Wednesday 23 April 2014

उत्तराखण्ड में पत्रकारिता का इतिहास

त्तराखण्ड में पत्रकारिता का गौरवपूर्ण अतीत रहा है। आर्थिक रूप से पिछड़ा होने के बावजूद उत्तराखण्ड में बौद्धिक सम्पदा का खजाना हमेशा लबालव रहा। देश में पत्रकारिता का बीज जैसे ही अंकुरित होना शुरू हुआ, उत्तराखण्ड में भी उसका जन्म और विकास शुरू हो गया। बीसवीं सदी के आरम्भ से ही उत्तराखण्ड के अखबारों में सुधारों की छटपटाहट, विचारों की स्पष्टता और आजादी की अकुलाहट दृष्टिगोचर होने लगी थी। राष्ट्रीय आन्दोलन के उभार के साथ-साथ स्थानीय पत्रकारिता में अधिक आक्रामकता, अधिक आक्रोश और ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेंकने की प्रबल इच्छा साफ-साफ दिखाई देने लगी थी। 

उत्तराखण्ड में पत्रकारिता के विकास की प्रक्रिया भारतीय राष्ट्रवाद के विकास की प्रक्रिया के समानान्तर रही है। जब यहॉं 1815 में गोरखों के क्रूर एवं अत्याचारी शासन का अन्त ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा हुआ तो शुरूआत में अंग्रेजों का स्वागत हुआ, क्योंकि तब जनता गोरखों के क्रूर एवं अत्याचारी शासन से त्रस्त थी। हांलाकि इस बीच भी 1815 से लेकर 1857 तक कंपनी के शासन के दौर मेें भी उत्तराखण्ड के कवियों मौलाराम (1743-1833), गुमानी (1779-1846) एवं कृष्णा पाण्डे (1800-1850) आदि की कविताओं में असन्तोष के बीज मिलते हैं। 
दिन-दिन खजाना का भार बोकना लै, शिब-शिब, चूली में ना बाल एकै कैका- गुमानी (गोरखा शासन के खिलाफ)
साथ ही उत्तराखण्ड में 1857 के स्वाधीनता संग्राम के समय तथा इससे पूर्व भी औपनिवेशिक अवमानना के प्रमाण मिलते हैं। 1857 के बाद सर हेनरी रैमजे के दौर (1856-1884) में यहां औपनिवेशिक शिक्षा का आरम्भ हुआ और जन साधारण पाश्चात्य विचारों एवं नवीनतम राजनीतिक अवधारणाओं के सम्पर्क में आया तथा उदार जागृति की आधारशिला रखने वाले तत्वों का आविर्भाव हुआ। ये तत्व थे- स्थानीय संगठन तथा स्थानीय पत्रकारिता। 

स्थानीय पत्रकारिता ने बाद के वर्षों में उत्तराखण्ड के विभिन्न स्थानीय संघर्षों का स्वाधीनता संग्राम से एकीकरण कर देश के अन्य हिस्सों के आंदोलनों एवं वहां के समाज, संस्कृति से जनता को परिचित कराने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाई। 

उत्तराखण्ड की पत्रकारिता का उद्भव एवं विकासः 

यद्यपि 1842 में एक अंग्रेज व्यवसायी और समाजसेवी जान मेकिनन ने अंग्रेजी भाषा में मसूरी से ‘‘द हिल्स’’ नामक समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू कर दिया था, परन्तु 1868 में नैनीताल से प्रकाशित होने वाला ‘‘समय विनोद’’ उत्तराखण्ड से निकलने वाला पहला देशी (हिन्दी-उर्दू) पत्र था। पत्र के संपादक-स्वामी जयदत्त जोशी वकील थे। पत्र पाक्षिक था तथा नैनीताल प्रेस से छपता था। 1877 के आसपास यह समाचार पत्र बन्द हो गया। पत्र ने सरकारपरस्त होने के बावजूद ब्रिटिश राज में चोरी की घटनाएं बढ़ने, भारतीयों के शोषण, बिना वजह उन्हें पीटने, उन पर अविश्वास करने पर अपने विविध अंकों में चिंता व्यक्त की थी।  

अल्मोड़ा अखबारः
उत्तराखण्ड ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश में पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन के क्षेत्र में 1871 में अल्मोड़ा से प्रकाशित ‘‘अल्मोड़ा अखबार’’ का विशिष्ट स्थान है। इसका सरकारी रजिस्ट्रेशन नंबर 10 था और यह प्रमुख अंग्रेजी पत्र ‘‘पायनियर’’ का समकालीन था। इसके 48 वर्ष के जीवनकाल में इसका संपादन क्रमशः बुद्धिबल्लभ पंत, मुंशी इम्तियाज अली, जीवानन्द जोशी, सदानन्द सनवाल, विष्णुदत्त जोशी तथा 1913 के बाद बद्रीदत्त पाण्डे ने किया। 
प्रारम्भिक चरण में ‘‘अल्मोड़ा अखबार’’ सरकारपरस्त था फिर भी इसने औपनिवेशिक शासकों का ध्यान स्थानीय समस्याओं के प्रति आकृष्ट करने में सफलता पाई। कभी पाक्षिक तो कभी साप्ताहिक रूप से निकलने वाले इस पत्र ने अंग्रेजों के अत्याचारों से त्रस्त पर्वतीय जनता की मूकवाणी को अभिव्यक्ति देने का कार्य किया। इस पत्र का मुख्य विषय आंचलिक समस्याएं कुली बेगार, जंगल बंदोबस्त, बाल शिक्षा, मद्य निषेध, स्त्री अधिकार आदि रहे। 
1913 में बद्रीदत्त पाण्डे के ‘‘अल्मोड़ा अखबार’’ के संपादक बनने के बाद इस पत्र का सिर्फ स्वरूप ही नहीं बदला वरन् इसकी प्रसार संख्या भी 50-60 से बढकर 1500 तक हो गई। बेगार, जंगलात, स्वराज, स्थानीय नौकरशाही की निरंकुशता पर भी इस पत्र में आक्रामक लेख प्रकाशित होने लगे। अन्ततः 1918 में ‘‘अल्मोड़ा अखबार’’ सरकारी दबाव के फलस्वरूप बन्द हो गया। बाद मे इसकी भरपाई 1918 में बद्रीदत्त पाण्डे के संपादकत्व में ही निकले पत्र ‘‘शक्ति’’ ने पूरी की। शक्ति पर शुरू से ही स्थानीय आक्रामकता और भारतीय राष्ट्रवाद दोनों का असाधारण असर था। 
कहते हैं कि 1930 में अंग्रेज अधिकारी लोमस द्वारा शिकार करने के दौरान मुर्गी की जगह एक कुली की मौत हो गई। अल्मोड़ा अखबार ने इस समाचार को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। इस समाचार को प्रकाशित करने पर अल्मोड़ा अखबार को अंग्रेज सरकार द्वारा बंद करा दिया गया। इस बाबत गढ़वाल से प्रकाशित समाचार पत्र-गढ़वाली ने समाचार छापते हुए सुर्खी लगाई थी-'एक गोली के तीन शिकार-मुर्गी, कुली और अल्मोड़ा अखबार।'

वर्ष 1893-1894 में अल्मोड़ा से ‘‘कूर्मांचल समाचार’’, 1902 में लैंसडाउन से गिरिजा दत्त नैथाणी द्वारा संपादित मासिक पत्र ‘‘गढ़वाल समाचार’’ और 1905 में देहरादून से प्रकाशित ‘‘गढ़वाली’’ भी अपनी उदार और नरम नीति के बावजूद औपनिवेशिक शासन की गलत नीतियों का विरोध करते रहे थे। 

शक्ति: 
‘‘शक्ति’’ ने न सिर्फ स्थानीय समस्याओं को उठाया वरन् इन समस्याओं के खिलाफ उठे आन्दोलनों को राष्ट्रीय आन्दोलन से एकाकार करने में भी उसका महत्वपूर्ण योगदान रहा। ‘‘शक्ति’’ की लेखन शैली का अन्दाज 27 जनवरी 1919 के अंक में प्रकाशित निम्न पंक्तियों से लगाया जा सकता है:- 
‘‘आंदोलन और आलोचना का युग कभी बंद न होना चाहिए ताकि राष्ट्र हर वक्त चेतनावस्था में रहे अन्यथा जाति यदि सुप्तावस्था को प्राप्त हो जाती है तो नौकरशाही, जर्मनशाही या नादिरशाही की तूती बोलने लगती है।’’ 

