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Friday 18 April 2014

प्रभावी समाचार लेखन के गुर

परिचयः 
मनुष्य एक सामाजिक और जिज्ञासु प्राणी है। वह जिस समूह, समाज या वातावरण में रहता है उस के बारे में और अधिक जानने को उत्सुक रहता है। अपने आसपास घट रही घटनाओं के बारे में जानकर उसे एक प्रकार के संतोष, आनंद और ज्ञान की प्राप्ति होती है, और कहीं न कहीं उसे उसकी इसी जिज्ञासा ने आज सृष्टि का सबसे विकसित प्राणी भी बनाया है। प्राचीन काल से ही उसने सूचनाओं को यहां से वहां पहुंचाने के लिए संदेशवाहकों, तोतों व घुड़सवारों की मदद लेने, सार्वजनिक स्थानों पर संदेश लिखने जैसे तमाम तरह के तरीकों, विधियों और माध्यमों को खोजा और विकसित किया। पत्र के जरिये समाचार प्राप्त करना भी एक पुराना माध्यम है जो लिपि और डाक व्यवस्था के विकसित होने के बाद अस्तित्व में आया, और आज भी प्रयोग किया जाता है। समाचार पत्र रेडियो टेलिविजन, मोबाइल फोन व इंटरनेट समाचार प्राप्ति के आधुनिकतम संचार माध्यम हैं, जो छपाई, रेडियो व टेलीविजन जैसी वैज्ञानिक खोजों के बाद अस्तित्व में आए हैं।

समाचार की परिभाषा

सामान्य मानव गतिविधियों से इतर जो कुछ भी नया और खास घटित होता है, समाचार कहलाता है। मेले, उत्सव, दुर्घटनाएं, विपदा, सरकारी बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी सरकारी सुविधाओं का न मिलना सब समाचार हैं। विचार घटनाएं और समस्याओं से समाचार का आधार तैयार होता है। किसी भी घटना का अन्य लोगों पर पड़ने वाले प्रभाव और इसके बारे में पैदा होने वाली सोच से समाचार की अवधारणा का विकास होता है। किसी भी घटना विचार और समस्या से जब काफी लोगों का सरोकार हो तो यह कह सकते हैं कि यह समाचार बनने योग्य है।
समाचार किसी बात को लिखने या कहने का वह तरीका है जिसमें उस घटना, विचार, समस्या के सबसे अहम तथ्यों या पहलुओं तथा सूचनाओं और भविष्य में पड़ने वाले प्रभावों को व्यवस्थित तरीके से लिखा या बताया जाता है। इस शैली में किसी घटना का ब्यौरा कालानुक्रम के बजाये सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना से शुरु होता है।

कुछ परिभाषाएंः      
  • किसी नई घटना की सूचना ही समाचार है: डॉ निशांत सिंह
  • किसी घटना की नई सूचना समाचार है: नवीन चंद्र पंत
  • वह सत्य घटना या विचार जिसे जानने की अधिकाधिक लोगों की रूचि हो: नंद किशोर त्रिखा
  • किसी घटना की असाधारणता की सूचना समाचार है: संजीव भनावत
  • ऐसी ताजी या हाल की घटना की सूचना जिसके संबंध में लोगों को जानकारी न हो: रामचंद्र वर्मा

इसके अलावा भी समाचार को निम्न प्रकार से भी परिभाषित किया जाता हैः
  • जो हमारे चारों ओर घटित होता है, और हमें प्रभावित करता है, वह समाचार है।
  • जिस घटना को पत्रकार लाता व लिखता तथा संपादक समाचार पत्र में छापता या दिखाने योग्य समझ कर टीवी में प्रसारित करता है, वह समाचार है। (क्योंकि यदि वह छपा ही नहीं या टीवी पर दिखाया ही नहीं गया तो फिर समाचार कहां रहा।)
  • समाचार जल्दी में लिखा गया इतिहास है। कोई भी समाचार अगला समाचार आने पर इतिहास बन जाता है।
  • समाचार सत्य, विश्वसनीय तथा कल्याणकारी होना चाहिए। जो समाज में दुर्भावना फैलाता हो अथवा झूठा हो, समाचार नहीं हो सकता। सत्यता समाचार का बड़ा गुण है।
  • समाचार सूचना देने, शिक्षित करने और मनोरंजन करने वाला भी होना चाहिए।
  • समाचार रोचक होना चाहिए। उसे जानने की लोगों में इच्छा होनी चाहिए।
  • समाचार अपने पाठकों-श्रोताओं की छह ककार (5W & 1H, What, when, where, why, who and How) (क्या हुआ, कब हुआ, कहां हुआ, क्यों हुआ किसके साथ हुआ और कैसे हुआ,) की जिज्ञासाओं का शमन करता हो तथा नए दौर की नई जरूरतों के अनुसार भविष्य के संदर्भ में एक नए सातवें ककार-आगे क्या (6th W-What next) के बारे में भी मार्गदर्शन करे। 
समाचार का सीधा अर्थ है-सूचना। मनुष्य के आस-पास और चारों दिशाओं में घटने वाली सूचना। समाचार को अंग्रेजी के न्यूज का हिन्दी समरुप माना जाता है। हालांकि ‘न्यूज’ (NEWS) शब्द इस तरह तो नहीं बना है, परंतु इत्तफाकन ही सही इसका अर्थ और प्रमुख कार्य चारों दिशाओं अर्थात नॉर्थ, ईस्ट, वेस्ट और साउथ की सूचना देना भी है। 

समाचार को बड़ा या छोटा बनाने वाले तत्वः

अक्सर हम समाचारों के छोटा या बढ़ा छपने पर चर्चा करते हैं। अक्सर हमें लगता है कि हमारा समाचार छपना ही चाहिए, और वह भी बड़े आकार में। साथ ही यह भी लगता है कि खासकर हमारी अरुचि के समाचार बेकार ही आवश्यकता से बड़े आकारों या बड़ी हेडलाइन में छपे होते हैं।
आइए जानते हैं क्या है समाचारों के बड़ा या छोटा छपने का आधार। इससे पूर्व मेरी 1995 के दौर में लिखी एक कुमाउनी कविता ‘चिनांण’ यानी चिन्ह देखेंः 

आजा्क अखबारों में छन खबर
आतंकवाद, हत्या, अपहरण, 
चोर-मार, लूट-पाट, बलात्कार
ठुल हर्फन में
अर ना्न हर्फन में
सतसंग, भलाइ, परोपकार।

य छु पछ्यांण
आइ न है रय धुप्प अन्यार
य न्है, सब तिर बची जांणौ्क निसांण
य छु-आ्जि मस्त
बचियक चिनांड़।

किलैकि ठुल हर्फन में
छपनीं समाचार
अर ना्न हर्फन में-लोकाचार।

य ठीक छु बात
समाचार बणनईं लोकाचार
अर लोकाचार-समाचार।
जसी जाग्श्यरा्क जागनाथज्यूक
हातक द्यू
ऊंणौ तलि हुं। 

संचि छु हो,
उरी रौ द्यो,
पर आ्इ लै छु बखत।
जदिन समाचार है जा्ल पुर्रै लोकाचार
और लोकाचार छपा्ल ठुल हर्फन में
भगबान करों
झन आवो उ दिन कब्भै। 

हिन्दी भावानुवाद

आज के अखबारों में हैं खबर
आतंकवाद, हत्या, अपहरण
चोरी, डकैती व बलात्कार की
मोटी हेडलाइनों में
और छोटी खबरें
सतसंग, भलाई व परोपकार की।

यह पहचान है
अभी नहीं घिरा है धुप्प अंधेरा।
यह नहीं है पहचान, सब कुछ खत्म हो जाने की
यह है अभी बहुत कुछ 
बचे होने के चिन्ह।

क्योंकि मोटी हेडलाइनों में छपते हैं समाचार
और छोटी खबरों में लोकाचार।
हां यह ठीक है कि 
समाचार बन रहे लोकाचार
जैसे जागेश्वर में जागनाथ जी की मूर्ति के हाथों का दीपक
आ रहा है नींचे की ओर।

सच है, 
आने वाली है जोरों की बारिश प्रलय की
पर अभी भी समय है
जब समाचार पूरी तरह बन जाऐंगे लोकाचार, 
और लोकाचार छपेंगे मोटी हेडलाइनों में।
ईश्वर करें
ऐसा दिन कभी न आऐ।

यानी उस दौर में समाचारों के कम ज्ञान के बावजूद कहा गया है कि समाचार यानी कुछ अलग होने वाली गतिविधियां बड़े आकार में सामान्य गतिविधियां लोकाचार के रूप में छोटे आकार में छपती हैं। इसके अलावा भी निम्न तत्व हैं जो किसी समाचार को छोटा या बड़ा बनाते हैं। इसमें इस बात से भी फर्क नहीं पड़ता है कि उस समाचार में शब्द कितने भी सीमित क्यों ना हों। प्रथम पेज पर कुछ लाइनों की खबर भी बड़ी खबर कही जाती है। वहीं एक या डेड़-दो कालम की खबर भी ‘बड़ी’ होने पर पूरे बैनर यानी सात-आठ कालम में भी पूरी चौड़ी हेडिंग तथा महत्वपूर्ण बिंदुआंे की सब हेडिंग या क्रासरों के साथ लगाई जा सकती है।
  1. प्रभाव-समाचार जितने अधिक लोगों से संबंधित होगा या उन्हें प्रभावित करेगा, उतना ही बड़ा होगा। किसी दुर्घटना में हताहतों की संख्या जितनी अधिक होगी, अथवा किसी दल, संस्था या समूह में जितने अधिक लोग होंगे, उससे संबंधित उतना ही बड़ा समाचार बनेगा।
  2. निकटता-समाचार जितना निकट से संबंधित होगा, उतना बड़ा होगा। दूर दुनिया की किसी बड़ी दुर्घटना से निकटवर्ती स्थान की छोटी घटना को भी अधिक स्थान मिल सकता है।
  3. विशिष्ट व्यक्ति (VIP)-जिस व्यक्ति से संबंधित खबर है, वह जितना विशिष्ट, जितना प्रभावी व प्रसिद्ध होगा, उससे संबंधित खबर उतनी ही बड़ी होगी। अलबत्ता, कई बार वास्तविक समाचार उस वीआईपी व्यक्ति के व्यक्तित्व में दब कर रह जाती है।
  4. तात्कालिकता-कोई ताजा घटना बड़े आकार में छपती है, लेकिन उससे भी कुछ बड़ा न हो तो आगे उसके फॉलो-अप छोटे छपते हैं। इसी प्रकार समाचार पत्र छपते के दौरान आखिर समय में प्राप्त होने वाली महत्वपूर्ण खबरें, पहले से प्राप्त कम महत्वपूर्ण खबरों को हटाकर भी बड़ी छापी जाती हैं। पत्रिकाओं में भी छपने के दौरान सबसे लेटेस्ट महत्वपूर्ण समाचार बड़े आकार में छापा जाता है।
  5. एक्सक्लूसिव होना-यदि कोई समाचार केवल किसी एक समाचार पत्र के पास ही हो, तो वह उसे बड़े आकार में प्रकाशित करता है। लेकिन वही समाचार यदि सभी समाचार पत्रों में होने पर छोटे आकार में प्रकाशित होता है।                                                                                                                         

