Sunday 11 August 2013

विकीलीक्स : पत्रकारिता की ताकत के आगे महाशक्ति बेबस

विकीलीक्स नाम की इंटरनेट वेबसाइट के पतले दुबले ३९ वर्षीय संपादक जूलियन पॉल असांजे की पत्रकारिता ने ये साबित कर दिया है कि कलम वो हथियार है जिसके आगे सारे शस्त्र बौने साबित होते हैं। असांजे ने अमेरिकी राजनयिक के ढाई लाख गुप्त संदेशों को अपने वेबसाइट पर जारी कर महाशक्ति को ऐसी पटखनी दी है कि इससे चोटिल होने के बाद महाशक्ति का संभलना मुश्किल हो रहा है। पिछले १० सालों से अफगानिस्तान में और सात सालों से इराक में लड रहे लडाकों से अमेरिका जितना परेशान नहीं था, आज विकीलीक्स के आगे उससे कई गुणा ज्यादा बेबस नजर आ रहा है। दरअसल इसकी वजह भी अमेरिका के अपने ही सिद्धांत है। अमेरिका अपने आप को दुनियाभर में मानवाधिकार के अगुआ के तौर पर पेश करता है। अमेरिकी लोकतंत्र को भी दुनिया का सबसे खुला लोकतंत्र माना जाता है। बाहरी तौर अमेरिका न सिर्फ अपने देश में, बल्कि दुनियाभर में सूचना का अधिकार (जानने का हक) का समर्थक करता रहा है। पिछले दिनों भारत दौरे पर आए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारत में लागू सूचना का अधिकार कानून का दिल खोलकर प्रशंसा की थी, लेकिन विकीलीक्स के खुलासे ने अमेरिका की कथनी और करनी के अंतर को पूरी दुनिया के सामने खोलकर रख दी है। बडे. बडों की होश उडा देने वाली इस बेवसाइट के जरिए लीक हुए दस्तावेजों से अब ये जग जाहिर हो गया है कि अमेरिका जानने के हक से ज्यादा छिपाने की करतूत में यकीन रखता है। इतना ही नहीं विकीलीक्स ने अमेरिकी राजनयिकों का असली चेहरा भी दुनिया के सामने बेनकाब कर दिया है। दरअसल अमेरिकी राजदूतों ने वैश्विक नेताओं के लिए जिन शब्दों और उपनामों का इस्तेमाल किया है, उससे असभ्यता की बहुत बुरी गंध आती है। इस खुलासे से अमेरिका को शर्मसार होने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय संबंध खराब होने का भय भी सताने लगा है। गुप्त संदेशों के खुलासे से जाहिर हुआ है कि अमेरिकी राजनयिक जब आपस में बातचीत करते हैं तो राजनयिक शिष्टाचार को ताक पर रख देते हैं और विदेशी राजनीतिज्ञों के बारे में अपशब्दों का प्रयोग करने से भी बाज नहीं आते। शीतयुध्द खत्म होने के बाद भी रूस के नेताओं के प्रति अमेरिकी द्वेष में कोई कमीं नहीं आई है और उनके लिए रूस के प्रधानमंत्री पुतिन अल्फा डॉग हैं जो अपने झुण्ड की अगुवाई करता है। रूसी राष्ट्रपति मेदवेदेव को पुतिन का पिछलग्गू बताया गया हैए क्योंकि वह अमेरिकियों की नजर में मरियल और दब्बू है। जर्मन चांसलर भले ही हर बात में अमेरिका की हां में हां मिलाती हों, लेकिन अमेरिकी राजनयिकों की नजर में वह सृजनशील नहीं है तथा जोखिम उठाने से कतराती हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी को नग्न सम्राट और इटली के प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी वाहियात आदमी बताया गया है, जो यूरोप में पुतिन का भोंपू हैंए तो ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद को हिटलर का विशेषण दिया गया है।