शक्ति ने एक ओर बेगार, जंगलात, डोला-पालकी, नायक सुधार, अछूतोद्धार तथा गाड़ी-सड़क जैसे आन्दोलनों को इस पत्र ने मुखर अभिव्यक्ति दी तो दूसरी ओर असहयोग, स्वराज, सविनय अवज्ञा, व्यक्तिगत सत्याग्रह, भारत छोड़ो आन्दोलन जैसी अवधारणाओं को ग्रामीण जन मानस तक पहुॅचाने का प्रयास किया, साथ ही साहित्यिक-सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों को भी मंच प्रदान किया। इसका प्रत्येक संपादक राष्ट्रीय संग्रामी था। बद्रीदत्त पाण्डे, मोहन जोशी, दुर्गादत्त पाण्डे, मनोहर पंत, राम सिंह धौनी, मथुरा दत्त त्रिवेदी, पूरन चन्द्र तिवाड़ी आदि में से एक-दो अपवादों को छोड़कर ‘‘शक्ति’’ के सभी सम्पादक या तो जेल गये थे या तत्कालीन प्रशासन की घृणा के पात्र बने। 
‘आंदोलन और आलोचना का युग कभी बंद न होना चाहिए ताकि राष्ट्र हर वक्त चेतनावस्था में रहे अन्यथा जाति यदि सुसुप्तावस्था को प्राप्त हो जाती है तो नौकरशाही, जर्मनशाही या नादिरशाही की तूती बोलने लगती है।’’ - शक्ति: 27 जनवरी 1919। 

गढ़वालीः 
उत्तराखण्ड में पत्रकारिता के विकास के क्रम में देहरादून से प्रकाशित ’’गढ़वाली’’ (1905-1952) गढ़वाल के शिक्षित वर्ग के सामूहिक प्रयासों द्वारा स्थापित एक सामाजिक संस्थान था। यह उत्तराखण्ड मंे उदार चेतना का प्रसार करने वाले तत्वों में से एक अर्थात् उदार सरकारपरस्त संगठनों के क्रम में स्थापित ‘‘गढ़वाल यूनियन’’ (स्थापित 1901) का पत्र था। इसका पहला अंक मई 1905 को निकला जो कि मासिक था तथा इसके पहले सम्पादक होने का श्रेय गिरिजा दत्त नैथानी को जाता है। 
’’गढ़वाली’’ के दूसरे सम्पादक तारादत्त गैरोला बने। यद्यपि ‘‘गढ़वाली’’ का प्रकाशन एक सामूहिक प्रयास था, परन्तु इस प्रयास को सफल बनाने में विश्वम्भर दत्त चंदोला की विशेष भूमिका थी। 1916 से 1952 तक गढ़वाली का संपादन-संचालन का सारा भार विश्वम्भर दत्त चंदोला के कंधों पर ही रहा था। 47 साल तक जिन्दा रहने वाले इस पत्र ने अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं से लेकर विविध राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विषयों पर प्रखरता के साथ लिखा तथा अनेक आन्दोलनों की पृष्ठभूमि तैयार की। देखिये ‘‘गढ़वाली’’ की लेखनी का एक अंशः- 
‘‘कुली बर्दायश की वर्तमान प्रथा गुलामी से भी बुरी है और सभ्य गवरमैण्ट के योग्य नहीं, कतिपय सरकारी कर्मचारियों की दलील है, कि यह प्राचीन प्रथा अर्थात दस्तूर है, किंतु जब यह दस्तूर बुरा है तो चाहे प्राचीन भी हो, निन्दनीय है और फौरन बन्द होना चाहिए। क्या गुलामी, सती प्रथा प्राचीन नहीं थीं।’’ 
गढ़वाली ने गढ़वाल में कन्या विक्रय के विरूद्ध आंदोलन संचालित किया, कुली बेगार, जंगलात तथा गाड़ी सड़क के प्रश्न को प्रमुखता से उठाया, टिहरी रियासत में घटित रवांई कांड (मई 1930) के समय जनपक्ष का समर्थन कर उसकी आवाज बुलंद की, जिसकी कीमत उसके सम्पादक विश्वम्भर दत्त चंदोला को जेल जाकर चुकानी पड़ी। गढ़वाल में वहां की संस्कृति एवं साहित्य का नया युग ‘‘गढ़वाली युग’’ आरम्भ करना ‘‘गढ़वाली’’ के जीवन के शानदार अध्याय हैं। 

पत्रकारिता के इसी क्रम मे पौड़ी से सदानन्द कुकरेती ने 1913 में ‘‘विशाल कीर्ति’’ का प्रकाशन किया और ‘‘गढ़वाल समाचार’’ तथा ‘‘गढ़वाली’’ के सम्पादक रहे गिरिजा दत्त नैथाणी ने लैंसडाउन से ‘‘पुरूषार्थ’’ (1918-1923) का प्रकाशन किया। इस पत्र ने भी स्थानीय समस्याओं को आक्रामकता के साथ उठाया। स्थानीय राष्ट्रीय आन्दोलन के संग्रामी तथा उत्तराखण्ड के प्रथम बैरिस्टर मुकुन्दीलाल ने जुलाई 1922 में लैंसडाउन से ‘‘तरूण कुमाऊॅ’’ (1922-1923) का प्रकाशन कर राष्ट्रीय तथा स्थानीय मुद्दों को साथ-साथ अपने पत्र में देने की कोशिश की। इसी क्रम में 1925 में अल्मोड़ा से ‘‘कुमाऊॅ कुमुद’’ का प्रकाशन हुआ। इसका सम्पादन प्रेम बल्लभ जोशी, बसन्त कुमार जोशी, देवेन्द्र प्रताप जोशी आदि ने किया। शुरू में इसकी छवि राष्ट्रवादी पत्र की अपेक्षा साहित्यिक अधिक थी। 

स्वाधीन प्रजाः 
उत्तराखण्ड की पत्रकारिता के इतिहास में अल्मोड़ा से प्रकाशित ‘‘स्वाधीन प्रजा’’ (1930-1933) का भी महत्वपूर्ण स्थान है। इसके सम्पादक प्रखर राष्ट्रवादी नेता विक्टर मोहन जोशी थे। अल्पजीवी पत्र होने के बावजूद यह पत्र अत्यधिक आक्रामक सिद्ध हुआ। पत्र ने अपने पहले अंक में ही लिखा- 
‘‘भारत की स्वाधीनता भारतीय प्रजा के हाथ में हैं। जिस दिन प्रजा तड़प उठेगी, स्वाधीनता की मस्ती तुझे चढ़ जाएगी, ग्राम-ग्राम, नगर-नगर देश प्रेम के सोते उमड़ पड़ेंगे तो बिना प्रस्ताव, बिना बमबाजी या हिंसा के क्षण भर में देश स्वाधीन हो जाएगा। प्रजा के हाथ में ही स्वाधीनता की कुंजी है।’’ 

इसी क्रम में 1939 में पीताबर पाण्डे ने हल्द्वानी से ‘‘जागृत जनता’’ का प्रकाशन किया। अपने आक्रामक तेवरों के कारण 1940 में इसके सम्पादक को सजा तथा 300 रू0 जुर्माना किया गया। भक्तदर्शन तथा भैरव दत्त धूलिया द्वारा लैंसडाउन से 1939 से प्रकाशित ‘‘कर्मभूमि’’ पत्र ने ब्रिटिश गढ़वाल तथा टिहरी रियासत दोनों में राजनैतिक, सामाजिक, साहित्यिक चेतना फैलाने का कार्य किया। गढ़वाल के प्रमुख कांग्रेसी नेता भैरव दत्त धूलिया, भक्तदर्शन, कमलसिंह नेगी, कुन्दन सिंह गुसांई, श्रीदेव सुमन, ललिता प्रसाद नैथाणी, नारायण दत्त बहुगुणा इसके सम्पादक मण्डल से जुड़े थे। ‘‘कर्मभूमि’’ को समय-समय पर ब्रिटिश सरकार तथा टिहरी रियासत दोनांे के दमन का सामना करना पड़ा। 1942 में इसके संपादक भैरव दत्त धूलिया को चार वर्ष की नजरबंदी की सजा दी गयी। 

उत्तराखंड का पहला हिंदी दैनिक अखबार होने का गौरव नैनीताल से प्रकाशित ‘पर्वतीय’ को जाता है। 1953 में शुरू हुए इस समाचार पत्र के संपादक विष्णु दत्त उनियाल थे। गौरतलब है कि नैनीताल से ही 1868 में उत्तराखण्ड से निकलने वाला पहला देशी (हिन्दी-उर्दू) पत्र ‘‘समय विनोद’’ प्रकाशित हुआ था।

