन विकीलीक्स ने पहले से तय समय पर दस्वाजों को जारीकर पत्रकारिता की ताकत को सीमित करने वालों को करारा तमाचा मारा है। दरअसल अब वो जमाना नहीं है कि किसी की प्रेस जब्त कर ली गई तो पकाशन बंद हो जाएगा। आज के मौजूदा समय को सूचना प्रौद्योगिकी का युग कहा जाता है। इस युग में न तो अब कलम की ही जरूरत रह गई है और न ही कागज के विशाल गट्ठे की। अगर जरूरत है तो तकनीक और कौशल की जिसका इस्तेमाल कर आज व्यक्ति सडक किनारे पार्क में बैठे.बैठे या फिर रास्ते पर चलते फिरते भी अपनी बात दुनिया तक पहुंचा कर सूचना की सुनामी ला सकता है। विकीलीक्स के संपादक असांजे तो इस मामले में बहुत ही आगे है। वे स्वयं एक कंप्यूटर हैकर रह चुके हैं। गुप्त सूचनाएं हासिल करना और फिर लोगों तक पहुंचाकर तहलका मचाना उनका शगल रहा है। इसी जुनून को पूरा करने के लिए असांजे ने कंप्यूटर कोडिंग के कुछ महारथियों के साथ मिलकर २००६ में विकीलीक्स की स्थापना की। इनका मकसद कंप्यूटर हैकिंग द्वारा हासिल किए गए दस्तावेजों को जारी करना था। अपनी वेबसाइट विकीलीक्स के जरिए इराक.अफानिस्तान युध्द से संबंधित वॉर लॉग और अमेरिका से जुडे खुफिया दस्तावेजों को जारी कर जूलियन असांजे दुनिया भर में मशहूर हो गए है। दुनियाभर में इस वक्त उनके लाखों प्रशंसक हैं इसके साथ ही विश्व के कई देश अब उन्हें अपने रास्ते की रुकावट भी माने लगे हैं। अमेरिकी गुप्त सूचनाओं की सुनामी लाने के बाद अमेरिका के परम मित्र और सहयोगी कनाडाई प्रधानमंत्री के सलाहकार प्रोफेसर टॉम प्लेनेगन ने बौखलाहट में एक टीवी कार्यक्रम में खुलेआम ओबामा प्रशासन को सलाह दी है कि विकीलीक्स के संपादक असांजे को ड्रोन हमले या फिर किसी और तरीके से कत्ल कर इससे पीछा छुडाना चाहिए। दरअसल ये पश्चमी देशों का कोई नया चेहरा नहीं है। जब मीडिया उनके शत्रुओं की पोल खोलता है तब वे मीडिया की आजादी की बात करते हैए लेकिन जब वहीं मीडिया उनकी पोल खोलता है तो इस तरह की बौखलाहट सामने आती है। इराक युध्द में जब अल.जजीरा ने भी अमेरिका की बर्बरता की पोल खोली थी तो तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने दोहा स्थित अल.जजीरा के मुख्यालय पर हमला करने का फैसला किया थाए लेकिन बाद में ब्रिटिश पीएम टोनी ब्लेयर की सलाह पर इस फैसले को रद्द कर दिया गया।
विकीलीक्स के संपादक जो काम कर रहे है उसके क्या खतरे हैं इससे वे भली.भांति परिचित है और इन खतरों का सामना करने के लिए वे हर दम तैयार रहते हैं। खुद असांजे का दावा है कि वे यायावर जीवन जीते हैं। आमतौर पर उनके पास दो बैग रहते हैं। एक बैग में उनके कपडे और दूसरे में उनका कंप्यूटर यानी लैपटॉप होता है और खतरा पैदा होने पर वे अपने संसाधनों और टीमों को भी अलग.अलग जगह ले जाते हैंए ताकि कानूनी और आपराधिक हमलों से बचा जा सके । जहां भी उन्हें युध्द संबंधी सूचना मिलने की संभावना रहती है वे चल पडते हैं। असांजे के अलावा वेबसाइट को चलाने के लिए नौ सदस्यों की एक सलाहकार समिति भी है और दुनिया भर में करीब आठ सौ स्वयंसेवक सूचनाएं पहुंचाते हैं। जहां तक वेबसाइट की सूचनाओं के स्रोत का सवाल है तो कोई भी व्यक्ति इसे सूचना उपलब्ध करा सकता हैए लेकिन वेबसाइट में पत्रकारों और तकनीकी विशेषज्ञों की एक टीम अपने स्तर से जांच पडताल के बाद उसे प्रकाशित करती है। इसके बावजूद वेबसाइट को कई बार कानूनी चुनौतियों का भी सामना करना पडा है। साल २००८ में स्विस बैंक जूलियस बेयर ने वेबसाइट के खिलाफ मुकदमा जीत लिया था और अदालत ने वेबसाइट को बंद करने का फरमान जारी किया था। इसके बाद भी वेबसाइट विभिन्न नामों और विभिन्न लोगों के माध्यम से अपना काम करती रही। असांजे कहते है कि अब हम ये सब करना सीख गए हैं। उनका का दावा है कि आज तक हमने अपने किसी स्रोत को नहीं खोया है। इसके साथ ही गुप्त दस्तावेदों को भी सहेजने का उनका अनोखा तरीका है।
Courtsy: मो. इफ्तिखार अहमद

मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी ने लिखा था, खींचो न कमानों को न तलवार निकालो, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो। विकीलीक्स पोर्टल ने सुपर पॉवर अमेरिका को बगलें झांकने के लिए मजबूर कर एक बार फिर पत्रकारिता की ताकत का एहसास करा दिया है।

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