विकीलीक्स के खुलासे से केवल अमेरिकी राजनयिकों की बदजुबानी ही जाहिर नहीं होती है बल्कि इसने अमेरिका के कई काले कारनामों पर से भी पर्दा उठा दिया है। लीक दस्तावेज से खुलासा हुआ है कि अमेरिका संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून सहित यूएन नेतृत्व और सुरक्षा परिषद में शामिल चीन, रूस, फ्रांस व ब्रिटेन के प्रतिनिधियों की जासूसी में जुटा है। अमेरिकी प्रशासन के निर्देश पर यूएन के आला अधिकारियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कम्प्यूटर्स और अन्य संचार तंत्र के पासवर्ड इनकी बायोमीट्रिक जानकारियां जुटाने का काम विदेश मंत्रालय के अधिकारी करते थे। ऐसे ही खुफिया निर्देश कांगो, रवांडा, उगांडा और बुरुंडी में अमेरिकी दूतावासों में तैनात अधिकारियों को भेजे गए थे। जुटाए जाने वाली सामग्रियों में बायोमीट्रिक डाटा में डीएनएए फिंगरप्रिट्स और आइरिस स्कैन शामिल हैं और यह सब कुछ अमेरिकी राष्ट्रपति की जानकारी में हो रहा था। इस संबंध में जारी निर्देशों पर कोंडालीजा राइस यजॉर्ज बुश के कायर्काल में विदेश मंत्री और हिलेरी क्लिंटन यमौजूदा विदेश मंत्री के नाम लिखे होते थे।
भारत की उम्मीदों पर पानी फेरने वाला खुलासा भी हुआ है। अभी कुछ ही समय पहले भारत दौरे पर आए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा संयुक्त राष्ट्र में स्थाई सदस्यता की भारत की दावेदारी का समर्थन किए जाने को भारत अपनी बडी जीत के रूप में देख रहा हैए लेकिन अमेरीकी दूतावासों की ओर से भेजे गए संदेशों से यह साफ हो गया कि अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की भारतीय दावेदारी की खिल्ली उडाई थी। विकीलीक्स में सार्वजनिक किए गोपनीय दस्तावेजों के मुताबिक अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन न कहा था कि भारत ने खुद ही अपने आपको संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की दौड में सबसे आगे करार दे दिया है। गौरतलब है कि सार्वजनिक हुए संदेशों में से करीब ५०,००० राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में जारी हुए हैं। लीक दस्तावेजों के अनुसार यूरोप के बेल्जियमए नीदरलैंडए जर्मर्नी और तुर्की में अब भी करीब २०० अमेरिकी परमाणु हथियार तैनात हैं। अमेरिका के ये सबसे पुराने परमाणु हथियार बी.६१ बम १९५० के दशक के हैं जिसे शीत युध्द के दौरान संभावित युध्दक्षेत्रों के समीप ऐसे हथियार तैनात कर नाटो की सुरक्षा के प्रति कटिबध्दता प्रदर्शित करने का प्रयास किया था। वहीं इस रहस्योद्धघाटन से पता चला है कि मुसलमानों का अगुआ होने का दावा करने वाले सऊदी अरब के शाह अब्दुल्लाह ने अमेरिकी राजनयिकों से अपील की थी कि ईरान रूपी सांप का सिर कलम कर दिया जाना चाहिए। सऊदी अरब के शाह का पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को पागल और पाक की बर्बादी की वजह बताने का मामला भी सामने आया है। साथ ही पता चला है कि इस्राइल बिना अमेरिकी मदद के भी ईरान पर हमला करने की तैयारी में है।