उत्तराखण्ड में दलित पत्रकारिताः
उत्तराखण्ड में दलित पत्रकारिता का उदय 1935 में अल्मोड़ा से प्रकाशित ‘‘समता’’ (1935 से लगातार) पत्र से हुआ। इसके संपादक हरिप्रसाद टम्टा थे। यह पत्र राष्ट्रीय आन्दोलन के युग मंे दलित जागृति का पर्याय बना। इसके संपादक सक्रिय समाज सुधारक थे। 

Friday 18 April 2014

प्रभावी समाचार लेखन के गुर

परिचयः 
मनुष्य एक सामाजिक और जिज्ञासु प्राणी है। वह जिस समूह, समाज या वातावरण में रहता है उस के बारे में और अधिक जानने को उत्सुक रहता है। अपने आसपास घट रही घटनाओं के बारे में जानकर उसे एक प्रकार के संतोष, आनंद और ज्ञान की प्राप्ति होती है, और कहीं न कहीं उसे उसकी इसी जिज्ञासा ने आज सृष्टि का सबसे विकसित प्राणी भी बनाया है। प्राचीन काल से ही उसने सूचनाओं को यहां से वहां पहुंचाने के लिए संदेशवाहकों, तोतों व घुड़सवारों की मदद लेने, सार्वजनिक स्थानों पर संदेश लिखने जैसे तमाम तरह के तरीकों, विधियों और माध्यमों को खोजा और विकसित किया। पत्र के जरिये समाचार प्राप्त करना भी एक पुराना माध्यम है जो लिपि और डाक व्यवस्था के विकसित होने के बाद अस्तित्व में आया, और आज भी प्रयोग किया जाता है। समाचार पत्र रेडियो टेलिविजन, मोबाइल फोन व इंटरनेट समाचार प्राप्ति के आधुनिकतम संचार माध्यम हैं, जो छपाई, रेडियो व टेलीविजन जैसी वैज्ञानिक खोजों के बाद अस्तित्व में आए हैं।

समाचार की परिभाषा

सामान्य मानव गतिविधियों से इतर जो कुछ भी नया और खास घटित होता है, समाचार कहलाता है। मेले, उत्सव, दुर्घटनाएं, विपदा, सरकारी बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी सरकारी सुविधाओं का न मिलना सब समाचार हैं। विचार घटनाएं और समस्याओं से समाचार का आधार तैयार होता है। किसी भी घटना का अन्य लोगों पर पड़ने वाले प्रभाव और इसके बारे में पैदा होने वाली सोच से समाचार की अवधारणा का विकास होता है। किसी भी घटना विचार और समस्या से जब काफी लोगों का सरोकार हो तो यह कह सकते हैं कि यह समाचार बनने योग्य है।
समाचार किसी बात को लिखने या कहने का वह तरीका है जिसमें उस घटना, विचार, समस्या के सबसे अहम तथ्यों या पहलुओं तथा सूचनाओं और भविष्य में पड़ने वाले प्रभावों को व्यवस्थित तरीके से लिखा या बताया जाता है। इस शैली में किसी घटना का ब्यौरा कालानुक्रम के बजाये सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना से शुरु होता है।

कुछ परिभाषाएंः      
  • किसी नई घटना की सूचना ही समाचार है: डॉ निशांत सिंह
  • किसी घटना की नई सूचना समाचार है: नवीन चंद्र पंत
  • वह सत्य घटना या विचार जिसे जानने की अधिकाधिक लोगों की रूचि हो: नंद किशोर त्रिखा
  • किसी घटना की असाधारणता की सूचना समाचार है: संजीव भनावत
  • ऐसी ताजी या हाल की घटना की सूचना जिसके संबंध में लोगों को जानकारी न हो: रामचंद्र वर्मा

इसके अलावा भी समाचार को निम्न प्रकार से भी परिभाषित किया जाता हैः
  • जो हमारे चारों ओर घटित होता है, और हमें प्रभावित करता है, वह समाचार है।
  • जिस घटना को पत्रकार लाता व लिखता तथा संपादक समाचार पत्र में छापता या दिखाने योग्य समझ कर टीवी में प्रसारित करता है, वह समाचार है। (क्योंकि यदि वह छपा ही नहीं या टीवी पर दिखाया ही नहीं गया तो फिर समाचार कहां रहा।)
  • समाचार जल्दी में लिखा गया इतिहास है। कोई भी समाचार अगला समाचार आने पर इतिहास बन जाता है।
  • समाचार सत्य, विश्वसनीय तथा कल्याणकारी होना चाहिए। जो समाज में दुर्भावना फैलाता हो अथवा झूठा हो, समाचार नहीं हो सकता। सत्यता समाचार का बड़ा गुण है।
  • समाचार सूचना देने, शिक्षित करने और मनोरंजन करने वाला भी होना चाहिए।
  • समाचार रोचक होना चाहिए। उसे जानने की लोगों में इच्छा होनी चाहिए।
  • समाचार अपने पाठकों-श्रोताओं की छह ककार (5W & 1H, What, when, where, why, who and How) (क्या हुआ, कब हुआ, कहां हुआ, क्यों हुआ किसके साथ हुआ और कैसे हुआ,) की जिज्ञासाओं का शमन करता हो तथा नए दौर की नई जरूरतों के अनुसार भविष्य के संदर्भ में एक नए सातवें ककार-आगे क्या (6th W-What next) के बारे में भी मार्गदर्शन करे। 
समाचार का सीधा अर्थ है-सूचना। मनुष्य के आस-पास और चारों दिशाओं में घटने वाली सूचना। समाचार को अंग्रेजी के न्यूज का हिन्दी समरुप माना जाता है। हालांकि ‘न्यूज’ (NEWS) शब्द इस तरह तो नहीं बना है, परंतु इत्तफाकन ही सही इसका अर्थ और प्रमुख कार्य चारों दिशाओं अर्थात नॉर्थ, ईस्ट, वेस्ट और साउथ की सूचना देना भी है। 

समाचार को बड़ा या छोटा बनाने वाले तत्वः

अक्सर हम समाचारों के छोटा या बढ़ा छपने पर चर्चा करते हैं। अक्सर हमें लगता है कि हमारा समाचार छपना ही चाहिए, और वह भी बड़े आकार में। साथ ही यह भी लगता है कि खासकर हमारी अरुचि के समाचार बेकार ही आवश्यकता से बड़े आकारों या बड़ी हेडलाइन में छपे होते हैं।
आइए जानते हैं क्या है समाचारों के बड़ा या छोटा छपने का आधार। इससे पूर्व मेरी 1995 के दौर में लिखी एक कुमाउनी कविता ‘चिनांण’ यानी चिन्ह देखेंः 

आजा्क अखबारों में छन खबर
आतंकवाद, हत्या, अपहरण, 
चोर-मार, लूट-पाट, बलात्कार
ठुल हर्फन में
अर ना्न हर्फन में
सतसंग, भलाइ, परोपकार।

य छु पछ्यांण
आइ न है रय धुप्प अन्यार
य न्है, सब तिर बची जांणौ्क निसांण
य छु-आ्जि मस्त
बचियक चिनांड़।

किलैकि ठुल हर्फन में
छपनीं समाचार
अर ना्न हर्फन में-लोकाचार।

य ठीक छु बात
समाचार बणनईं लोकाचार
अर लोकाचार-समाचार।
जसी जाग्श्यरा्क जागनाथज्यूक
हातक द्यू
ऊंणौ तलि हुं। 

संचि छु हो,
उरी रौ द्यो,
पर आ्इ लै छु बखत।
जदिन समाचार है जा्ल पुर्रै लोकाचार
और लोकाचार छपा्ल ठुल हर्फन में
भगबान करों
झन आवो उ दिन कब्भै। 

हिन्दी भावानुवाद

आज के अखबारों में हैं खबर
आतंकवाद, हत्या, अपहरण
चोरी, डकैती व बलात्कार की
मोटी हेडलाइनों में
और छोटी खबरें
सतसंग, भलाई व परोपकार की।

यह पहचान है
अभी नहीं घिरा है धुप्प अंधेरा।
यह नहीं है पहचान, सब कुछ खत्म हो जाने की
यह है अभी बहुत कुछ 
बचे होने के चिन्ह।