समाचार के मूल्य

समाचार को बड़ा या छोटा यानी कम या अधिक महत्व का बनाने के लिए निम्न तत्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इन्हें समाचार का मूल्य कहा जाता है।
1 व्यापकता: समाचार का विषय जितनी व्यापकता लिये होगा, उतने ही अधिक लोग उस समाचार में रुचि लेंगे, इसलिए वह बड़े आकार में छपेगा।
2 नवीनता: जिन बातों को मनुष्य पहले से जानता है वे बातें समाचार नही बनती। ऐसी बातें समाचार बनती है जिनमें कोई नई सूचना, कोई नई जानकारी हो। इस प्रकार समाचार का बड़ा गुण है-नई सूचना, यानी समाचार में नवीनता होनी चाहिये। कोई समाचार कितना नया या तत्काल प्राप्त हुआ हो, उसे जानने की उतनी ही अधिक चाहत होती है। कोई भी पुरानी या पहले से पता जानकारी को दुबारा नहीं लेना चाहता। समाचार पत्रों के मामले में एक दिन पुराने समाचार को ‘रद्दी’ कहा जाता है, और उसका कोई मोल नहीं होता। वहीं टीवी के मामले में एक सेकेंड पहले प्राप्त समाचार अगले सेकेंड में ही बासी हो जाता है। कहा जाने लगा है-News this second and History on next secondA

3 असाधारणता: हर समाचार एक नई सूचना होता है, परंतु यह भी सच है कि हर नई सूचना समाचार नही होती। जिस नई सूचना में कुछ असाधारणता होगी वही समाचार कहलायेगी। अर्थात नई सूचना में कुछ ऐसी असाधारणता होनी चाहिये जो उसमें समाचार बनने की अंतरनिहित शक्ति पैदा होती है। काटना कुत्ते का स्वभाव है। यह सभी जानते हैं। मगर किसी मनुष्य द्वारा कुत्ते को काटा जाना समाचार है। क्योंकि कुत्ते को काटना मनुष्य का स्वभाव नही है। जिस नई सूचना में असाधारणता नहीं होती वह समाचार नहीं लोकाचार कहलाता है।
4 सत्यता और प्रमाणिकता: समाचार में किसी घटना की सत्यता या तथ्यात्मकता होनी चाहिये। समाचार अफवाहों या उड़ी-उड़ायी बातों पर आधारित नही होते हैं। वे सत्य घटनाओं की तथ्यात्मक जानकारी होते हैं। सत्यता या तथ्यता होने से ही कोई समाचार विश्वसनीय और प्रमाणिक होते हैं।
5 रुचिपूर्णता: किसी नई सूचना में सत्यता होने से ही वह समाचार नहीं बन जाती है। उसमें अधिक लोगों की दिलचस्पी भी होनी चाहिये। कोई सूचना कितनी ही आसाधारण क्यों न हो अगर उसमें लोगों की रुचि न हो, तो वह सूचना समाचार नहीं बन पायेगी। कुत्ते द्वारा किसी सामान्य व्यक्ति को काटे जाने की सूचना समाचार नहीं बन पायेगी। कुत्ते द्वारा काटे गये व्यक्ति को होने वाले गंभीर बीमारी की सूचना समाचार बन जायेगी क्योंकि उस महत्वपूर्ण व्यक्ति में अधिकाधिक लोगों की दिलचस्पी हो सकती है।
6 प्रभावशीलता: समाचार दिलचस्प ही नही प्रभावशील भी होने चाहिये। हर सूचना व्यक्तियों के किसी न किसी बड़े समूह, बड़े वर्ग से सीधे या अप्रत्यक्ष रुप से जुड़ी होती है। अगर किसी घटना की सूचना समाज के किसी समूह या वर्ग को प्रभावित नही करती तो उस घटना की सूचना का उनके लिये कोई मतलब नही होगा।
7 स्पष्टता: एक अच्छे समाचार की भाषा सरल, सहज और स्पष्ट होनी चाहिये। किसी समाचार में दी गयी सूचना कितनी ही नई, कितनी ही असाधारण, कितनी ही प्रभावशाली क्यों न हो, लेकिन अगर वह सूचना सरल और स्पष्ट भाषा में न हो तो वह सूचना बेकार साबित होगी। क्योंकि ज्यादातर लोग उसे समझ नहीं पायेंगे। इसलिये समाचार की भाषा सीधी और स्पष्ट होनी चाहिये।

Saturday 28 December 2013

प्रिंट पत्रकारिता: समाचार पत्र और प्रकाशन समूह

पत्रकारिता: 

पत्रकारिता अंग्रेजी के ‘जर्नलिज्म’ का अनुवाद है। ‘जर्नलिज्म’ शब्द में फ्रेंच शब्द ‘जर्नी’ या ‘जर्नल’ यानी दैनिक शब्द समाहित है। जिसका तात्पर्य होता है, दिन-प्रतिदिन किए जाने वाले कार्य। पहले के समय में सरकारी कार्यों का दैनिक लेखा-जोखा, बैठकों की कार्यवाही और क्रियाकलापों को जर्नल में रखा जाता था, वहीं से पत्रकारिता यानी ‘जर्नलिज्म’ शब्द का उद्भव हुआ। 16वीं और 18 वीं सदी में पिरियोडिकल के स्थान पर डियूरलन और ‘जर्नल’ शब्दों का प्रयोग हुआ। बाद में इसे ‘जर्नलिज्म’ कहा जाने लगा। पत्रकारिता का शब्द तो नया है लेकिन विभिन्न माध्यमों द्वारा पौराणिक काल से ही पत्रकारिता की जाती रही है। जैसा कि विदित है मनुष्य का स्वभाव ही जिज्ञासु प्रवृत्ति का होता है। और इसी जिज्ञासा के चलते आरम्भ में ही उसने विभिन्न खोजों को भी अंजाम दिया। पत्रकारिता के उदभव और विकास के लिए इसी प्रवृत्ति को प्रमुख कारण भी माना गया है।
अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति के चलते मनुष्य अपने आस-पास घटने वाली घटनाओं को जानने का उत्सुक रहता है। वो न केवल अपने आस पास साथ ही हर विषय को जानने का प्रयास करता है। समाज में प्रतिदिन होने वाली ऐसी घटनाओं और गतिविधियों को जानने के लिए पत्रकारिता सबसे बहु उपयोगी साधन कहा जा सकता है। इसीलिए पत्रकारिता को जल्दी में लिखा गया इतिहास भी कहा गया है। समाज से हर पहलू और आत्मीयता के साथ जुड़ाव के कारण ही पत्रकारिता को कला का दर्जा भी मिला हुआ है। पत्रकारिता का क्षेत्र अत्यन्त व्यापकता लिए हुए है। इसे सीमित शब्दावली में बांधना कठिन है। पत्रकारिता के इन सिद्धान्तों को परिभाषित करना कठिन काम है, फिर भी कुछ विद्वानों ने इसे सरल रूप से परिभाषित करने का प्रयास किया है, जिससे पत्रकारिता को समझने में आसानी होगी।

महात्मा गॉधी के अनुसार- पत्रकारिता का अर्थ सेवा करना है। 

डॉ. अर्जुन तिवारी ने एनसाइक्लोपिडिया आफ ब्रिटेनिका के आधार पर इसकी व्याख्या इस प्रकार की है-
‘‘पत्रकारिता के लिए अंग्रेंजी में ‘जर्नलिज्म’ शब्द का प्रयोग होता है जो जर्नल’ से निकला है,जिसका शाब्दिक अर्थ ‘दैनिक’ है। दिन-प्रतिदिन के क्रिया-कलापों, सरकारी बैठकों का विवरण‘जर्नल’ में रहता था। 17वीं एवं 18वीं सदी में पिरियाडिकल के स्थान पर लैटिन शब्द‘डियूरनल’ ‘और’ ‘जर्नल’ शब्दों के प्रयोग हुए। 20वीं सदी में गम्भीर समालोचना और विद्वत्तापूर्ण प्रकाशन को भी इसी के अन्तर्गत माना गया। ‘जर्नल’ से बना ‘जर्नलिज्म’अपेक्षाकृत व्यापक शब्द है। समाचार पत्रों एवं विविधकालिक पत्रिकाओं के सम्पादन एवं लेखन और तत्सम्बन्धी कार्यों को पत्रकारिता के अन्तर्गत रखा गया। इस प्रकार समाचारों का संकलन-प्रसारण, विज्ञापन की कला एवं पत्र का व्यावसायिक संगठन पत्रकारिता है। समसामयिक गतिविधियों के संचार से सम्बद्ध सभी साधन चाहे वे रेडियो हो या टेलीविजन इसी के अन्तर्गत समाहित हैं।’’

डॉ.बद्रीनाथ कपूर के अनुसार ‘‘पत्रकारिता पत्र-पत्रिकाओं के लिए समाचार लेख आदि एकत्रित तथा सम्पादित करने, प्रकाशन आदेश आदि देने का कार्य है।’’­

हिन्द शब्द सागर के अनुसार ‘‘ज्ञान और विचार शब्दों तथा चित्रों के रूप में दूसरे तक पहुंचाना ही पत्रकारिता है।’’