विकीलीक्स के इन रहस्योदघाटनों से साख पर बट्टा लगने से चिंतित अमेरिक बार.बार गुप्त दस्तावेजों को लौटाने की अपील कर रहा है और ऐसा न करने पर कानूनी कार्रवाई करने की धमकी भी दे रहा है। इसके साथ ही अमेरिका एक बार फिर मानवीय होने की दुहाई देता दिख रहा है। विकीलीक्स के रहस्योद्धाटन पर तीखी प्रतिक्रिया में अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने आरोप लगाया है कि इस खुलासे से दुनियाभर के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं स्वतंत्र पर्यवेक्षकों और पत्रकारों की सुरक्षा खतरे में पड सकती है। साथ ही इससे विभिन्न देशों के बीच शांतिपूर्ण संबंधों को खराब होने की भी संभावना है लिहाजा इसे साहसिक नहीं कहा जा सकता। मानवता और शांति की दुहाई देने वाला ये वही अमेरिका है जिसने इराक युद्ध के दौरान २ पत्रकारों सहित १२ मासूम लोगों को मौत के घाट उतारने की वीडियों जारी करने के आरोप में अपने २३ वर्षीय पूर्व सैनिक ब्रैडले मैनिंग को वर्जीनिया के क्यानटिको मरीन बेस से सलाखों के पीछे डाल चुकी है जबकि मानवता के इस सपूत ने अपने राष्ट्रीय हितों की पवाह किए बिना इराक युध्द की विभीषिका और अंधाधुंध बमबारी व बल प्रयोग के कारण निर्दोष नागरिकों की मौत से विचलित होकर सच्चाई दुनिया के सामने लाने के इरादे से ये सब किया था। इसके बाद भी विकीलीक्स के खुलासे के प्रभाव पर गहराई से अध्ययन करने पर पता चलता है कि इस रिपोर्ट से अगर दुनिया में अशांति आती भी है तो इसके लिए अमेरिका खुद ही दोषी हो क्योंकि ये उनकी काली करतूतों का ही परिणाम होगा। अगर अमेरिका ऐसा कुछ करता ही नहीं तो विकीलीक्स को खुलासे का मौका कहा से मिलता आखिर लोकतंत्र और खुलेपन का दम भरने के बाद ऐसा किया ही क्यों जिससे कि वैश्विक शांति खतरे में पड जाए जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गुप्त संधियों को सही नहीं माना जाता है क्योंकि इस तरह की संधियों से अविश्वास को बढावा मिलता है और संदेह की आड में गुप्त अंतरराष्ट्रीय संधियों और गठबंधनों का जाल फैलने लगता है। इसके बाद एक छोटी सी चिंगारी भी वैश्विक शांति को खतरे में डाल देती है। द्वितीय विश्व युद्ध को अंजान तक पहुंचाने में गुप्त संधियों का बहुत बडा योगदान रहा है। यही वजह है कि जब कभी दो देशों के नेता मिलते हैं तो वार्ता के बाद प्रेस ब्रीफ करते हैंए ताकि जिन मुद्दों पर बात हुई है या सहमति बनी है उसे दुनिया के सामने रखी जा सकें। इसके बाद भी दुनिया को खतरे में डालने वाली गुप्त कूटनीति को कहीं से भी उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
विकीलीक्स ने अपना पक्ष रखते हुए साफ कर दिया है कि लोगों को जोखिम में डालने की हमारी कोई इच्छा नहीं है और न ही हम अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा को नुकसान पहुंचाने का इरादा रखते हैं। इसके साथ ही अमेरिका पर आरोप लगाया है कि उसने ही रचनात्मक वार्ता की पेशकश को ठुकरा दिया है। विकीलीक्स के मुताबिक दरअसल अमेरिकी सरकार खुलेपन के पक्ष में नहीं है और मानवाधिकार उल्लंघन तथा अन्य आपराधिक चीजों को दबाने की कोशिश कर रही है। लाख दबाव और धमकियों के बाद भी विकीलीक्स ने बेबाक कहा है कि जब तक अमेरिका हमारी पेशकश पर बातचीत के लिए तैयार नहीं होता हैए तब तक हम गुप्त सामग्रियों को जारी करते रहेगे।