क्योंकि मोटी हेडलाइनों में छपते हैं समाचार
और छोटी खबरों में लोकाचार।
हां यह ठीक है कि 
समाचार बन रहे लोकाचार
जैसे जागेश्वर में जागनाथ जी की मूर्ति के हाथों का दीपक
आ रहा है नींचे की ओर।

सच है, 
आने वाली है जोरों की बारिश प्रलय की
पर अभी भी समय है
जब समाचार पूरी तरह बन जाऐंगे लोकाचार, 
और लोकाचार छपेंगे मोटी हेडलाइनों में।
ईश्वर करें
ऐसा दिन कभी न आऐ।

यानी उस दौर में समाचारों के कम ज्ञान के बावजूद कहा गया है कि समाचार यानी कुछ अलग होने वाली गतिविधियां बड़े आकार में सामान्य गतिविधियां लोकाचार के रूप में छोटे आकार में छपती हैं। इसके अलावा भी निम्न तत्व हैं जो किसी समाचार को छोटा या बड़ा बनाते हैं। इसमें इस बात से भी फर्क नहीं पड़ता है कि उस समाचार में शब्द कितने भी सीमित क्यों ना हों। प्रथम पेज पर कुछ लाइनों की खबर भी बड़ी खबर कही जाती है। वहीं एक या डेड़-दो कालम की खबर भी ‘बड़ी’ होने पर पूरे बैनर यानी सात-आठ कालम में भी पूरी चौड़ी हेडिंग तथा महत्वपूर्ण बिंदुआंे की सब हेडिंग या क्रासरों के साथ लगाई जा सकती है।
  1. प्रभाव-समाचार जितने अधिक लोगों से संबंधित होगा या उन्हें प्रभावित करेगा, उतना ही बड़ा होगा। किसी दुर्घटना में हताहतों की संख्या जितनी अधिक होगी, अथवा किसी दल, संस्था या समूह में जितने अधिक लोग होंगे, उससे संबंधित उतना ही बड़ा समाचार बनेगा।
  2. निकटता-समाचार जितना निकट से संबंधित होगा, उतना बड़ा होगा। दूर दुनिया की किसी बड़ी दुर्घटना से निकटवर्ती स्थान की छोटी घटना को भी अधिक स्थान मिल सकता है।
  3. विशिष्ट व्यक्ति (VIP)-जिस व्यक्ति से संबंधित खबर है, वह जितना विशिष्ट, जितना प्रभावी व प्रसिद्ध होगा, उससे संबंधित खबर उतनी ही बड़ी होगी। अलबत्ता, कई बार वास्तविक समाचार उस वीआईपी व्यक्ति के व्यक्तित्व में दब कर रह जाती है।
  4. तात्कालिकता-कोई ताजा घटना बड़े आकार में छपती है, लेकिन उससे भी कुछ बड़ा न हो तो आगे उसके फॉलो-अप छोटे छपते हैं। इसी प्रकार समाचार पत्र छपते के दौरान आखिर समय में प्राप्त होने वाली महत्वपूर्ण खबरें, पहले से प्राप्त कम महत्वपूर्ण खबरों को हटाकर भी बड़ी छापी जाती हैं। पत्रिकाओं में भी छपने के दौरान सबसे लेटेस्ट महत्वपूर्ण समाचार बड़े आकार में छापा जाता है।
  5. एक्सक्लूसिव होना-यदि कोई समाचार केवल किसी एक समाचार पत्र के पास ही हो, तो वह उसे बड़े आकार में प्रकाशित करता है। लेकिन वही समाचार यदि सभी समाचार पत्रों में होने पर छोटे आकार में प्रकाशित होता है।                                                                                                                         

समाचार के मूल्य

समाचार को बड़ा या छोटा यानी कम या अधिक महत्व का बनाने के लिए निम्न तत्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इन्हें समाचार का मूल्य कहा जाता है।
1 व्यापकता: समाचार का विषय जितनी व्यापकता लिये होगा, उतने ही अधिक लोग उस समाचार में रुचि लेंगे, इसलिए वह बड़े आकार में छपेगा।
2 नवीनता: जिन बातों को मनुष्य पहले से जानता है वे बातें समाचार नही बनती। ऐसी बातें समाचार बनती है जिनमें कोई नई सूचना, कोई नई जानकारी हो। इस प्रकार समाचार का बड़ा गुण है-नई सूचना, यानी समाचार में नवीनता होनी चाहिये। कोई समाचार कितना नया या तत्काल प्राप्त हुआ हो, उसे जानने की उतनी ही अधिक चाहत होती है। कोई भी पुरानी या पहले से पता जानकारी को दुबारा नहीं लेना चाहता। समाचार पत्रों के मामले में एक दिन पुराने समाचार को ‘रद्दी’ कहा जाता है, और उसका कोई मोल नहीं होता। वहीं टीवी के मामले में एक सेकेंड पहले प्राप्त समाचार अगले सेकेंड में ही बासी हो जाता है। कहा जाने लगा है-News this second and History on next secondA

3 असाधारणता: हर समाचार एक नई सूचना होता है, परंतु यह भी सच है कि हर नई सूचना समाचार नही होती। जिस नई सूचना में कुछ असाधारणता होगी वही समाचार कहलायेगी। अर्थात नई सूचना में कुछ ऐसी असाधारणता होनी चाहिये जो उसमें समाचार बनने की अंतरनिहित शक्ति पैदा होती है। काटना कुत्ते का स्वभाव है। यह सभी जानते हैं। मगर किसी मनुष्य द्वारा कुत्ते को काटा जाना समाचार है। क्योंकि कुत्ते को काटना मनुष्य का स्वभाव नही है। जिस नई सूचना में असाधारणता नहीं होती वह समाचार नहीं लोकाचार कहलाता है।
4 सत्यता और प्रमाणिकता: समाचार में किसी घटना की सत्यता या तथ्यात्मकता होनी चाहिये। समाचार अफवाहों या उड़ी-उड़ायी बातों पर आधारित नही होते हैं। वे सत्य घटनाओं की तथ्यात्मक जानकारी होते हैं। सत्यता या तथ्यता होने से ही कोई समाचार विश्वसनीय और प्रमाणिक होते हैं।
5 रुचिपूर्णता: किसी नई सूचना में सत्यता होने से ही वह समाचार नहीं बन जाती है। उसमें अधिक लोगों की दिलचस्पी भी होनी चाहिये। कोई सूचना कितनी ही आसाधारण क्यों न हो अगर उसमें लोगों की रुचि न हो, तो वह सूचना समाचार नहीं बन पायेगी। कुत्ते द्वारा किसी सामान्य व्यक्ति को काटे जाने की सूचना समाचार नहीं बन पायेगी। कुत्ते द्वारा काटे गये व्यक्ति को होने वाले गंभीर बीमारी की सूचना समाचार बन जायेगी क्योंकि उस महत्वपूर्ण व्यक्ति में अधिकाधिक लोगों की दिलचस्पी हो सकती है।
6 प्रभावशीलता: समाचार दिलचस्प ही नही प्रभावशील भी होने चाहिये। हर सूचना व्यक्तियों के किसी न किसी बड़े समूह, बड़े वर्ग से सीधे या अप्रत्यक्ष रुप से जुड़ी होती है। अगर किसी घटना की सूचना समाज के किसी समूह या वर्ग को प्रभावित नही करती तो उस घटना की सूचना का उनके लिये कोई मतलब नही होगा।
7 स्पष्टता: एक अच्छे समाचार की भाषा सरल, सहज और स्पष्ट होनी चाहिये। किसी समाचार में दी गयी सूचना कितनी ही नई, कितनी ही असाधारण, कितनी ही प्रभावशाली क्यों न हो, लेकिन अगर वह सूचना सरल और स्पष्ट भाषा में न हो तो वह सूचना बेकार साबित होगी। क्योंकि ज्यादातर लोग उसे समझ नहीं पायेंगे। इसलिये समाचार की भाषा सीधी और स्पष्ट होनी चाहिये।

Thursday 3 April 2014

फोटोग्राफी के गुर

फोटोग्राफी या छायाचित्रण संचार का ऐसा एकमात्र माध्यम है जिसमें भाषा की आवश्यकता नहीं होती है। यह बिना शाब्दिक भाषा के अपनी बात पहुंचाने की कला है। इसलिए शायद ठीक ही कहा जाता है ‘‘ए पिक्चर वर्थ ए थाउजेंड वर्ड्स’’ यानी एक फोटो दस हजार शब्दों के बराबर होती है। फोटोग्राफी एक कला है जिसमें फोटो खींचने वाले व्यक्ति में दृश्यात्मक योग्यता यानी दृष्टिकोण व फोटो खींचने की कला के साथ ही तकनीकी ज्ञान भी होना चाहिए। और इस कला को वही समझ सकता है, जिसे मूकभाषा भी आती हो।