श्री रामकृष्ण रघुनाथ खाडिलकर के अनुसार ‘‘ज्ञान और विचार शब्दों तथा चित्रों के रूप में दूसरे तक पहुँचाना ही पत्रकला है।’’

सी.जी.मूलर "सामयिक ज्ञान के व्यवसाय को पत्रकारिता मानते हैं। इस व्यवसाय में आवश्यक तथ्यों की प्राप्ति, सावधानी पूर्वक उनका मूल्यांकन तथा उचित प्रस्तुतीकरण होता है।

विखमस्टीड ने "पत्रकारिता को कला, वृत्ति और जन सेवा माना है।’’

मुद्रण तकनीक और समाचार पत्र: 

पांचवीं शताब्दी ईसवी पूर्व में रोम में संवाद लेखक हुआ करते थे। मुद्रण कला के आविष्कार के बाद इसी तरह से लिखकर खबरों को पहुंचाया जाने लगा। मुद्रण के आविष्कार के बारे में तय तारीख के बारे में कहा जाना मुश्किल है, लेकिन ईसा की दूसरी शताब्दी में इसके आविष्कार को लेकर कुछ प्रमाण मिले हैं। इस दौरान चीन में सर्वप्रथम कागज का निर्माण हुआ। सातवीं शताब्दी मे कागज के निर्माण की प्रक्रिया को गुप्त रखा गया। कागज का आधुनिक रूप फ्रांस के निकोलस लुईस राबर्ट ने 1778 ई में बनाया। लकड़ी के ठप्पों से छपाई का काम भी सबसे पहले पाँचवी तथा छठी शताब्दी में चीन में शुरू हुआ। इन ठप्पों का प्रयोग कपड़ो की रंगाई में होता था। भारत में छपाई का काम भी लगभग इसी दौरान आरंभ हो गया था। 11वीं सदी में चीन में पत्थर के टाइप बनाए गए ताकि अधिक प्रतियाँ छापी जा सके। 13वी-14वीं सदी में चीन ने अलग-अलग संकेत चिन्हों को बनाने में सफलता प्राप्त कर ली। धातु टाइपों से पहली पुस्तक 1409 ईसवीं में छापी जाने के प्रमाण हैं। बाद में कोरिया से चीन होकर धातु टाइप यूरोप पहुँचा। 1500 ईसवीं तक पूरे यूरोप में सैकड़ों छापेखाने खुल गए थे, जिनसे समाचार पत्रों और पुस्तक का प्रकाशन होने लगा। नीदरलैंड से 1526 में न्यू जाइटुंग का प्रकाशन प्रारंभ हुआ।  इसके बाद लगभग एक शताब्दी तक कोई दूसरा समाचार पत्र प्रकाशित नहीं हुआ। दैनिक पत्रों के इतिहास में पहला अंग्रेजी दैनिक  11 मार्च 1709 को ‘डेली करंट’ प्रकाशित हुआ।



प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार के बाद काफी समय तक किताबें और सरकारी दस्तावेज़ ही उनमें मुद्रित हुआ करते थे। सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में पूरा यूरोप युद्धों को झेल रहा था, सामंतवाद लगातार अपनी शक्ति खो रहा था। अनेक विचारधाराएं उत्पन्न हो रहीं थी।  उद्यमी  व्यक्ति अनेक पीढ़ियों तक अपने समकालीन लोगों में ग्रन्थकार, घटना लेखक, सार लेखक, समाचार लेखक, समाचार प्रसारक,रोजनामचा नवीस, गजेटियर  के नाम से जाने जाते थे। इस दौरान  ‘आक्सफोर्ड गजट’ और फिर ‘लंदन गजट’ निकले जिनके बारे में पेपीज ने लिखा था, 'बहुत सुन्दर समाचारों से भरपूर और इसमें कोई टिप्पणी नहीं।' इसमें सन् 1665 और उसके बाद तक समाचार प्रकाशित होते थे। तीस वर्ष बाद ‘समाचार पुस्तिका’ शब्द का लोप हो गया और अब उसके पाठक उसे समाचार पत्र कहने लगे। समाचार पत्र शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख सन् 1670 में मिलता है। इस प्रकार के समाचार-लेखकों का महत्व आने वाले समय में लम्बी अवधि तक बना रहा।

भारत में पुर्तगाली मिशनरियों द्वारा स्थापित प्रेस में धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन ज्यादा होता था। 1558 में तमिलनाडु में और 1602 में मालाबार के तिनेवली में दूसरी प्रेस लगाई गई। बाद में 1679 में बिचुर में एक प्रेस की स्थापना हुई जिसमें तमिल-पोर्तुगीज शब्दकोष छापा गया। फिर कोचीन और मुबंई में भी ऐसे प्रेस स्थापित किए गए। ब्रिटिश भारत में सबसे पहले अंग्रेजी प्रेस की स्थापना 1674 में बम्बई में हुई थी। इसके बाद 1772 में चेन्नई और 1779 में कोलकता में सरकारी छापेखाने की स्थापना हुई। सन् 1772 तक मद्रास और अठारहवीं सदी के अंत तक भारत के लगभग ज्यादातर नगरों में प्रेस स्थापित हो गए थे।

हिकी'ज बंगाल गजट:  भारत में पहला समाचार पत्र

भारत मे सर्वप्रथम जेम्स आगस्ट्स हिक्की ने "हिकी'ज बंगाल गजट" के नाम से अखबार निकाल कर पत्रकारिता की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल की। इस अखबार मे भ्रष्टाचार और शासन की निष्पक्ष आलोचना होने के कारण सरकार ने इसके प्रिंटिंग प्रेस को जब्त कर लिया।‘जैम्स हिक्की’ द्वारा 29 जनवरी 1780 को बंगाल गजट या ‘कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर’नामक साप्ताहिक पत्र प्रारम्भ किया गया। वस्तुतः इसी दिन से भारत में पत्रकारिता का विधिवत् प्रारम्भ हुआ। यह पत्र राजनीतिक और आर्थिक विषयों का साप्ताहिक है और इसका सम्बन्ध हर दल से है, मगर यह किसी दल के प्रभाव में नहीं आएगा। स्वयं के बारे में हिक्की की धारणा थी- ‘‘मुझे अखबार छापने का विशेष चाव नहीं है, न मुझमें इसकी योग्यता है। कठिन परिश्रम करना मेरे स्वभाव में नहीं है, तब भी मुझे अपने शरीर को कष्ट देना स्वीकार है ताकि मैं मन और आत्मा की स्वाधीनता प्राप्त कर सकूं।" दो पृष्ठों के तीन कालम में दोनों ओर से छपने वाले इस अखबार के पृष्ठ 12 इंच लंबे और 8 इंच चौड़े थे। इसमें हिक्की का विशेष स्तंभ ‘ए पोयट्स’ कार्नर होता था। इसके बाद 1780 में इंडिया गजट का प्रकाशन हुआ। 50 वर्षों तक प्रकाशित होने वाले इस अखबार में ईस्ट इंडिया कंपनी की व्यावसायिक गतिविधियों के समाचार दिए जाते थे। कलकत्ता में पत्रकारिता के विकास के जो प्रमुख कारण थे उसमें से एक था वहां बंदरगाह का होना। इसके अलावा कलकत्ता अंग्रेजो का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र भी था। एक और कारण यह था कि पश्चिम बंगाल से ही आजादी के ज्यादातर आंदोलन संचालित हो रहे थे। 18वीं शताब्दी के अंत तक बंगाल से कलकत्ता कोरियर, एशियाटिक मिरर, ओरिएंटल स्टार तथा मुंबई से बंबई हेराल्ड अखबार 1790 में प्रकाशित हुआ, और चेन्नई से मद्रास कोरियर आदि समाचार पत्र प्रकाशित होने लगे। इन समाचार पत्रों की विशेषता यह थी कि इनमें परस्पर प्रतिस्पर्धा के स्थान पर सहयोग था। मद्रास सरकार ने समाचार पत्रों पर अंकुश लगाने के लिए कड़े फैसले भी लिए। मुबंई और मद्रास से शुरू हुए पत्रों की उग्रता हिक्की की तुलना में कम थी। हालांकि वे भी कंपनी शासन के पक्षधर नहीं थे। मई 1799 में सर वेलेजली ने सबसे पहले प्रेस एक्ट बनाया जो कि भारतीय पत्रकारिता जगता का पहला कानून था। एक प्रमुख बात जो देखने को मिली वो थी अखबारों को शुरू करने वाले लोगों की कठिनाई। बंगाल जर्नल के संपादक बिलियम डुएन को भी पूर्ववत् संपादकों की तरह ही भारत छोड़ना पड़ा।

हिन्दी पत्रकारिता का उद्भव (1826-1867)