विकीलीक्स के अपने विचार पर अडिग रवैये से अमेरीकियों की खिसियाहट बढती जा रही है। कलम के सिपाहियों के खिलाफ हथियार न उठाने पर ओबामा प्रशासन बेबस है। वहीं विकीलीक्स के दबंग पत्रकारिता की धार को सुस्त करने के लिए जिस अमेरिकी अधिकारी और नेता को जो मन में आ रहा है बके जा रहे हैं। कोई विकीलीक्स को आतंकी संगठन घोषित करने की मांग कर रहा है तो कोई उनके खिलाफ अलकायदा और तालिबान जैसी कार्रवाई की बात कर रहा है। रिपब्लिकन पार्टी की ओर से २०१२ की राष्ट्रपति पद की संभावित उम्मीदवार सारा पॉलिन ने ओबामा प्रशासन से पूछा है कि विकीलीक्स के मालिक जूलियन असांजे के खिलाफ इस अत्यधिक संवेदनशील दस्तावेज को बांटने के मामले में क्या कार्रवाई हुई है क्या हम इसके खिलाफ उतनी तेजी से कारर्वाई नहीं कर सकते जितनी तेजी से अल.कायदा या तालिबान नेताओं के खिलाफ करते हैं वहीं इस पर्दापाश से नाराज अमेरिका के सभी प्रमुख दलों के सांसदों ने ओबामा प्रशासन से कहा है कि प्रशासन हर संभव कानूनी उपाय करके वेबसाइट को बंद कर दे। सीनेट की विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष सीनेटर जॉन कैरी की दलील है कि इन परिस्थितियों में गोपनीय दस्तावेजों को जारी करना पूरी तरह गलत काम है क्योंकि ये बहुत सी जिंदगियों को खतरे में डाल सकता है। इसके साथ ही उन्होंने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मामला भी मानने से इनकार करते हुए कहा कि यह पेंटागन से जुडे दस्तावेजों को जारी करने के समान नहीं है बल्कि यह दस्तावेज वतर्मान समय में जारी मामलों के विश्लेषण से जुडे हैंए जिन्हें गोपनीय बनाए रखना बहुत ही जरूरी है।
पोल खुलने और दोहरा चरित्र सामने आने की बौखलाहट में अमेरिकी नेता भले ही विकीलीक्स को बंद करने की मांग कर रहे हैंए लेकिन आज के तकनीकी युग में सूचना के प्रवाह को रोक पाना शायद ही किसी के बस की बात हो। यूं तो खुलासे से पहले ही विकीलीक्स की साइट को हैक कर लिया गया था लेकिन विकीलीक्स ने पहले से तय समय पर दस्वाजों को जारीकर पत्रकारिता की ताकत को सीमित करने वालों को करारा तमाचा मारा है। दरअसल अब वो जमाना नहीं है कि किसी की प्रेस जब्त कर ली गई तो पकाशन बंद हो जाएगा। आज के मौजूदा समय को सूचना प्रौद्योगिकी का युग कहा जाता है। इस युग में न तो अब कलम की ही जरूरत रह गई है और न ही कागज के विशाल गट्ठे की। अगर जरूरत है तो तकनीक और कौशल की जिसका इस्तेमाल कर आज व्यक्ति सडक किनारे पार्क में बैठे.बैठे या फिर रास्ते पर चलते फिरते भी अपनी बात दुनिया तक पहुंचा कर सूचना की सुनामी ला सकता है। विकीलीक्स के संपादक असांजे तो इस मामले में बहुत ही आगे है। वे स्वयं एक कंप्यूटर हैकर रह चुके हैं। गुप्त सूचनाएं हासिल करना और फिर लोगों तक पहुंचाकर तहलका मचाना उनका शगल रहा है। इसी जुनून को पूरा करने के लिए असांजे ने कंप्यूटर कोडिंग के कुछ महारथियों के साथ मिलकर २००६ में विकीलीक्स की स्थापना की। इनका मकसद कंप्यूटर हैकिंग द्वारा हासिल किए गए दस्तावेजों को जारी करना था। अपनी वेबसाइट विकीलीक्स के जरिए इराक.