फोटोग्राफी की प्रक्रियाः
मनुष्य की संचार यात्रा शब्दों से पूर्व इशारों, चिन्हों और चित्रों से शुरू हुई है। छायाचित्र कोयला, चाक पैंसिल या रंगों के माध्यम से भी बनाए जा सकते हैं, लेकिन जब इन्हें कैमरा नाम के यंत्र की मदद से कागज या डिजिटल माध्यम पर उतारा जाता है, तो इसे फोटोग्राफी कहा जाता है। फोटोग्राफी की प्रक्रिया में मूलतः किसी छवि को प्रकाश की क्रिया द्वारा संवेदनशील सामग्री पर उतारा जाता है। इस प्रक्रिया में सामान्यतया चश्मे या दूरबीन के जरिए पास या दूर की वस्तुओं की छवि को देखे जाने के गुण का लाभ ही लिया जाता है, और एक कदम आगे बढ़ते हुए कैमरे के जरिए भौतिक वस्तुओं से निकलने वाले विकिरण को संवेदनशील माध्यम (जैसे फोटोग्राफी की फिल्म, इलेक्ट्रानिक सेंसर आदि) के ऊपर रिकार्ड करके स्थिर या चलायमान छवि या तस्वीर बना ली जाती है, ऐसी तस्वीरें ही छायाचित्र या फोटोग्राफ कहलाते हैं। इस प्रकार फोटोग्राफी लैंस द्वारा कैमरे में किसी वस्तु की छवि का निर्माण करने की व्यवस्थित तकनीकी प्रक्रिया है।

कैमरे का चयनः 
फोटोग्राफी एक बहुत ही अच्छे व लाभदायक व्यवसाय के रूप में साबित हो सकता है। फोटोग्राफी करना निजी पसंद का कार्य है इसलिए जिस चीज का आपको शौक हो उसके अनुरूप कैमरे का चयन करना चाहिये। अगर घर और कोई छोटे मोटे स्टूडियो में काम करना हो तो सामान्य डिजिटल कैमरे से भी काम चलाया जा सकता है, लेकिन अगर वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी या फैशन फोटोग्राफी जैसी प्रोफेशनल फोटोग्राफी करनी हो तो एसएलआर या डीएसएलआर कैमरे इस्तेमाल करने पड़ते हैं। डिजिटल कैमरे मोबाइल फोनों के साथ में तथा चार-पांच हजार से लेकर 15-20 हजार तक में आ जाते हैं, जबकि प्रोफेशनल कैमरे करीब 25 हजार से शुरू होते हैं, और ऊपर की दो-चार लाख तथा अपरिमित सीमा भी है। कैमरे के चयन में सामान्यतया नौसिखिया फोटोग्राफर मेगापिक्सल और जूम की क्षमता को देखते हैं, लेकिन जान लें कि मेगापिक्सल का फर्क केवल बड़ी या छोटी फोटो बनाने में पड़ता है। बहुत अधिक जूम का लाभ भी सामान्यतया नहीं मिल पाता, क्योंकि कैमरे में एक सीमा से अधिक जूम की क्षमता होने के बावजूद फोटो हिल जाती है। कैमरा खरीदने में अधिक आईएसओ, अधिक व कम अपर्चर तथा शटर स्पीड तथा दोनों को मैनुअल मोड में अलग-अलग समायोजित करने की क्षमता तथा सामान्य कैमरे में लगी फ्लैश या अतिरिक्त फ्लैश के कैमरे लेने का निर्णय किया जा सकता है।

लगातार बढ़ रहा है क्रेजः
सामान्यतया फोटोग्राफी यादों को संजोने का एक माध्यम है, लेकिन रचनात्मकता और कल्पनाशीलता के प्रयोग से यह खुद को व्यक्त करने और रोजगार का एक सशक्त और बेहतर साधन भी बन सकता है। अपनी भावनाओं को चित्रित करने के लिए शौकिया फोटोग्राफी करते हुए भी आगे चलकर इस शौक को करियर बनाया जा सकता है। तकनीकी की तरक्की और संचार के माध्यमों में हुई बेहतरी के साथ फोटोग्राफी का भी विकास हुआ है। सस्ते मोबाइल में भी कैमरे उपलब्ध हो जाने के बाद हर व्यक्ति फोटोग्राफर की भूमिका निभाने लगा है। छोटे-बड़े आयोजनों, फैशन शो व मीडिया सहित हर जगह फोटोग्राफी कार्यक्रम का एक अभिन्न अंग बन गया है, मीडिया में तो कई बार फोटोग्राफरों की पत्रकारों से अधिक पूछ होती है, लोग पत्रकारों से पहले फोटोग्राफरों को ही घटना की पहले सूचना देते हैं। समाचार में फोटो छप जाए, और खबर भले फोटो कैप्सन रूप में ही, लोग संतुष्ट रहते हैं, लेकिन यदि खबर बड़ी भी छप जाए और फोटो ना छपे तो समाचार पसंद नहीं आता। मनुष्य के इसी शौक का परिणाम है कि इलेक्ट्रानिक पत्रकारिता का क्रेज भी प्रिंट पत्रकारिता के सापेक्ष अधिक बढ़ रहा है।

फोटोग्राफी कला व विज्ञान दोनोंः 
फोटोग्राफी सबसे पहले आंखों से शुरू होती है, तथा आंख, दिल व दिमाग का बेहतर प्रयोग कर कैमरे से की जाती है, एक सफल फोटोग्राफर बनने के लिए वास्तविक खूबसूरती की समझ होने के साथ ही तकनीकी ज्ञान भी होना चाहिए। आपकी आँखें किसी भी वस्तु की तस्वीर विजुलाइज कर सकती हों कि वह अमुख वस्तु फोटो में कैसी दिखाई देगी। तस्वीर के रंग और प्रकाश की समझ में अंतर करने की क्षमता होनी भी जरूरी होती है। इसलिए फोटोग्राफी एक कला है।
वहीं, डिजिटल कैमरे आने के साथ फोटोग्राफी में नए आयाम जुड़ गए हैं। आज हर कोई फोटो खींचता है और खुद ही एडिट कर के उपयोग कर लेता है। लेकिन इसके बावजूद पेशेवर कार्यों के लिए एसएलआर व डीएसएलआर कैमरे इस्तेमाल किये जाते है जिन्हें सीखने के लिए काफी मेहनत करनी पड सकती है। इसलिए फोटोग्राफी विज्ञान भी है, जिसमें प्रशिक्षण लेकर और लगातार अभ्यास कर ही पारंगत हुआ जा सकता है। देशभर में कई ऐसे संस्थान हैं जो फोटोग्राफी में डिग्री, डिप्लोमा या सर्टिफिकेट कोर्स करवाते हैं। लेकिन यह भी मानना होगा कि बेहतर फोटोग्राफी सीखने के लिए किताबी ज्ञान कम और प्रयोगात्मक ज्ञान ज्यादा होना चाहिए। शैक्षिक योग्यता के साथ-साथ आपकी कल्पना शक्ति भी मजबूत होनी चाहिए। लेकिन यह भी मानना होगा कि यह पेशा वास्तव में कठिन मेहनत मांगता है। किसी एक फोटो के लिए एवरेस्ट और सैकड़ों मीटर ऊंची मीनारों या टावरों पर चढ़ने, कई-कई दिनों तक बीहड़ बीरान जंगलों में पेड़ या मचान पर बैठे रहने और मीलों पैदल भटकने की स्थितियां भी आ सकती हैं, इसलिए यह भी कहा जाता है कि फोटो और खबरें हाथों से नहीं वरन पैरों से भी लिखी या खींची जाती हैं।


फोटोग्राफी की तकनीकः

सामान्यतया फोटोग्राफी किसी भी कैमरे से ऑटो मोड में शुरू की जा सकती है, लेकिन अनुभव बढ़ने के साथ मैनुअल मोड में बेहतर चित्र प्राप्त किए जा सकते हैं। मैनुअल फोटोग्राफी में तीन चीजों को समझना बहुत महत्वपूर्ण होता है- शटर स्पीड, अपर्चर और आईएसओ।