उदन्त मार्तण्ड: हिन्दी पत्रकारिता का आरंभ 30 मई 1826 ई. से हिन्दी के प्रथम साप्ताहिक पत्र ‘उदंत मार्तण्ड’ द्वारा हुआ जो कोलकाता से कानपुर निवासी पं. युगल किशोर शुक्ल द्वारा प्रकाशित किया गया था। श्री शुक्ल पहले सरकारी नौकरी में थे, लेकिन उन्होंने उसे छोड़कर समाचार पत्र का प्रकाशन करना उचित समझा। हालांकि हिन्दी में समाचार पत्र का प्रकाशन करना एक मुस्किल काम था, क्योंकि उस दौरान इस भाषा के लेखन में पारंगत लोग उन्हें नहीं मिल पा रहे थे। उन्होंने अपने प्रवेशांक में लिखा था कि ‘‘यह उदन्त मार्तण्ड’हिन्दुस्तानिया के हित में पहले-पहल प्रकाशित है, जो आज तक किसी ने नहीं चलाया। अंग्रेजी, पारसी और बंगला में समाचार का कागज छपता है उसका सुख उन बोलियों को जानने वालों को ही होता है और सब लोग पराए सुख से सुखी होते हैं। इससे हिन्दुस्तानी लोग समाचार पढ़े और समझ लें, पराई अपेक्षा न करें और अपनी भाषा की उपज न छोड़े।....’’   उदंत मार्तण्ड का मूल्य प्रति अंक आठ आने और मासिक दो रुपये था। क्योंकि इस अखबार को सरकार विज्ञापन देने में उपेक्षा पूर्ण रवैया अपनाती थी।यह दुर्भाग्य ही था कि हिन्दी पत्रकारिता का उदय के साथ ही आर्थिक संकट से भी इसको रूबरू होना पड़ा।  यह पत्र सरकारी सहयोग के अभाव  और ग्राहकों की कमी के कारण कम्पनी सरकार के प्रतिबन्धों से अधिक नहीं लड़ पाया। लेकिन आर्थिक संकट और बंगाल में हिन्दी के जानकारों की कमी के चलते आखिरकार ठीक 18 महीने के पश्चात सन् 1827 में इसे बंद करना पड़ा।  तमाम कारणों के बाद भी केवल 18 माह तक चलने वाले इस अखबार ने हिन्दी पत्रकारिता को एक नई दिशा देने का काम तो कर ही दिया।  उन्होंने अपने अंतिम पृष्ठ में लिखा-
      "आज दिवस को उग चुक्यो मार्तण्ड उदन्त।
      अस्तांचल को जात है दिनकर अब दिन अंत।"
आर्थिक संकटों के चलते ज्यादातर हिन्दी समाचार पत्रों को काफी कठिनाइयाँ आई और उनमें ज्यादातर बंद करने पड़े। हिन्दी पत्रों की इस श्रंखला में श्री भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की ‘कवि वचन सुधा’और‘हरिश्चन्द्र चन्द्रिका’तथा बालबोधिनी कोलकाता के ‘भारतमित्र’ प्रयोग के‘हिन्दी प्रदीप’, कानपुर के ‘ब्राह्मण’ जैसे पत्रों ने हिन्दी पत्रकारिता की एक नई परंपरा स्थापित की। उस समय हिन्दी के पत्र साहित्यिक, सामाजिक एवं राजनीतिक दृष्टिकोण को प्रसारित करने अथवा प्रभावित करने के उद्देश्य से निकाले जाते थे और इस अर्थ में वे देश के अन्य समाचार पत्रों से भिन्न नहीं थे, क्योंकि उस समय पत्रकारिता इतनी कठिन थी। शिक्षा के अभाव में उद्योग समाप्त हो रहे थे। जब  विश्व में कहीं लड़ाई होती थी तो उसकासीधा प्रभाव समाचार पत्रों पर पड़ता था। युद्ध के दौरान ‘राजस्थान समाचार’ को दैनिक पत्र का दर्जा प्राप्त हो गया, परन्तु जब युद्ध बन्द हो गया तो वह दैनिक भी बंद हो गया। कोलकाता के ‘भारतमित्र’ का भी दो बार दैनिक के रूप में प्रकाशन हुआ था परन्तु वह अल्प अवधि तक ही जीवित रह सका। कानपुर के श्री गणेश शंकर विद्यार्थी का ‘प्रताप’, काशी का ‘आज’, प्रयाग का ‘अभ्युदय’ दिल्ली से स्वामी श्रद्धानन्द का ‘अर्जुन’ और फिर उनके पुत्र पं. इन्द्र विद्यावाचस्पति का ‘वीर अर्जुन’ ऐसे पत्र थे, जो निश्चित उद्देश्यों और विचारों को लेकर प्रकाशित किए गए थे। स्वाधीनता के समय तक दिल्ली में अनेक दैनिक पत्र थे। इनमें ‘वीर अर्जुन’ सबसे पुराना था। 1936 ई. में ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ के साथ इसका हिन्दी संस्करण‘हिन्दुस्तान’ भी प्रकाशित हुआ। मार्च 1947 ई. में ‘नवभारत’, ‘विश्वमित्र’ और एक दैनिक पत्र‘नेताजी’ के नाम से प्रकाशित हुूआ था। उद्योग की दौड़ में इनमें से केवल दो पत्र‘हिन्दुस्तान’ और ‘नवभारत टाइम्स’ ही रह गए। ‘वीर अर्जुन’ कई हाथों मेंं बिका,  और लोकप्रिय हुआ, लेकिन उसका पुराना व्यक्तित्व और महत्व समाप्त हो गया। स्वाधीनता से पूर्व हिन्दी के अनेक दैनिक और साप्ताहिक पत्र विद्यमान थे। इनमें दिल्ली का ‘वीर अर्जुन’, आगरा का ‘सैनिक’, कानपुर का ‘प्रताप’ वाराणसी का संसार, पटना का राष्ट्रवाणी और नवशक्ति  साप्ताहिक पत्र थे।  मध्य प्रदेश में खण्डवा का कर्मवीर राष्ट्रीय चेतना से ओत प्रोतलेखन के लिए प्रसिद्ध था। इलाहाबाद की इंडियन प्रेस से प्रकाशित होने वाला साप्ताहिक पत्र देशदूत था, जो हिन्दी का एक सचित्र साप्ताहिक पत्र था। उस समय के पत्रों में  चाहे वह सैनिक, प्रताप, अभ्यूदय अथवा आज जो भी हो उनमें राजनीतिक विचार एवं साहित्यिक सामग्री भरपूर मात्रा में थी। यशपाल की कहानियाँ सर्वप्रथम कानपुर के साप्ताहिक पत्र प्रताप में प्रकाशित हुई थी। उस समय हिन्दी में कुछ उच्च कोटि के मासिक पत्र भी थे जो विभिन्न स्थानों से प्रकाशित होते थे। हिन्दी पत्रकारिता में हिन्दी के कवियों, लेखकों, आलोचकों को मुख्य रूप से प्रोत्साहन दिया जाता था।  हिन्दी पत्र का संपादक हिन्दी  के विकास से जुड़ी गतिविधियों को प्रोत्साहन देना अपना कत्र्तव्य समझता था। उस समय की भाषा में इन्द्रजी का वीर अर्जुन, गणेश जी और उनके बाद नवीन जी का प्रताप, पराड़कर जी का आज, पं. माखनलाल चतुर्वेदी का कर्मवीर, प्रेमचंद जी का हंस और पं. बनारसी दास चतुर्वेदी का विशाल भारत था

हिन्दी पत्रकारिता के विकास युग

आदि युग- हिन्दी पत्रकारिता के उद्भव काल अर्थात् 30 मई 1826 को पं. जुगल किशोर शुक्ल द्वारा उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन आरंभ करने से 1872 तक उसका आदि युग रहा। भारतीयपत्रकारिता के उस आरंभिक युग में पत्रकारिता का उद्देश्य जनमानस में जागरुकता पैदा करना था। इस दौरान 1857 की क्रांति का प्रभाव भी लोगों पर देखने को मिला । भारतेन्दु युग- हिन्दी साहित्य के समान ही हिन्दी पत्रकारिता मे भी भारतेन्दु हरिश्चन्द्र अपना एक अलग ही स्थान है।  भारतेन्दु जी ने 1868 से ही पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखना आरंभ कर दिया था।  पत्रकारों के इस युग में पत्रकारिता का उद्देश्य जनता में राष्ट्रीय एकता की भावना जागृत करना था। भारतेन्दु युग 1900 ई. सन माना जाता है। इस दौरान महिलाओं की समस्याओं पर आधारित बालबोधनी पत्रिका का भी प्रकाशन किया। मालवीय युग- 1887 में कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह ने मालवीय जी कि संपादकत्व में ‘हिन्दोस्थान’ नाम समाचार पत्र का प्रकाशन आरंभ किया था। बाद में मालवीय जी ने स्वयं ‘अभ्युदय’ नामक पत्रिका निकाली। बालमुकुन्द गुप्त, अमृतलाल चक्रवर्ती, गोपाल राम गहमरी आदि उस युग के प्रमुख संपादक थे। 1890 से 1905 तक के राजनैतिक परिवर्तन वाले  युग में पत्रकारिता कालक्ष्य भी राजनैतिक समझ को जागृत करना था।
द्विवेदी युग- पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा 1903 में सरस्वती का प्रकाशन करने के साथ ही पत्रकारिता को एक नया स्वरूप मिल गया। इस दौरान पत्रकारिता का विस्तार भी तेजी से हुआ। द्विवेदी युग का समय 1905 से 1920 माना जाता है। द्विवेदी युग में देश के कोने-कोने से पत्र-पत्रिकाओं का बड़ी तादाद में प्रकाशन होने लगा।
गांधी युग- मोहनदास करमचन्द गांधी अर्थात महात्मा गांधी का हिन्दी पत्रकारिता बड़ा योगदान रहा है। गांधी युग 1920 से 1947 तक माना जाता है। इस दौर में स्वतंत्रता आंदोलनो में भी तेजी आई थी आजादी को प्राप्त करने की होड़ में इन आंदोलनो के साथ पत्रकारिताभी काफी विकसीत होने लगी।इन महत्वपूर्ण वर्षो में ही हिन्दी और भारतीय पत्रकारिता के मानक निर्धारित हुए। उन्हीं वर्षों में ही विश्व पत्रकारिता जगत मे भारतीय पत्रकारिता की विशेष पहचान बनी। शिवप्रसाद गुप्त, गणेशशंकर विद्यार्थी, अम्बिका प्रसाद वजपेयी,माखनलाल चतुर्वेदी, बाबूराम विष्णु पराड़कर आदि स्वनामधन्य पत्रकार उसी युग के हैं। कर्मवीर, प्रताप, हरिजन, नवजीवन, इंडियन ओपीनियन आदि दर्जनों पत्र पत्रिकाओं ने उस युग में स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई उर्जा प्रदान की ।
आधुनिक युग- स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर अब तक के वर्षों की हिन्दी पत्रकारिता की विकास यात्रा को आधुनिक युग में रखा जाता है। इस युग में पत्रकारिता के विषय क्षेत्र का विस्तार और नए आयामों का उद्भव हुआ है आधुनिक दौर में भाषा और खबरों के चयन में भी काफी परिवर्तन देखने का मिल रहे हैं। खासतौर पर अखबारों की खबर पर समाज की आधुनिक सोच का प्रभाव भी पूरी तरह से देखने को मिल रहा है। इतना ही नहीं अखबारों में प्रबंधन और विज्ञापन के बड़ते प्रभाव का असर भी हो रहा है। हर दिन नए नए अखबार एक नए स्वरूप में लोगों के सामने अ रहे है। खोजी पत्रकारिता का समावेश भी तेजी से अखबारों को अपना चपेटे में ले रहा है। ज्यादातर अखबार इंटरनेट पर भी अपने सारे संस्करण उपलब्ध करा रहे हैं। अन्य किताबों से संकलित करके पिछले कई सालों पुराने समाचार पत्र के विकास को जानने का प्रयास किया है। कुछ ऐसे अखबार और उनके प्रकाशन के वर्षो का विवरण हम छात्रों की सुविधा के लिए दे रहें है।