अफानिस्तान युध्द से संबंधित वॉर लॉग और अमेरिका से जुडे खुफिया दस्तावेजों को जारी कर जूलियन असांजे दुनिया भर में मशहूर हो गए है। दुनियाभर में इस वक्त उनके लाखों प्रशंसक हैं इसके साथ ही विश्व के कई देश अब उन्हें अपने रास्ते की रुकावट भी माने लगे हैं। अमेरिकी गुप्त सूचनाओं की सुनामी लाने के बाद अमेरिका के परम मित्र और सहयोगी कनाडाई प्रधानमंत्री के सलाहकार प्रोफेसर टॉम प्लेनेगन ने बौखलाहट में एक टीवी कार्यक्रम में खुलेआम ओबामा प्रशासन को सलाह दी है कि विकीलीक्स के संपादक असांजे को ड्रोन हमले या फिर किसी और तरीके से कत्ल कर इससे पीछा छुडाना चाहिए। दरअसल ये पश्चमी देशों का कोई नया चेहरा नहीं है। जब मीडिया उनके शत्रुओं की पोल खोलता है तब वे मीडिया की आजादी की बात करते हैए लेकिन जब वहीं मीडिया उनकी पोल खोलता है तो इस तरह की बौखलाहट सामने आती है। इराक युध्द में जब अल.जजीरा ने भी अमेरिका की बर्बरता की पोल खोली थी तो तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने दोहा स्थित अल.जजीरा के मुख्यालय पर हमला करने का फैसला किया थाए लेकिन बाद में ब्रिटिश पीएम टोनी ब्लेयर की सलाह पर इस फैसले को रद्द कर दिया गया।
विकीलीक्स के संपादक जो काम कर रहे है उसके क्या खतरे हैं इससे वे भली.भांति परिचित है और इन खतरों का सामना करने के लिए वे हर दम तैयार रहते हैं। खुद असांजे का दावा है कि वे यायावर जीवन जीते हैं। आमतौर पर उनके पास दो बैग रहते हैं। एक बैग में उनके कपडे और दूसरे में उनका कंप्यूटर यानी लैपटॉप होता है और खतरा पैदा होने पर वे अपने संसाधनों और टीमों को भी अलग.अलग जगह ले जाते हैंए ताकि कानूनी और आपराधिक हमलों से बचा जा सके । जहां भी उन्हें युध्द संबंधी सूचना मिलने की संभावना रहती है वे चल पडते हैं। असांजे के अलावा वेबसाइट को चलाने के लिए नौ सदस्यों की एक सलाहकार समिति भी है और दुनिया भर में करीब आठ सौ स्वयंसेवक सूचनाएं पहुंचाते हैं। जहां तक वेबसाइट की सूचनाओं के स्रोत का सवाल है तो कोई भी व्यक्ति इसे सूचना उपलब्ध करा सकता हैए लेकिन वेबसाइट में पत्रकारों और तकनीकी विशेषज्ञों की एक टीम अपने स्तर से जांच पडताल के बाद उसे प्रकाशित करती है। इसके बावजूद वेबसाइट को कई बार कानूनी चुनौतियों का भी सामना करना पडा है। साल २००८ में स्विस बैंक जूलियस बेयर ने वेबसाइट के खिलाफ मुकदमा जीत लिया था और अदालत ने वेबसाइट को बंद करने का फरमान जारी किया था। इसके बाद भी वेबसाइट विभिन्न नामों और विभिन्न लोगों के माध्यम से अपना काम करती रही। असांजे कहते है कि अब हम ये सब करना सीख गए हैं। उनका का दावा है कि आज तक हमने अपने किसी स्रोत को नहीं खोया है। इसके साथ ही गुप्त दस्तावेदों को भी सहेजने का उनका अनोखा तरीका है।
Courtsy: मो. इफ्तिखार अहमद

मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी ने लिखा था, खींचो न कमानों को न तलवार निकालो, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो। विकीलीक्स पोर्टल ने सुपर पॉवर अमेरिका को बगलें झांकने के लिए मजबूर कर एक बार फिर पत्रकारिता की ताकत का एहसास करा दिया है।

Monday 1 July 2013

फीचर

फीचर को अंग्रेजी शब्द फीचर के पर्याय के तौर पर फीचर कहा जाता है। हिन्दी में फीचर के लिये रुपक शब्द का प्रयोग किया जाता है लेकिन फीचर के लिये हिन्दी में प्रायः फीचर शब्द का ही प्रयोग होता है। फीचर का सामान्य अर्थ होता है – किसी प्रकरण संबंधी विषय पर प्रकाशित आलेख है। लेकिन यह लेख संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले विवेचनात्मक लेखों की तरह समीक्षात्मक लेख नही होता है।

फीचर समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाली किसी विशेष घटना, व्यक्ति, जीव – जन्तु, तीज – त्योहार, दिन, स्थान, प्रकृति – परिवेश से संबंधित व्यक्तिगत अनुभूतियों पर आधारित वह विशिष्ट आलेख होता है जो कल्पनाशीलता और सृजनात्मक कौशल के साथ मनोरंजक और आकर्षक शैली में प्रस्तुत किया जाता है। अर्थात फीचर किसी रोचक विषय पर मनोरंजक ढंग से लिखा गया विशिष्ट आलेख होता है।

फीचर के प्रकार

·          व्यक्तिपरक फीचर
·          सूचनात्मक फीचर
·          विवरणात्मक फीचर
·          विश्लेषणात्मक फीचर
·          साक्षात्कार फीचर
·          इनडेप्थ फीचर
·          विज्ञापन फीचर
·          अन्य फीचर

फीचर की विशेषतायें

·         किसी घटना की सत्यता या तथ्यता फीचर का मुख्य तत्व होता है। एक अच्छे फीचर को किसी सत्यता या तथ्यता पर आधारित होना चाहिये।
·         फीचर का विषय समसामयिक होना चाहिये।
·         फीचर का विषय रोचक होना चाहिये या फीचर को किसी घटना के दिलचस्प पहलुओं पर आधारित होना चाहिये।
·         फीचर को शुरु से लेकर अंत तक मनोरंजक शैली में लिखा जाना चाहिये।
·         फीचर को ज्ञानवर्धक, उत्तेजक और परिवर्तनसूचक होना चाहिये।
·         फीचर को किसी विषय से संबंधित लेखक की निजी अनुभवों की अभिव्यक्ति होनी चाहिये।
·         फीचर लेखक किसी घटना की सत्यता या तथ्यता को अपनी कल्पना का पुट देकर फीचर में तब्दील करता है।
·         फीचर को सीधा सपाट न होकर चित्रात्मक होना चाहिये।
·         फीचर कीभाषा सरल, सहज और स्पष्ट होने के साथ – साथ कलात्मक और बिंबात्मक होनी चाहिये।

फीचर लेखन की प्रक्रिया

·         विषय का चयन
·         सामग्री का संकलन
·         फीचर योजना

विषय का चयन

किसी भी फीचर की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह कितना रोचक, ज्ञानवर्धक और उत्प्रेरित करने वाला है। इसलिये फीचर का विषय समयानुकूल, प्रासंगिक और समसामयिक होना चाहिये। अर्थात फीचर का विषय ऐसा होना चाहिये जो लोक रुचि का हो, लोक – मानव को छुए, पाठकों में जिज्ञासा जगाये और कोई नई जानकारी दे।