शटर स्पीडः
Photo with High Shutter Speed
शटर स्पीड यह व्यक्त करने का मापक है कि कैमरे को क्लिक करने के दौरान कैमरे का शटर की कैमरे की स्पीड कितनी देर के लिए खुलता है। इसे हम मैनुअली नियंत्रित कर सकते हैं। शटर स्पीड को सेकेंड में मापा जाता है और ‘1/सेकेंड’ में यानी 1/500, 1/1000 आदि में व्यक्त किया जाता है। इसे पता चलता हे कि शटर किसी चित्र को लेने के लिए एक सेकेंड के 500वें या 1000वें हिस्से के लिए खुलेगा। जैसे यदि हम एक सैकेंड के एक हजारवें हिस्से में कोई फोटो लेते हैं तो वो उस फोटो में आये उडते हुए जानवर या तेजी से भागते विमान आदि के चित्र को अच्छे से ले सकता है, या फिर गिरती हुई पानी की बूंदो को फ्रीज कर सकता है। पर अगर इस सैटिंग को बढ़ाकर एक सेकेंड, दो सेकेंड या पांच सैकेंड कर दिया जाए,
Photo with Low Shutter Speed
तो शटर इतने सेकेंड के लिए खुलेगा, और शटर के इतनी देर तक खुले रहने से उस दृश्य के लिए भरपूर रोशनी मिलेगी, और फलस्वरूप फोटो अधिक अच्छी आएगी, अलबत्ता कैमरे को उतनी देर के लिए स्थिर रखना होगा। ट्राइपौड का इस्तेमाल करना जरूरी होगा। शटर स्पीड घटाकर यानी शटर को काफी देर खोलकर अंधेरे में शहर की रोशनियों या चांद-तारों, बहते हुए झरने, पानी, बारिश की बूंदों व बर्फ के गिरने, उड़ते पक्षियों, तेजी से दौडती कारों व वाहन आदि चलायमान वस्तुओं की तस्वीरें भी कैद की जा सकती हैं।
ध्यान रखने योग्य बात यह भी है कि शटर स्पीड जितनी बढ़ाई जाती है, इसके उलट उतनी ही कम रोशनी मिलती है। साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा 1/125 की शटर स्पीड 1/250 के मुकाबले अधिक होती है।

अपर्चरः
Photo with F/22 Aparture
शटर स्पीड और अपर्चर में समझने के लिहाज से मामूली परंतु बड़ा अंतर है। वस्तुतः शटर स्पीड और अपर्चर दोनों चित्र लेने के लिए लेंस के भीतर जाने वाले प्रकाश का ही मापक होते हैं, और दोनों शटर से ही संबंधित होते हैं। परंतु अपर्चर में शटर स्पीड से अलग यह फर्क है कि अपर्चर शटर के खुलने-फैलने को प्रकट करता है, यानी शटर का कितना हिस्सा चित्र लेने के लिए खुलेगा। इसे ‘एफ/संख्या’ में प्रकट किया जाता है। एफ/1.2 का अर्थ होगा कि शटर अपने क्षेत्रफल का 1.2वां हिस्सा और एफ/5.6 में 5.6वां हिस्सा खुलेगा। साफ है कि अपर्चर जितना कम होगा, शटर उतना अधिक खुलेगा, फलस्वरूप उतनी ही अधिक रोशनी चित्र के लिए लेंस को उपलब्ध होगी। कम अपर्चर होने पर चित्र के मुख्य विषय के इतर बैकग्राउंड ब्लर आती है। बेहतर फोटो के लिए अपर्चर सामान्यतया एफ/5.6 रखा जाता है।

फोटो की गहराई (डेप्थ ऑफ फील्ड-डीओएफ):
Photo with F/22 Aparture
फोटो की गहराई या डेप्थ ऑफ फील्ड फोटोग्राफी (डीओएफ) के क्षेत्र में एक ऐसा मानक है, जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं, पर यह है बड़ा प्रभावी। किसी भी फोटो की गुणवत्ता, या तीखेपन (शार्पनेस) में इसका बड़ा प्रभाव पड़ता है। डीओएफ एक तरह से किसी फोटो के फोकस में होने या बेहतर होने का मापक है। अधिक डीओएफ का अर्थ है कि फोटो का अधिकांश हिस्सा फोकस में है, चाहे उसमें दिखने वाला दृश्य का कोई हिस्सा कैमरे से करीब हो अथवा दूर, वहीं इसके उलट कम डीओएफ का अर्थ है फोटो के कम हिस्से का फोकस में होना। ऐसा सामान्यतया होता है, कभी पास तो कभी दूर का दृश्य ही फोकस में होता है, जैसा पहले एफ/22 अपर्चर में खींचे गए फूल और झील की फोटो में नजर आ रहा है, यह अधिक डीओएफ का उदाहरण है। जबकि दूसरा एफ/2.8 अपर्चर में खींचे गए फूल का धुंधली बैकग्राउंड का फोटो कम डीओएफ का उदाहरण है।
Photo with F/2.8 Aparture
इस प्रकार से अपर्चर का डीओएफ से सीधा व गहरा नाता होता है। बड़ा अपर्चर (एफ के आगे कम संख्या वाला) फोटो डीओएफ को घटाता है, और छोटा अपर्चर (एफ के आगे छोटी संख्या) फोटो के डीओएफ को बढ़ाता है। इसे यदि हम यह इस तरह याद रख लें कि एफ/22, एफ/2.8 के मुकाबले छोटा अपर्चर होता है, तो याद करने में आसानी होगी कि यदि एफ के आगे संख्या बड़ी होगी तो डीओएफ बड़ा और संख्या छोटी होगी तो डीओएफ छोटा होगा।
इस प्रकार हम याद रख सकते हैं कि लैंडस्केप या नेचर फोटोग्राफी में बड़े डीओएफ यानी छोटे अपर्चर और मैक्रो और पोर्ट्रेट फोटोग्राफी में छोटे डीओएफ या बड़े अपर्चर का प्रयोग किया जाता है। ऐसा रखने से पूरा प्रकृति का चित्र बेहतर फोकस होगा, और पोर्ट्रेट में सामने की विषयवस्तु अच्छी फोकस होगी और पीछे की बैकग्राउंड ब्लर आएगी, और सुंदर लगेगी।

आईएसओः
कम व अधिक आईएसओ से खींचे गए फोटो
आईएसओ का मतलब है कि कोई कैमरा रोशनी के प्रति कितना संवेदनशील है। किसी कैमरे की जितनी अधिक आईएसओ क्षमता होगी, उससे फोटो खींचने के लिए उतनी की कम रोशनी की जरूरत होगी, यानी वह उतनी कम रोशनी में भी फोटो खींचने में समर्थ होगा। अधिक आईएसओ पर कमरे के भीतर चल रही किसी खेल गतिविधि की गत्यात्मक फोटो भी खींची जा सकती है, अलबत्ता इसके लिए कैमरे को स्थिर रखने, ट्राइपौड का इस्तेमाल करने की जरूरत पड़ती है। कम व अधिक आईएसओ का फर्क इस चित्र में समझा जा सकता है।
लेकिन इसके साथ ही यह भी समझना पड़ेगा कि यदि आप शटर स्पीड को एक स्टेप बढ़ा कर उदाहरणार्थ 1/125 से घटाकर 1/250 कर रहे हैं तो इसका मतलब होगा कि आपके लैंस को आधी रोशनी ही प्राप्त होगी, और मौजूदा अपर्चर की सेटिंग पर आपका चित्र गहरा नजर आएगा। इस स्थिति को ठीक करने के लिए यानी लेंस को अधिक रोशनी देने के लिए आपको अपर्चर बढ़ाना यानी शटर को पहले के मुकाबले एक स्टेप अधिक खोलना होगा। इसके अलावा आईएसओ को भी अधिक रोशनी प्राप्त करने के लिए एक स्टेप बढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है।