एक शताब्दी से अधिक पुराने समाचार पत्र
1 बाम्बे समाचार, गुजराती दैनिक, बंबई                                        1822
2 क्राइस्ट चर्च स्कूल (बंबई शिक्षा समिति की पत्रिका)                    1825
  द्विभाषी वार्षिक पत्र, बंबई
3 जाम-ए-जमशेद, गुजराती दैनिक, बंबई                                     1832
4 टाइम्स आफ इंडिया अंग्रेजी दैनिक, बंबई                                   1838
5 कैलकटा रिव्यू, अंग्रेजी त्रैमासिक कलकत्ता                               1844
6 तिरुनेलवेलि डायोसेजन मैगजीन, तमिल मासिक तिरुनेलवेलि  1849
7 एक्जा़मिनर, अंग्रेज़ी साप्ताहिक, बंबई                                       1850
8 गार्जियन, अंग्रेज़ी पाक्षिक, मद्रास                                               1851
9 ए इंडियन, पुर्तगाली साप्ताहिक, मारगांव                                   1861  
10 बेलगाम समाचार, 10 मराठी साप्ताहिक बेलगाम                     1863
11 न्यू मेन्स ब्रैड्शा, अंग्रेज़ी मासिक कलकत्ता                              1865
12 पायनीयर, अंग्रेज़ी दैनिक, लखनऊ                                           1865
13 अमृत बाजार पत्रिका, अंग्रेज़ी दैनिक कलकत्ता                         1868
14 सत्य शोधक, मराठी साप्ताहिक, रत्नगिरी                                1871
15 बिहार हैरॉल्ड, अंग्रेज़ी साप्ताहिक, पटना                                   1874
16 स्टेट्समैन, (द) अंग्रेज़ी दैनिक, कलकत्ता                                  1875
17 हिन्दू, अंग्रेज़ी दैनिक, मद्रास                                                     1878
18 प्रबोध चंद्रिका, मराठी साप्ताहिक, जलगांव                               1880
19 केसरी, मराठी दैनिक पुणे                                                         1881
20 आर्य गजट, उर्दू साप्ताहिक, दिल्ली                                           1884
21 दीपिका, मलयालम दैनिक, कोट्टायम                                        1887
22 न्यू लीडर,अंग्रेजी साप्ताहिक, मद्रास                                         1887
23 कैपिटल, अंग्रेजी साप्ताहिक, कलकत्ता                                    1888

प्रमुख प्रकाशन समूह और उनकी पत्रिकाएं :

1-बेनट कॉलमेन एण्ड कम्पनी लि. (पब्लिक लि.)- टाइम्स आफ इंडिया , इकोनेमिक टाइम्स (अंग्रेजी दैनिक 1961), नवभारत टाइम्स (हिन्दी दैनिक,1950), महाराष्ट्र टाइम्स (मराठी दैनिक,1972),  सांध्य टाइम्स (हिन्दी दैनिक,1970), धर्मयुग(हिन्दी पाक्षिक,1957), टाइम्स आफ इंडिया (गुजराती दैनिक,1989)
2-इंडियन एक्सप्रेस (प्रा. लि. कम्पनी)- लोकसत्ता (मराठी दैनिक,1948), इंडियन एक्सप्रेस (अंग्रेजी दैनिक1953) फाइनेशियल एक्सप्रेस (अंग्रेजी दैनिक 1977), लोक प्रभा (मराठी साप्ताहिक 1974), जनसत्ता (हिन्दी 1983), समकालीन(गुजराती दैनिक 1983) स्क्रीन (अंग्रेजी साप्ताहिक,1950), दिनमानी (तमिल दैनिक,1957)
3-आनन्द बाजार पत्रिका(प्रा.लि.)- आनन्द बाजार पत्रिका (बंगाली दैनिक ,1920), बिजनेस स्टैण्डर्ड (अंग्रेजी दैनिक 1976), टेलीग्राफ (अंगे्रजी दैनिक1980), संडे (अंग्रेजी साप्ताहिक1979), आनन्द कोष (बंगाली पाक्षिक 1985),स्पोर्ट्स वल्र्ड  (अंग्रेजी साप्ताहिक,1978)  बिजनेस वल्र्ड (अंग्रेजी पाक्षिक,1981)
4-मलायालम मनोरमर लि. (पब्लिक लि.)- मलयालम मनोरमा (दैनिक,1957)द वीक (अंगे्रजी दैनिक1982), मलयालम मनोरमा (मलसालम साप्ताहिक,1951)
5- अमृत बाजार पत्रिका प्रा. लि.- अमृत बाजार पत्रिका (अंगे्रजी दैनिक1868), युगान्तर(बंगाली दैनिक,1937), नारदन इंडिया पत्रिका(अंगे्रजी दैनिक1959), (हिन्दी दैनिक 1979)
6-हिन्दी समाचार लि(पब्लिक लि.)- हिन्दी समाचार (उर्दू दैनिक,1940 ,) पंजाब केसरी (हिन्दी दैनिक,1965)
7- स्टेट्मैन लिमिटेड (प्रा. लि.)- स्टेट्मैन (अंगे्रजी दैनिक1875) 
8- मातृभूमि प्रिंटिंग एण्ड पब्लिशिंग कम्पनी लि.(प्रा. लि.)- मातृभूमि डेली (मलयांलम दैनिक ,1962), चित्रभूमि (मलयालम साप्ताहिक11- उषोदया पब्लिकेशन प्रा. लि.-
रानी मुथु (तमिल मासिक 1969), इन्दू (तेलगु दैनिक 1973), न्यूज टाइम्स (अंगे्रजी दैनिक1984)
12- कस्तूरी एण्ड संस लिमेटेड (प्रा. लि.)- हिन्दू (अंगे्रजी दैनिक 1878), स्पोटर्स स्टार (अंगे्रजी साप्ताहिक 1878), फ्रंट लाइन (अंग्रेजी पाक्षिक)
13-द प्रिंटर्स (मैसूर लिमिटेड)- दक्खन हैरल्ड(अंगे्रजी दैनिक 1948), प्रजावागी (कन्नड़ दैनिक 1948),   सुधा (कन्न्ड साप्ताहिक 1948), मयुर (कन्न्ड मासिक 1968)
14-सकाल पेपर्स (प्रा. लि.)- सकाल (मराठी दैनिक,1948), संडे सकाल (मराठी साप्ताहिक 1980), साप्ताहिक सकाल (मराठी साप्ताहिक 1987), अर्धमानियन (मराठी साप्ताहिक 1992),
15-मैं जागरण प्रकाशन प्रा.लि.- जागरण (हिन्दी दैनिक 1947)
16-द ट्रिब्यून ट्रस्ट- (अंगे्रजी दैनिक 1957), ट्रब्यून (हिन्दी दैनिक 1978), ट्रब्यून (पंजाबी दैनिक 1978)
17-लोक प्रकाशन (प्रा. लि.)- गुजरात समाचार (गुजराती दैनिक 1932)
18-सौराष्ट्र ट्रस्ट- जन्म भूमी (गुजराती दैनिक, 1934), जन्मभूमी प्रवासी (गुजराती दैनिक 1939), फुलछाव (गुजराती दैनिक ,1952), कच्छमित्र (गुजराती साप्ताहिक ,1957), व्यापार (सप्ताह में दो बार,गुजराती, 1948)
19-ब्लिट्ज पब्लिकेशन्स(प्रा. लि.)- ब्लिट्ज न्यूज मैगजीन (अंगे्रजी साप्ताहिक,1957), ब्लिट्ज (उर्दू साप्ताहिक,1963), ब्लिट्ज (हिन्दी साप्ताहिक 1962), सीने ब्लिट्ज (अंगे्रजी साप्ताहिक)
20-टी. चन्द्रशेखर रेड्डी तथा अन्य (साझेदारी)- दक्खन क्रोनिकल (अंगे्रजी दैनिक 1938),आंध्रभूमी (तेलगु दैनिक, 1960),आंध्र भूमी सचित्र बार पत्रिका (तेलगु साप्ताहिक 1977)
21-संदेश लिमिटेड (पब्लिक लिमिटेड)- संदेश (गुजराती दैनिक 1923), श्री (गुजराती साप्ताहिक 1962), धर्म संदेश (गुजराती पाक्षिक1965)

पत्रकारिता के प्रकार : ग्रामीण पत्रकारिता, आर्थिक, खेल, रेडियो, टेलीविजन, फिल्म, फोटो, खोजी, अनुसंधान, वृत्तांत, अपराध। 

Friday 27 December 2013

समाचार लेखन और संपादन

परिचय: मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इसलिए वह एक जिज्ञासु प्राणी है। मनुष्य जिस समुह में, जिस समाज में और जिस वातावरण में रहता है वह उस बारे में जानने को उत्सुक रहता है। अपने आसपास घट रही घटनाओं के बारे में जानकर उसे एक प्रकार के संतोष, आनंद और ज्ञान की प्राप्ति होती है। इसके लिये उसने प्राचीन काल से ही तमाम तरह के तरीकों, विधियों और माध्यमों को खोजा और विकसित किया। पत्र के जरिये समाचार प्राप्त करना इन माध्यमों में सर्वाधिक पुराना माध्यम है जो लिपि और डाक व्यवस्था के विकसित होने के बाद अस्तित्व में आया। पत्र के जरिये अपने प्रियजनों मित्रों और शुभाकांक्षियों को अपना समाचार देना और उनका समाचार पाना आज भी मनुष्य के लिये सर्वाधिक लोकप्रिय साधन है। समाचारपत्र रेडियो टेलिविजन समाचार प्राप्ति के आधुनिकतम साधन हैं जो मुद्रण रेडियो टेलीविजन जैसी वैज्ञानिक खोज के बाद अस्तित्व में आये हैं।