सामग्री का संकलन

फीचर का विषय तय करने के बाद दूसरा महत्वपूर्ण चरण है विषय संबंधी सामग्री का संकलन। उचित जानकारी और अनुभव के अभाव में किसी विषय पर लिखा गया फीचर उबाऊ हो सकता है। विषय से संबंधित उपलब्ध पुस्तकों, पत्र – पत्रिकाओं से सामग्री जुटाने के अलावा फीचर लेखक को बहुत सामग्री लोगों से मिलकर, कई स्थानों में जाकर जुटानी पड़ सकती है।

फीचर योजना

फीचर से संबंधित पर्याप्त जानकारी जुटा लेने के बाद फीचर लेखक को फीचर लिखने से पहले फीचर का एक योजनाबद्ध खाका बनाना चाहिये।

फीचर लेखन की संरचना

·         विषय प्रतिपादन या भूमिका
·         विषय वस्तु की व्याख्या
·         निष्कर्ष

विषय प्रतिपादन या भूमिका

फीचर लेखन की संरचना के इस भाग में फीचर के मुख्य भाग में व्याख्यायित करने वाले विषय का संक्षिप्त परिचय या सार दिया जाता है। इस संक्षिप्त परिचय या सार की कई प्रकार से शुरुआत की जा सकती है। किसी प्रसिद्ध कहावत या उक्ति के साथ, विषय के केन्द्रीय पहलू का चित्रात्मक वर्णन करके, घटना की नाटकीय प्रस्तुति करके, विषय से संबंधित कुछ रोचक सवाल पूछकर।  मिका का आरेभ किसी भी प्रकार से किया जाये इसकी शैली रोचक होनी चाहिये मुख्य विष्य का परिचय इस तरह देना चाहिये कि वह पूर्ण भी लगे लेकिन उसमें ऐसा कुछ छूट जाये जिसे जानने के लिये पाठक पूरा फीचर पढ़ने को बाध्य हो जाये।

विषय वस्तु की व्याख्या

फीचर की भूमिका के बाद फीचर के विषय या मूल संवेदना की व्याख्या की जाती है। इस चरण में फीचर के मुख्य विषय के सभी पहलुओं को अलग – अलग व्याख्यायित किया जाना चाहिये। लेकिन सभी पहलुओं की प्रस्तुति में एक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष क्रमबद्धता होनी चाहिये। फीचर को दिलचस्प बनाने के लिये फीचर में मार्मिकता, कलात्मकता, जिज्ञासा, विश्वसनीयता, उत्तेजना, नाटकीयता आदि का समावेश करना चाहिये।

निष्कर्ष

फीचर संरचना के इस चरण में व्याख्यायित मुख्य विषय की समीक्षा की जाती है। इस भाग में फीचर लेखक अपने ऴिषय को संक्षिप्त रुप में प्रस्तुत कर पाठकों की समस्त जिज्ञासाओं को समाप्त करते हुये फीचर को समाप्त करता है। साथ ही वह कुछ सवालों को पाठकों के लिये अनुत्तरित भी छोड़ सकता है। और कुछ नये विचार सूत्र पाठकों से सामने रख सकता है जिससे पाठक उन पर विचार करने को बाध्य हो सके।

फीचर संरचना से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण पहलू

शीर्षक

किसी रचना का यह एक जरुरी हिस्सा होता है और यह उसकी मूल संवेदना या उसके मूल विषय का बोध कराता है। फीचर का शीर्षक मनोरंजक और कलात्मक होना चाहिये जिससे वह पाठकों में रोचकता उत्पन्न कर सके।

छायाचित्र

छायाचित्र होने से फीचर की प्रस्तुति कलात्मक हो जाती है जिसका पाठक पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। विषय से संबंधित छायाचित्र देने से विषय और भी मुखर हो उठता है। साथ ही छायाचित्र ऐसा होना चाहिये जो फीचर के विषय को मुखरित करे फीचर को कलात्मक और रोचक बनाये तथा पाठक के भीतर विषय की प्रस्तुति के प्रति विश्वसनीयता बनाये।