बेहतर तीखेपन (शार्पनेस) की फोटो खींचने के 10 महत्वपूर्ण घटकः


  1. कैमरे को अधिक मजबूती से पकड़ें, ध्यान रखें कैमरा हिले नहीं। संभव हो तो ट्राइपॉड का प्रयोग करें। खासकर अधिक जूम, कम शटर स्पीड, गतियुक्त एवं कम रोशनी में या रात्रि में फोटो खींचने के लिए ट्राइपौड का प्रयोग जरूर करना चाहिए। 
  2. शटर स्पीड का फोटो के तीखेपन पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। शटर स्पीड जितनी अधिक होगी, उतना कैमरे के हिलने का प्रभाव नहीं पड़ेगा। वहीं इसके उलट शटर स्पीड जितनी कम होगी, उतना ही कैमरा अधिक हिलेगा, और फोटो का तीखापन प्रभावित होगा। लेंस की फोकस दूरी (फोकल लेंथ) से अधिक ‘हर (एक/ (बट्टे)’ वाली शटर स्पीड पर ही फोटो खींचने की कोशिश करनी चाहिए। यानी यदि कैमरे की फोकल लेंथ 50 मिमी है तो 1/50 से अधिक यानी 1/60, 70 आदि शटर स्पीड पर ही फोटो खींचनी चाहिए। यह भी याद रखें कि अधिक शटर स्पीड पर फोटो खींचने के लिए आपको क्षतिपूर्ति के लिए अधिक अपर्चर यानी कम डीओएफ की फोटो ही खींचनी चाहिए। 
  3. फोटो खींचने के लिए सही अपर्चर का प्रयोग करें। कम शटर स्पीड के लिए छोटे अपर्चर का प्रयोग करें। 
  4. कम रोशनी में अधिक आईएसओ का प्रयोग करने की कोशिश करें। ऐसा करने से आप तेज शटर स्पीड और छोटे अपर्चर का प्रयोग कर पाएंगे। लेकिन यदि संभव हो यानी रोशनी अच्छी उपलब्ध हो तो कम आईएसओ के प्रयोग से बेहतर तीखी फोटो खींची जा सकती है। 
  5. बेहतर लैंस, बेहतर कैमरे का प्रयोग करें। आईएस लैंस और डीएसएलआर कैमरे बेहतर हो सकते हैं।
  6. दृश्य को बेहतर तरीके से फोकस करें। फोटो खींचने से पहले देख लें कि कौन सा हिस्सा फोकस हो रहा है।
  7. लैंस साफ होना चाहिए। कैमरे को बेहद सावधानी के साथ रखें व प्रयोग करें।


इनके अलावा फोटो की विषयवस्तु के लिए एंगल यानी दृष्टिकोण और जूम यानी दूर की विषयवस्तु को पास लाकर फोटो खींचना तथा फ्लैश का प्रयोग करना या ना करना भी फोटोग्राफी में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 


फोटोग्राफी में कॅरियर की संभावनाएंः 

बहरहाल, फोटोग्राफी और खासकर डिजिटल फोटोग्राफी की मांग लगातार बढ़ती जा रही है, और यह एक विशेषज्ञता वाला कार्य भी बन गया है। फोटो जर्नलिस्ट, फैशन फोटोग्राफर, वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर, माइक्रो फोटोग्राफी, नेचर फोटोग्राफर, पोर्ट्रेट फोटोग्राफी, फिल्म फोटोग्राफी इंडस्ट्रियल फोटोग्राफर, प्रोडक्ट फोटोग्राफी, ट्रेवल एंड टूरिज्म फोटोग्राफी, एडिटोरियल फोटोग्राफी व ग्लैमर फोटोग्राफी आदि न जाने कितने विशेषज्ञता के क्षेत्र हैं, जो व्यक्ति के अंदर छुपी कला और रचनात्मकता की अभिव्यक्ति का जरिया बनते है, साथ ही बेहतर आय व व्यवसाय भी बन रहे हैं। अगर आपमें अपनी रचनात्मकता के दम पर कुछ अलग करने की क्षमता और जुनून हो तो इस करियर में धन और प्रसिद्धि की कोई कमी नहीं है।

प्रेस फोटोग्राफर- फोटो हमेशा से ही प्रेस के लिए अचूक हथियार रहा है। प्रेस फोटोग्राफर को फोटो जर्नलिस्ट के नाम से भी जाना जाता है। प्रेस फोटोग्राफर लोकल व राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों, चैनलों और एजेंसियों के लिए फोटो उपलब्ध कराते हैं। इनका क्षेत्र विविध होता है। इनका दिमाग भी पत्रकार की भाँति ही तेज व शातिर होता है। कम समय में अधिक से अधिक तस्वीरें कैद करना इनकी काबिलियत होती है। एक सफल प्रेस फोटोग्राफर बनने के लिए आपको खबर की अच्छी समझ, फोटो शीर्षक लिखने की कला और हर परिस्थिति में फोटो बनाने की कला आनी चाहिए।

फीचर फोटोग्राफर- किसी कहानी को तस्वीरों के माध्यम से प्रदर्शित करना फीचर फोटोग्राफी होती है। इस क्षेत्र में फोटोग्राफर को विषय के बारे में पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। फीचर फोटोग्राफी में फोटोग्राफर तस्वीरों के माध्यम से विषय की पूरी कहानी बता देता है। इनका काम और विषय बदलता रहता है। फीचर फोटोग्राफी के क्षेत्र हैं- वन्य जीवन, खेल, यात्रा वृत्तांत, पर्यावरण इत्यादि। फीचर फोटोग्राफर किसी रिपोर्टर के साथ भी काम कर सकते हैं और स्वतंत्र होकर भी काम कर सकते हैं।

एडिटोरियल फोटोग्राफर- इनका काम सामान्यतया मैगजीन और पीरियोडिकल के लिए फोटो बनाना होता है। ज्यादातर एडिटोरियल फोटोग्राफर स्वतंत्र रूप से काम करते हैं। एडिटोरियल फोटोग्राफर आर्टिकल या रिपोर्ट के विषय पर फोटो बनाते हैं। इनका क्षेत्र रिपोर्ट या आर्टिकल के अनुसार बदलता रहता है।

कमर्शियल या इंडस्ट्रियल फोटोग्राफर- इनका कार्य कंपनी की विवरणिका, रिपोर्ट व विज्ञापन के लिए कारखानों, मशीनों व कलपुर्जों की तस्वीरें बनाना है। कमर्शियल फोटोग्राफर किसी फर्म या कंपनी के लिए स्थायी होता है। इनका मुख्य उद्देश्य बाजार में कंपनी के उत्पाद व उसकी सेवाओं को बेहतर दिखाना होता है।

पोर्ट्रेट या वेडिंग फोटोग्राफर- यह फोटोग्राफर स्टूडियो में काम करते हैं और समूह या व्यक्ति विशेष की फोटो लेने में निपुण होते हैं। पोर्ट्रेट के विषय कुछ भी हो सकते हैं, जैसे पालतू जानवरों तस्वीर, बच्चे, परिवार, शादी, घरेलू कार्यक्रम और खेल इत्यादि। आज कल पोर्ट्रेट फोटोग्राफर की माँग लगातार बढ़ रही है। सामान्यतया प्रसिद्ध हस्तियां, सिने कलाकार अपने लिए निजी तौर पर फोटोग्राफरों को साथ रखते हैं।

विज्ञापन फोटोग्राफर- यह विज्ञापन एजेंसी, स्टूडियो या फ्रीलांस से संबंधित होते हैं। ज्यादातर विज्ञापन फोटोग्राफर कैटलॉग के लिए काम करते हैं जबकि कुछ स्टूडियो मेल ऑर्डर के लिए काम करते हैं। उपरोक्त सभी में विज्ञापन फोटोग्राफर का काम सबसे ज्यादा चुनौती भरा होता है।

फैशन और ग्लैमर फोटोग्राफर- देश में फैशन और ग्लैमर फोटोग्राफी का कॅरियर तेजी से उभर रहा है। क्रिएटिव और आमदनी दोनों रूपों में यह क्षेत्र सबसे बेहतर है। फैशन डिजाइनर के लिए अत्यधिक संभावनाएं है जहाँ वे अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा सकते हैं। विज्ञापन एजेंसी और फैशन स्टूडियो में कुशल फोटोग्राफर की हमेशा आवश्यकता रहती है साधारणतया फैशन फोटोग्राफर फैशन हाउस, डिजाइनर, फैशन जर्नल और समाचार पत्रों के लिए तथा मॉडलों, फिल्मी अभिनेत्रियों के पोर्टफोलियो तैयार करने जैसे अनेक आकर्षक कार्य करते हैं।

फाइन आर्ट्स फोटोग्राफर- फोटोग्राफी के क्षेत्र में इनका काम सबसे संजीदा व क्लिष्ट है। एक सफल फाइन आर्ट्स फोटोग्राफर के लिए आर्टिस्टिक व क्रिएटिव योग्यता अत्यावश्यक होती है। इनकी तस्वीरें फाइन आर्ट के रूप में भी बिकती हैं।