समाचार की परिभाषा

लोग आमतौर पर अनेक काम मिलजुल कर ही करते हैं। सुख दुख की घड़ी में वे साथ होते हैं। मेलों और उत्सव में वे साथ होते हैं। दुर्घटनाओं और विपदाओं के समय वे साथ ही होते हैं। इन सबको हम घटनाओं की श्रेणी में रख सकते हैं। फिर लोगों को अनेक छोटी बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। गांव कस्बे या शहर की कॉलोनी में बिजली पानी के न होने से लेकर बेरोजगारी और आर्थिक मंदी जैसी समस्याओं से उन्हें जूझना होता है। विचार घटनाएं और समस्यों से ही समाचार का आधार तैयार होता है। लोग अपने समय की घटनाओं रूझानों और प्रक्रियाओं पर सोचते हैं। उनपर विचार करते हैं और इन सबको लेकर कुछ करते हैं या कर सकते हैं। इस तरह की विचार मंथन प्रक्रिया के केन्द्र में इनके कारणों प्रभाव और परिणामों का संदर्भ भी रहता है। समाचार के रूप में इनका महत्व इन्हीं कारकों से निर्धारित होना चाहिये। किसी भी चीज का किसी अन्य पर पड़ने वाले प्रभाव और इसके बारे में पैदा होने वाली सोच से ही समाचार की अवधारणा का विकास होता है। किसी भी घटना विचार और समस्या से जब काफी लोगों का सरोकार हो तो यह कह सकतें हैं कि यह समाचार बनने योग्य है।

समाचार किसी बात को लिखने या कहने का वह तरीका है जिसमें उस घटना, विचार, समस्या के सबसे अहम तथ्यों या पहलुओं के सबसे पहले बताया जाता है और उसके बाद घटते हुये महत्व क्रम में अन्य तथ्यों या सूचनाओं को लिखा या बताया जाता है। इस शैली में किसी घटना का ब्यौरा कालानुक्रम के बजाये सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना से शुरु होता है।
  •       किसी नई घटना की सूचना ही समाचार है : डॉ निशांत सिंह
  •       किसी घटना की नई सूचना समाचार है : नवीन चंद्र पंत
  •       वह सत्य घटना या विचार जिसे जानने की अधिकाधिक लोगों की रूचि हो : नंद किशोर त्रिखा
  •       किसी घटना की असाधारणता की सूचना समाचार है : संजीव भनावत
  •       ऐसी ताजी या हाल की घटना की सूचना जिसके संबंध में लोगों को जानकारी न हो : रामचंद्र वर्मा

समाचार के मूल्य

1 व्यापकता : समाचार का सीधा अर्थ है-सूचना। मनुष्य के आस दृ पास और चारों दिशाओं में घटने वाली सूचना। समाचार को अंग्रेजी के न्यूज का हिन्दी समरुप माना जाता है। न्यूज का अर्थ है चारों दिशाओं अर्थात नॉर्थ, ईस्ट, वेस्ट और साउथ की सूचना। इस प्रकार समाचार का अर्थ पुऐ चारों दिशाओं में घटित घटनाओं की सूचना।

2 नवीनता: जिन बातों को मनुष्य पहले से जानता है वे बातें समाचार नही बनती। ऐसी बातें समाचार बनती है जिनमें कोई नई सूचना, कोई नई जानकारी हो। इस प्रकार समाचार का मतलब हुआ नई सूचना। अर्थात समाचार में नवीनता होनी चाहिये।

3 असाधारणता: हर नई सूचना समाचार नही होती। जिस नई सूचना में समाचारपन होगा वही नई सूचना समाचार कहलायेगी। अर्थात नई सूचना में कुछ ऐसी असाधारणता होनी चाहिये जो उसमें समाचारपन पैदा करे। काटना कुत्ते का स्वभाव है। यह सभी जानते हैं। मगर किसी मनुष्य द्वारा कुत्ते को काटा जाना समाचार है क्योंकि कुत्ते को काटना मनुष्य का स्वभाव नही है। कहने का तात्पर्य है कि नई सूचना में समाचार बनने की क्षमता होनी चाहिये।

4 सत्यता और प्रमाणिकता : समाचार में किसी घटना की सत्यता या तथ्यात्मकता होनी चाहिये। समाचार अफवाहों या उड़ी-उड़ायी बातों पर आधारित नही होते हैं। वे सत्य घटनाओं की तथ्यात्मक जानकारी होते हैं। सत्यता या तथ्यता होने से ही कोई समाचार विश्वसनीय और प्रमाणिक होते हैं।

5 रुचिपूर्णता: किसी नई सूचना में सत्यता और समाचारपन होने से हा वह समाचार नहीं बन जाती है। उसमें अधिक लोगों की दिसचस्पी भी होनी चाहिये। कोई सूचना कितनी ही आसाधरण क्यों न हो अगर उसमे लोगों की रुचि नही है तो वह सूचना समाचार नहीं बन पायेगी। कुत्ते द्वारा किसी सामान्य व्यक्ति को काटे जाने की सूचना समाचार नहीं बन पायेगी। कुत्ते द्वारा काटे गये व्यक्ति को होने वाले गंभीर बीमारी की सूचना समाचार बन जायेगी क्योंकि उस महत्वपूर्ण व्यक्ति में अधिकाधिक लोगों की दिचस्पी हो सकती है।

6 प्रभावशीलता : समाचार दिलचस्प ही नही प्रभावशील भी होने चाहिये। हर सूचना व्यक्तियों के किसी न किसी बड़े समूह, बड़े वर्ग से सीधे या अप्रत्यक्ष रुप से जुड़ी होती है। अगर किसी घटना की सूचना समाज के किसी समूह या वर्ग को प्रभावित नही करती तो उस घटना की सूचना का उनके लिये कोई मतलब नही होगा।

7 स्पष्टता : एक अच्छे समाचार की भाषा सरल, सहज और स्पष्ट होनी चाहिये। किसी समाचार में दी गयी सूचना कितनी ही नई, कितनी ही असाधारण, कितनी ही प्रभावशाली क्यों न हो अगर वह सूचना सरल और स्पष्ट भाष में न हो तो वह सूचना बेकार साबित होगी क्योंकि ज्यादातर लोग उसे समझ नहीं पायेंगे। इसलिये समाचार की भाषा सीधीऔर स्पष्ट होनी चाहिये।उल्टा पिरामिड शैली

ऐतिहासिक विकास

इस सिद्धांत का प्रयोग 19 वीं सदी के मध्य से शुरु हो गया था, लेकिन इसका विकास अमेरिका में गृहयुद्ध के दौरान हुआ था। उस समय संवाददाताओं को अपनी खबरें टेलीग्राफ संदेश के जरिये भेजनी पड़ती थी, जिसकी सेवायें अनियमित, महंगी और दुर्लभ थी। यही नहीं कई बार तकनीकी कारणों से टेलीग्राफ सेवाओं में बाधा भी आ जाती थी। इसलिये संवाददाताओं को किसी खबर कहानी लिखने के बजाये संक्षेप में बतानी होती थी और उसमें भी सबसे महत्वपूर्ण तथ्य और सूचनाओं की जानकारी पहली कुछ लाइनों में ही देनी पड़ती थी।

लेखन प्रक्रिया:

उल्टा पिरामिड सिद्धांत : उल्टा पिरामिड सिद्धांत समाचार लेखन का बुनियादी सिद्धांत है। यह समाचार लेखन का सबसे सरल, उपयोगी और व्यावहारिक सिद्धांत है। समाचार लेखन का यह सिद्धांत कथा या कहनी लेखन की प्रक्रिया के ठीक उलट है। इसमें किसी घटना, विचार या समस्या के सबसे महत्वपूर्ण तथ्यों या जानकारी को सबसे पहले बताया जाता है, जबकि कहनी या उपन्यास में क्लाइमेक्स सबसे अंत में आता है। इसे उल्टा पिरामिड इसलिये कहा जाता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना पिरामिड के निचले हिस्से में नहीं होती है और इस शैली में पिरामिड को उल्टा कर दिया जाता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण सूचना पिरामिड के सबसे उपरी हिस्से में होती है और घटते हुये क्रम में सबसे कम महत्व की सूचनायें सबसे निचले हिस्से में होती है।समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड शैली के तहत लिखे गये समाचारों के सुविधा की दृष्टि से मुख्यतः तीन हिस्सों में विभाजित किया जाता है-मुखड़ा या इंट्रो या लीड, बॉडी और निष्कर्ष या समापन। इसमें मुखड़ा या इंट्रो समाचार के पहले और कभी-कभी पहले और दूसरे दोनों पैराग्राफ को कहा जाता है। मुखड़ा किसी भी समाचार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्यों और सूचनाओं को लिखा जाता है। इसके बाद समाचार की बॉडी आती है, जिसमें महत्व के अनुसार घटते हुये क्रम में सूचनाओं और ब्यौरा देने के अलावा उसकी पृष्ठभूमि का भी जिक्र किया जाता है। सबसे अंत में निष्कर्ष या समापन आता है। समाचार लेखन में निष्कर्ष जैसी कोई चीज नहीं होती है और न ही समाचार के अंत में यह बताया जाता है कि यहां समाचार का समापन हो गया है। मुखड़ा या इंट्रो या लीड : उल्टा पिरामिड शैली में समाचार लेखन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू मुखड़ा लेखन या इंट्रो या लीड लेखन है। मुखड़ा समाचार का पहला पैराग्राफ होता है, जहां से कोई समाचार शुरु होता है। मुखड़े के आधार पर ही समाचार की गुणवत्ता का निर्धारण होता है। एक आदर्श मुखड़ा में किसी समाचार की सबसे महत्वपूर्ण सूचना आ जानी चाहिये और उसे किसी भी हालत में 35 से 50 शब्दों से अधिक नहीं होना चाहिये। किसी मुखड़े में मुख्यतः छह सवाल का जवाब देने की कोशिश की जाती है दृ क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहां हुआ, कब हुआ, क्यों और कैसे हुआ है। आमतौर पर माना जाता है कि एक आदर्श मुखड़े में सभी छह ककार का जवाब देने के बजाये किसी एक मुखड़े को प्राथमिकता देनी चाहिये। उस एक ककार के साथ एक दृ दो ककार दिये जा सकते हैं। बॉडी: समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड लेखन शैली में मुखड़े में उल्लिखित तथ्यों की व्याख्या और विश्लेषण समाचार की बॉडी में होती है। किसी समाचार लेखन का आदर्श नियम यह है कि किसी समाचार को ऐसे लिखा जाना चाहिये, जिससे अगर वह किसी भी बिन्दु पर समाप्त हो जाये तो उसके बाद के पैराग्राफ में ऐसा कोई तथ्य नहीं रहना चाहिये, जो उस समाचार के बचे हुऐ हिस्से की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण हो। अपने किसी भी समापन बिन्दु पर समाचार को पूर्ण, पठनीय और प्रभावशाली होना चाहिये। समाचार की बॉडी में छह ककारों में से दो क्यों और कैसे का जवाब देने की कोशिश की जाती है। कोई घटना कैसे और क्यों हुई, यह जानने के लिये उसकी पृष्ठभूमि, परिपेक्ष्य और उसके व्यापक संदर्भों को खंगालने की कोशिश की जाती है। इसके जरिये ही किसी समाचार के वास्तविक अर्थ और असर को स्पष्ट किया जा सकता है। निष्कर्ष या समापन : समाचार का समापन करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि न सिर्फ उस समाचार के प्रमुख तथ्य आ गये हैं बल्कि समाचार के मुखड़े और समापन के बीच एक तारतम्यता भी होनी चाहिये। समाचार में तथ्यों और उसके विभिन्न पहलुओं को इस तरह से पेश करना चाहिये कि उससे पाठक को किसी निर्णय या निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद मिले।

समाचार संपादन

समाचार संपादन का कार्य संपादक का होता है। संपादक प्रतिदिन उपसंपादकों और संवाददाताओं के साथ बैठक कर प्रसारण और कवरेज के निर्देश देते हैं। समाचार संपादक अपने विभाग के समस्त कार्यों में एक रूपता और समन्वय स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

संपादन की प्रक्रिया-

रेडियो में संपादन का कार्य प्रमुख रूप से दो भागों में विभक्त होता है। 
1. विभिन्न श्रोतों से आने वाली खबरों का चयन
2. चयनित खबरों का संपादन :  रेडियो के किसी भी स्टेशन में  खबरों के आने के कई स्रोत होते हैं। जिनमें संवाददाता, फोन, जनसंपर्क, न्यूज एजेंसी, समाचार पत्र और आकाशवाणी मुख्यालय प्रमुख हैं। इन स्रोतों से आने वाले समाचारों को राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर खबरों का चयन किया जाता है।  यह कार्य विभाग में बैठे उपसंपादक का होता है। उदाहरण के लिए यदि हम आकाशवाणी के भोपाल केन्द्र के लिए समाचार बुलेटिन तैयार कर रहे हैं तो हमें लोकल याप्रदेश स्तर की खबर को प्राथमिकता देनी चाहिए। तत् पश्चात् चयनित खबरों का भी संपादन किया जाना आवश्यक होता है। संपादन की इस प्रक्रिया में बुलेटिन की अवधि को ध्यान में रखना जरूरी होता है। किसी रेडियो बुलेटिन की अवधि 5, 10 या अधिकतम 15मिनिट होती है।

संपादन के महत्वपूर्ण चरण

1.  समाचार आकर्षक होना चाहिए।
2.  भाषा सहज और सरल हो।
3.  समाचार का आकार बहुत बड़ा और उबाऊ नहीं होना चाहिए।
4. समाचार लिखते समय आम बोल-चाल की भाषा के शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
5. शीर्षक विषय के अनुरूप होना चाहिए।
6.  समाचार में प्रारंभ से अंत तक तारतम्यता और रोचकता होनी चाहिए।
7.  कम शब्दों में समाचार का ज्यादा से ज्यादा विवरण होना चाहिए।
8.  रेडियो बुलेटिन के प्रत्येक समाचार में श्रोताओं के लिए सम्पूर्ण जानकारी होना
 चाहिये । 
9.   संभव होने पर समाचार स्रोत का उल्लेख होना चाहिए।
10.  समाचार छोटे वाक्यों में लिखा जाना चाहिए।
11.  रेडियो के सभी श्रोता पढ़े लिखे नहीं होते, इस बात को ध्यान में रखकर भाषा और शब्दों का चयन किया जाना चाहिए।
12. रेडियो श्रव्य माध्यम है अतः समाचार की प्रकृति ऐसी होनी चाहिए कि एक ही   बार सुनने पर समझ आ जाए।
13. समाचार में तात्कालिकता होना अत्यावश्यक है। पुराना समाचार   होने पर भी   इसे अपडेट कर प्रसारित करना चाहिए। 
14. समाचार लिखते समय व्याकरण और चिह्नो पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता  होती है, ताकि समाचार वाचक आसानी से पढ़ सके।

समाचार संपादन के तत्व

संपादन की दृष्टि से किसी समाचार के तीन प्रमुख भाग होते हैं-
1. शीर्षक- किसी भी समाचार का शीर्षक उस समाचार की आत्मा होती है। शीर्षक के माध्यम से न केवल श्रोता किसी समाचार को पढ़ने के लिए प्रेरित होता है, अपितु शीर्षकों के द्वारा वह समाचार की विषय-वस्तु को भी समझ लेता है। शीर्षक का विस्तार समाचार के महत्व को दर्शाता है। एक अच्छे शीर्षक में निम्नांकित गुण पाए जाते हैं-
1.  शीर्षक बोलता हुआ हो। उसके पढ़ने से समाचार की विषय-वस्तु का आभास  हो जाए। 
2.  शीर्षक तीक्ष्ण एवं सुस्पष्ट हो। उसमें श्रोताओं को आकर्षित करने की क्षमता हो।
3.  शीर्षक वर्तमान काल में लिखा गया हो। वर्तमान काल मे लिखे गए शीर्षक घटना की ताजगी के द्योतक होते हैं।
4. शीर्षक में यदि आवश्यकता हो तो सिंगल-इनवर्टेड कॉमा का प्रयोग करना चाहिए। डबल इनवर्टेड कॉमा अधिक स्थान घेरते हैं।
5.  अंग्रेजी अखबारों में लिखे जाने वाले शीर्षकों के पहले ‘ए’ ‘एन’, ‘दी’ आदि भाग का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। यही नियम हिन्दी में लिखे शीर्षकों पर भी लागू होता है। 
6. शीर्षक को अधिक स्पष्टता और आकर्षण प्रदान करने के लिए सम्पादक या   उप-सम्पादक का सामान्य ज्ञान ही अन्तिम टूल या निर्णायक है। 
7.  शीर्षक में यदि किसी व्यक्ति के नाम का उल्लेख किया जाना आवश्यक हो तो  उसे एक ही पंक्ति में लिखा जाए। नाम को तोड़कर दो पंक्तियों में लिखने से  शीर्षक का सौन्दर्य समाप्त हो जाता है।
8.  शीर्षक कभी भी कर्मवाच्य में नहीं लिखा जाना चाहिए।   

2. आमुख- आमुख लिखते समय ‘पाँच डब्ल्यू’ तथा एक-एच के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। अर्थात् आमुख में समाचार से संबंधित छह प्रश्न-Who, When, Where, What और How का अंतर पाठक को मिल जाना चाहिए। किन्तु वर्तमान में इस सिद्धान्त का अक्षरशः पालन नहीं हो रहा है। आज छोटे-से-छोटे आमुख लिखने की प्रवृत्ति तेजी पकड़ रही है। फलस्वरूप इतने प्रश्नों का उत्तर एक छोटे आमुख में दे सकना सम्भव नहीं है। एक आदर्श आमुख में 20 से 25 शब्द होना चाहिए।

3. समाचार का ढाँचा- समाचार के ढाँचे में महत्वपूर्ण तथ्यों को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करना चाहिए। सामान्यतः कम से कम 150 शब्दों तथा अधिकतम 400 शब्दों में लिखा जाना चाहिए। श्रोताओं को अधिक लम्बे समाचार आकर्षित नहीं करते हैं।

 समाचार सम्पादन में समाचारों की निम्नांकित बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है-
  1. समाचार किसी कानून का उल्लंघन तो नहीं करता है। 
  2.  समाचार नीति के अनुरूप हो।
  3.  समाचार तथ्याधारित हो।
  4.  समाचार को स्थान तथा उसके महत्व के अनुरूप विस्तार देना।
  5.  समाचार की भाषा पुष्ट एवं प्रभावी है या नहीं। यदि भाषा नहीं है तो उसे   पुष्ट बनाएँ।
  6.  समाचार में आवश्यक सुधार करें अथवा उसको पुर्नलेखन के लिए वापस   कर दें।
  7.  समाचार का स्वरूप सनसनीखेज न हो।
  8.  अनावश्यक अथवा अस्पस्ट शब्दों को समाचार से हटा दें।
  9.  ऐसे समाचारों को ड्राप कर दिया जाए, जिनमें न्यूज वैल्यू कम हो और उनका उद्देश्य किसी का प्रचार मात्र हो। 
 10. समाचार की भाषा सरल और सुबोध हो। 
 11. समाचार की भाषा व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध न हो।
 12. वाक्यों में आवश्यकतानुसार विराम, अद्र्धविराम आदि संकेतों का समुचित प्रयोग हो।
 13.  समाचार की भाषा मेंे एकरूपता होना चाहिए। 
 14.    समाचार के महत्व के अनुसार बुलेटिन में उसको स्थान प्रदान करना।

समाचार-सम्पादक की आवश्यकताएँ
एक अच्छे सम्पादक अथवा उप-सम्पादक के लिए आवश्यक होता है कि वह समाचार जगत्में अपने ज्ञान-वृद्धि के लिए निम्नांकित पुस्तकों को अपने संग्रहालय में अवश्य रखें-
1. सामान्य ज्ञान की पुस्तकें।
2. एटलस।
3. शब्दकोश।
4. भारतीय संविधान।
5. प्रेस विधियाँ।
6. इनसाइक्लोपीडिया।
7. मन्त्रियों की सूची।
8. सांसदों एवं विधायकों की सूची।
9. प्रशासन व पुलिस अधिकारियों की सूची।
10. ज्वलन्त समस्याओं सम्बन्धी अभिलेख।
11. भारतीय दण्ड संहिता (आई.पी.सी.) पुस्तक।
12. दिवंगत नेताओं तथा अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों से सम्बन्धित अभिलेख।
13. महत्वपूर्ण व्यक्तियों व अधिकारियों के नाम, पते व फोन नम्बर।
14. पत्रकारिता सम्बन्धी नई तकनीकी पुस्तकें।
15. उच्चारित शब्द