डिजिटल फोटोग्राफी- यह फोटोग्राफी डिजिटल कैमरे से की जाती है। इस माध्यम से तस्वीरें डिस्क, फ्लापी या कम्प्यूटर से ली जाती है। डिजिटल फोटोग्राफी से तस्वीर में किसी भी प्रकार का परिवर्तन किया जा सकता है। तस्वीर लेने का यह सबसे सुलभ, तेज और सस्ता साधन है। मीडिया में डिजिटल फोटोग्राफी का प्रयोग सबसे ज्यादा हो रहा है। इसका एकमात्र कारण ज्यादा से ज्यादा तस्वीरें एक स्टोरेज डिवाइस में एकत्र कर उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर पलभर में भेज देना है।

नेचर और वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी- फोटोग्राफी के इस क्षेत्र में जानवरों, पक्षियों, जीव जंतुओं और लैंडस्केप की तस्वीरें ली जाती हैं। इस क्षेत्र में दुर्लभ जीव जंतुओं की तस्वीर बनाने वाले फोटोग्राफर की माँग हमेशा बनी रहती है। एक नेचर फोटोग्राफर ज्यादातर कैलेंडर, कवर, रिसर्च इत्यादि के लिए काम करता है। नेचर फोटोग्राफर के लिए रोमांटिक सनसेट, फूल, पेड़, झीलें, झरना इत्यादि जैसे कई आकर्षक विषय हैं।

फोरेंसिक फोटोग्राफी- किसी भी क्राइम घटना की जाँच करने के लिए और उसकी बेहतर पड़ताल करने के लिए घटनास्थल की हर एंगल से तस्वीरों की आवश्यकता पड़ती है। इन तस्वीरों की मदद से पुलिस घटना के कारणों का पता लगाती है जिससे अपराधी को खोजने में आसानी होती है। फोरेंसिक फोटोग्राफी से वारदात की वास्तविक स्थिति व अंजाम देने की दूरी का पता भी लगाया जा सकता है। एक कुशल फोरेंसिक फोटोग्राफर अन्वेषण ब्यूरो, पुलिस डिपार्टमेंट, लीगल सिस्टम या किसी भी प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी के लिए काम कर सकता है।                                                                                                                      
इसके अलावा भी खेल, अंतरिक्ष, फिल्म, यात्रा, ललित कला तथा मॉडलिंग सहित अनेक अन्य क्षेत्रों में भी फोटोग्राफी की अनेक संभावनाएं हैं। दुनिया में जितनी भी विविधताएं हैं सभी फोटोग्राफी के विषय हैं। कब, क्या और कहां फोटोग्राफी का विषय बन जाए, कहा नहीं जा सकता, इसलिए फोटोग्राफी का कार्यक्षेत्र भी किसी सीमा में बांधकर नहीं रखा जा सकता है। यह संभावनाएं कौशल और चुनौतियों में छिपी हुई हैं, जिसे होनहार तथा चुनौतियों का सामना करने वाले फोटोग्राफर ही खोज सकते हैं। 

फोटोग्राफी का इतिहास :

सर्वप्रथम 1839 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक लुईस जेकस तथा मेंडे डाग्युरे ने फोटो तत्व को खोजने का दावा किया था। फ्रांसीसी वैज्ञानिक आर्गो ने 9 जनवरी 1839 को फ्रेंच अकादमी ऑफ साइंस के लिए एक रिपोर्ट तैयार की। फ्रांस सरकार ने यह "डाग्युरे टाइप प्रोसेस" रिपोर्ट खरीदकर उसे आम लोगों के लिए 19 अगस्त 1939 को फ्री घोषित किया और इस आविष्कार को ‘विश्व को मुफ्त’ मुहैया कराते हुए इसका पेटेंट खरीदा था। यही कारण है कि 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस मनाया जाता है। हालांकि इससे पूर्व 1826 में नाइसफोर ने हेलियोग्राफी के तौर पर पहले ज्ञात स्थायी इमेज को कैद किया था। ब्रिटिश वैज्ञानिक विलियम हेनरी फॉक्सटेल बोट ने नेगेटिव-पॉजीटिव प्रोसेस ढूँढ लिया था। 1834 में टेल बॉट ने लाइट सेंसेटिव पेपर का आविष्कार किया जिससे खींचे चित्र को स्थायी रूप में रखने की सुविधा प्राप्त हुई। 
1839 में ही वैज्ञानिक सर जॉन एफ डब्ल्यू हश्रेल ने पहली बार 'फोटोग्राफी' शब्द का इस्तेमाल किया था. यह  एक ग्रीक शब्द है, जिसकी उत्पत्ति फोटोज (लाइट) और ग्राफीन यानी उसे खींचने से हुई है। 

भारत में प्रोफेशनल फोटोग्राफी की शुरुआत व पहले फोटोग्राफरः 

भारत की प्रोफेशनल की शुरुआत 1840 में हुई थी। कई अंग्रेज फोटोग्राफर भारत में खूबसूरत जगहों और ऐतिहासिक स्मारकों को रिकॉर्ड करने के लिए भारत आए। 1847 में ब्रिटिश फोटोग्राफर विलियम आर्मस्ट्रांग ने भारत आकर अजंता एलोरा की गुफाओं और मंदिरों का सर्वे कर इन पर एक किताब प्रकाशित की थी।
कुछ भारतीय राजाओं और राजकुमारों ने भी फोटोग्राफी में हाथ आजमाए, इनमें चंबा के राजा, जयपुर के महाराजा रामसिंह व बनारस के महाराजा आदि प्रमुख थे। लेकिन अगर किसी ने भारतीय फोटोग्राफी को बड़े स्तर तक पहुंचाया है तो वह हैं लाला दीन दयाल, जिन्हें राजा दीन दयाल के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास सरधाना में 1844 में सुनार परिवार में हुआ था। उनका करियर 1870 के मध्य कमीशंड फोटोग्राफर के रूप में शुरू हुआ। बाद में उन्होंने अपने स्टूडियो मुंबई, हैदराबाद और इंदौर में खोले। हैदराबाद के छठे निजाम महबूब अली खान ने इन्हें मुसव्विर जंग राजा बहादुर का खिताब दिया था। 1885 में उनकी नियुक्ति भारत के वॉयसराय के फोटोग्राफर के तौर पर हुई थी, और 1897 में क्वीन विक्टोरिया से रॉयल वारंट प्राप्त हुआ था। उनके स्टूडियो के 2857 निगेटिव ग्लास प्लेट को 1989 में इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फार ऑर्ट, नई दिल्ली के द्वारा खरीदा गया था, जो आज के समय में सबसे बड़ा पुराने फोटोग्राफ का भंडार है। 2010 में आइजीएनसीए में और 2006 में हैदराबाद फेस्टिवल के दौरान सालार जंग म्यूजियम में उनकी फोटोग्राफी को प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया था। नवंबर 2006 में संचार मंत्रालय, डाक विभाग द्वारा उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया था।  

नैनीताल में फोटोग्राफी का इतिहास :

संयोग है कि जिस वर्ष विश्व में फोटोग्राफी का आविष्कार हो रहा था, उसी वर्ष सरोवरनगरी नैनीताल की अंग्रेज व्यापारी पीटर बैरन द्वारा खोज किए जाने की बात भी कही जाती है। अंग्रेजों के साथ ही नैनीताल में फोटोग्राफी बहुत जल्दी पहुंच गई। 1850 में अंग्रेज छायाकार डा. जॉन मरे को नैनीताल में सर्वप्रथम फोटोग्राफी करने का श्रेय दिया जाता है। उनके द्वारा खींचे गए नैनीताल के कई चित्र ब्रिटिश लाइब्रेरी में आज भी सुरक्षित हैं। 1860 में नगर के मांगी साह ने फोटोग्राफी की शुरुआत की। 1921 में चंद्रलाल साह ठुलघरिया ने नगर के छायाकारों की फ्लोरिस्ट लीग की स्थापना की, जबकि देश में 1991 से विश्व फोटाग्राफी दिवस मनाने की शुरुआत हुई। नैनीताल के ख्यातिप्राप्त फोटोग्राफरों में परसी साह व एनएल साह आदि का नाम भी आदर के साथ लिया जाता है, जबकि हालिया दौर में अनूप साह अंतराष्टीय स्तर के फोटोग्राफर हैं, जबकि देश के अपने स्तर के इकलौते विकलांग छायाकार दिवंगत बलवीर सिंह, एएन सिंह, बृजमोहन जोशी व केएस सजवाण आदि ने भी खूब नाम कमाया है।