समाचार के स्रोत

कभी भी कोई समाचार निश्चित समय या स्थान पर नहीं मिलते। समाचार संकलन के लिए संवाददाताओं को फील्ड में घूमना होता है। क्योंकि कहीं भी कोई ऐसी घटना घट सकती है, जो एक महत्वपूर्ण समाचार बन सकती है। समाचार प्राप्ति के कुछ महत्वपूर्ण स्रोत निम्न हैं-
1. संवाददाता- टेलीविजन और समाचार-पत्रों में संवाददाताओं की नियुक्ति ही इसलिए होती हैकि वह दिन भर की महत्वपूर्ण घटनाओं का संकलन करें और उन्हें समाचार का स्वरूप दें।
2. समाचार समितियाँ- देश-विदेश में अनेक ऐसी समितियाँ हैं जो विस्तृत क्षेत्रों के समाचारों को संकलित करके अपने सदस्य अखबारों और टीवी को प्रकाशन और प्रसारण के लिए प्रस्तुत करती हैं। मुख्य समितियों में पी.टी.आई. (भारत), यू.एन.आई. (भारत), ए.पी. (अमेरिका),  ए.एफ.पी. (फ्रान्स), रॉयटर (ब्रिटेन)।
3. प्रेस विज्ञप्तियाँ- सरकारी विभाग, सार्वजनिक अथवा व्यक्तिगत प्रतिष्ठान तथा अन्य व्यक्ति या संगठन अपने से सम्बन्धित समाचार को सरल और स्पष्ट भाषा में  लिखकर ब्यूरो आफिस में प्रसारण के लिए भिजवाते हैं। सरकारी विज्ञप्तियाँ चार प्रकार की होती हैं।
(अ) प्रेस कम्युनिक्स- शासन के महत्वपूर्ण निर्णय प्रेस कम्युनिक्स के माध्यम से समाचार-पत्रों को पहुँचाए जाते हैं। इनके सम्पादन की आवश्यकता नहीं होती है। इस रिलीज के बाएँ ओर सबसे नीचे कोने पर सम्बन्धित विभाग का नाम, स्थान और निर्गत करने की तिथि अंकित होती है। जबकि टीवी के लिए रिर्पोटर स्वयं जाता है 
(ब) प्रेस रिलीज-शासन के अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण निर्णय प्रेस रिलीज के द्वारा समाचार-पत्र और टी.वी. चैनल के कार्यालयों को प्रकाशनार्थ भेजे जाते हैं। 
(स) हैण्ड आउट- दिन-प्रतिदिन के विविध विषयों, मन्त्रालय के क्रिया-कलापों की सूचना हैण्ड-आउट के माध्यम से दी जाती है। यह प्रेस इन्फारमेशन ब्यूरो द्वारा प्रसारित किए जाते हैं।
(द) गैर-विभागीय हैण्ड आउट- मौखिक रूप से दी गई सूचनाओं को गैर-विभागीय हैण्ड आउट के माध्यम से प्रसारित किया जाता है। 
4. पुलिस विभाग- सूचना का सबसे बड़ा केन्द्र पुलिस विभाग का होता है। पूरे जिले में होनेवाली सभी घटनाओं की जानकारी पुलिस विभाग की होती है, जिसे पुलिसकर्मी-प्रेस के प्रभारी संवाददाताओं को बताते हैं।
5. सरकारी विभाग- पुलिस विभाग के अतिरिक्त अन्य सरकारी विभाग समाचारों के केन्द्र होते हैं। संवाददाता स्वयं जाकर खबरों का संकलन करते हैं अथवा यह विभाग अपनीउपलब्धियों को समय-समय पर प्रकाशन हेतु समाचार-पत्र और टीवी कार्यालयों को भेजते रहते हैं।
6. चिकित्सालय- शहर के स्वास्थ्य संबंधी समाचारों के लिए सरकारी चिकित्सालयों अथवा बड़े प्राइवेट अस्पतालों से महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं।
7. कॉरपोरेट आफिस- निजी क्षेत्र की कम्पनियों के आफिस अपनी कम्पनी से सम्बन्धित समाचारों को देने में दिलचस्पी रखते हैं। टेलीविजन में कई चैनल व्यापार पर आधारित हैं।
8. न्यायालय- जिला अदालतों के फैसले व उनके द्वारा व्यक्ति या संस्थाओं को दिए गए निर्देश समाचार के प्रमुख स्रोत हैं।
9. साक्षात्कार- विभागाध्यक्षों अथवा अन्य विशिष्ट व्यक्तियों के साक्षात्कार समाचार के महत्वपूर्ण अंग होते हैं।
10. समाचारों का फॉलो-अप या अनुवर्तन- महत्वपूर्ण घटनाओं की विस्तृत रिपोर्ट रुचिकर समाचार बनते हैं। दर्शक चाहते हैं कि बड़ी घटनाओं के सम्बन्ध में उन्हें सविस्तार जानकारी मिलती रहे। इसके लिए संवाददाताओं को घटनाओं की तह तक जाना पड़ता है। 
11. पत्रकार वार्ता- सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थान अक्सर अपनी उपलब्धियों को प्रकाशित करने के लिए पत्रकारवार्ता का आयोजन करते हैं। उनके द्वारा दिए गए वक्तव्य समृद्ध समाचारों को जन्म देते हैं।
उपर्युक्त स्रोतों के अतिरिक्त सभा, सम्मेलन, साहित्यिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम,विधानसभा, संसद, मिल, कारखाने और वे सभी स्थल जहाँ सामाजिक जीवन की घटना मिलती है, समाचार के महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं।

Wednesday 25 December 2013

19वीं शताब्दी में प्रकाशित भारतीय समाचार पत्र

समाचार पत्रसंस्थापक/सम्पादकभाषाप्रकाशन स्थानवर्ष
अमृत बाज़ार पत्रिकामोतीलाल घोषबंगलाकलकत्ता1868 ई.
अमृत बाज़ार पत्रिकामोतीलाल घोषअंग्रेज़ीकलकत्ता1878 ई.
सोम प्रकाशईश्वरचन्द्र विद्यासागरबंगलाकलकत्ता1859 ई.
बंगवासीजोगिन्दर नाथ बोसबंगलाकलकत्ता1881 ई.
संजीवनीके.के. मित्राबंगलाकलकत्ता
हिन्दूवीर राघवाचारीअंग्रेज़ीमद्रास1878 ई.
केसरीबाल गंगाधर तिलकमराठीबम्बई1881 ई.
मराठाबाल गंगाधर तिलकअंग्रेज़ी--
हिन्दूएम.जी. रानाडेअंग्रेज़ीबम्बई1881 ई.
नेटिव ओपीनियनवी.एन. मांडलिकअंग्रेज़ीबम्बई1864 ई.
बंगालीसुरेन्द्रनाथ बनर्जीअंग्रेज़ीकलकत्ता1879 ई.
भारत मित्रबालमुकुन्द गुप्तहिन्दी--
हिन्दुस्तानमदन मोहन मालवीयहिन्दी--
हिन्द-ए-स्थानरामपाल सिंहहिन्दीकालाकांकर (उत्तर प्रदेश)-
बम्बई दर्पणबाल शास्त्रीमराठीबम्बई1832 ई.
कविवचन सुधाभारतेन्दु हरिश्चन्द्रहिन्दीउत्तर प्रदेश1867 ई.
हरिश्चन्द्र मैगजीनभारतेन्दु हरिश्चन्द्रहिन्दीउत्तर प्रदेश1872 ई.
हिन्दुस्तान स्टैंडर्डसच्चिदानन्द सिन्हाअंग्रेज़ी-1899 ई.
ज्ञान प्रदायिनीनवीन चन्द्र रायहिन्दी-1866 ई.
हिन्दी प्रदीपबालकृष्ण भट्टहिन्दीउत्तर प्रदेश1877 ई.
इंडियन रिव्यूजी.ए. नटेशनअंग्रेज़ीमद्रास-
मॉडर्न रिव्यूरामानन्द चटर्जीअंग्रेज़ीकलकत्ता-
यंग इंडियामहात्मा गाँधीअंग्रेज़ीअहमदाबाद8 अक्टूबर1919 ई.
नव जीवनमहात्मा गाँधीहिन्दीगुजरातीअहमदाबाद7 अक्टूबर, 1919 ई.
हरिजनमहात्मा गाँधीहिन्दी, गुजरातीपूना11 फ़रवरी1933 ई.
इनडिपेंडेसमोतीलाल नेहरूअंग्रेज़ी-1919 ई.
आजशिवप्रसाद गुप्तहिन्दी--
हिन्दुस्तान टाइम्सके.एम.पणिक्करअंग्रेज़ीदिल्ली1920 ई.
नेशनल हेराल्डजवाहरलाल नेहरूअंग्रेज़ीदिल्लीअगस्त1938 ई.
उद्दण्ड मार्तण्डजुगल किशोरहिन्दी (प्रथम)कानपुर1826 ई.
द ट्रिब्यूनसर दयाल सिंह मजीठियाअंग्रेज़ीचण्डीगढ़1877 ई.
अल हिलालअबुल कलाम आज़ादउर्दूकलकत्ता1912 ई.
अल बिलागअबुल कलाम आज़ादउर्दूकलकत्ता1913 ई.
कामरेडमौलाना मुहम्मद अलीअंग्रेज़ी--
हमदर्दमौलाना मुहम्मद अलीउर्दू--
प्रताप पत्रगणेश शंकर विद्यार्थीहिन्दीकानपुर1910 ई.
गदरग़दर पार्टी द्वाराउर्दू/गुरुमुखीसॉन फ़्रांसिस्को1913 ई.
गदरगदर पार्टी द्वारापंजाबी-1914 ई.
हिन्दू पैट्रियाटहरिश्चन्द्र मुखर्जीअंग्रेज़ी-1855 ई.
मद्रास स्टैंडर्ड, कॉमन वील, न्यू इंडियाएनी बेसेंटअंग्रेज़ी-1914 ई.
सोशलिस्टएस.ए.डांगेअंग्रेज़ी-1922 ई.