भारतीय प्रेस परिषद्

भारतीय प्रेस परिषद (Press Council of India) एक संविघिक स्वायत्तशासी संगठन है जो प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करने व उसे बनाए रखने, जन अभिरूचि का उच्च मानक सुनिश्चित करने से और नागरिकों के अघिकारों व दायित्वों के प्रति उचित भावना उत्पन्न करने का दायित्व निबाहता है। सर्वप्रथम इसकी स्थापना ४ जुलाई, सन् १९६६ को हुई थी।
अध्यक्ष परिषद का प्रमुख होता है जिसे राज्यसभा के सभापति, लोकसभा अघ्यक्ष और प्रेस परिषद के सदस्यों में चुना गया एक व्यक्ति मिलकर नामजद करते हैं। परिषद के अघिकांश सदस्य पत्रकार बिरादरी से होते हैं लेकिन इनमें से तीन सदस्य विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, बार कांउसिल आफ इंडिया और साहित्य अकादमी से जुड़े होते हैं तथा पांच सदस्य राज्यसभा व लोकसभा से नामजद किए जाते हैं - राज्य सभा से दो और लोकसभा से तीन।
प्रेस परिषद, प्रेस से प्राप्त या प्रेस के विरूद्ध प्राप्त शिकायतों पर विचार करती है। परिषद को सरकार सहित किसी समाचारपत्र, समाचार एजेंसी, सम्पादक या पत्रकार को चेतावनी दे सकती है या भर्त्सना कर सकती है या निंदा कर सकती है या किसी सम्पादक या पत्रकार के आचरण को गलत ठहरा सकती है। परिषद के निर्णय को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
काफी मात्रा में सरकार से घन प्राप्त करने के बावजूद इस परिषद को काम करने की पूरी स्वतंत्रता है तथा इसके संविघिक दायित्वों के निर्वहन पर सरकार का किसी भी प्रकार का नियंत्रण नहीं है।

इतिहास

सन् १९५४ में प्रथम प्रेस आयोग ने प्रेस परिषद् की स्थापना की अनुशंशा की।
पहली बार ४ जुलाई, सन् १९६६ को स्थापित
सन् ०१ जनवरी, १९७६ को आन्तरिक आपातकाल के समय भंग
सन् १९७८ में नया प्रेस परिषद अधिनियम लागू
सन् १९७९ में नए सिरे से स्थापित

प्रेस परिषद् अधिनियम, १९७८

प्रेस परिषद् की शक्तियाँ निम्नानुसार अधिनियम की धारा 14 और 15 में दी गई हैं ।
परिषद् की निधि
अधिनियम में दिया गया है कि परि¬षद, अधिनियम में अंतर्गत अपने कार्य करने के उद्देश्य से, पंजीकृत समाचारत्रों और समाचार एजेंसियों से निर्दि¬ट दरों पर उद्ग्रहण शुल्क ले सकती है। इसके अतिरिक्त, केन्द्रीय सरकार, द्वारा परिषद् को अपने कार्य करने के लिये, इसे धन, जैसाकि केन्द्रीय सरकार आवश्यक समझे, देने का व्यादेश दिया गया है।

परिषद् की शक्तियाँ


  • परिनिंदा करने की शक्ति: जहाँ परिषद् को, उससे किए गए परिवाद के प्राप्त होने पर या अन्यथा, यह विश्वास करने का कारण हो कि किसी समाचारपत्र या सामाचार एजेंसी ने पत्रकारिक सदाचार या लोक-रूचि के स्तर का अतिवर्तन किया है या किसी सम्पादक या श्रमजीवी पत्रकार ने कोई वृत्तिक अवचार किया है, वहां परिषद् सम्बद्ध समाचारत्र या समाचार एजेंसी, सम्पादक या पत्रकार को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात उस रीति से जाँच कर सकेगी जो इस अधिनियम के अधीन बनाए गये विनियमों द्वारा उपबन्धित हो और यदि उसका समाधान हो जाता है कि ऐसा करना आवश्यक है तो वह ऐसे कारणों से जो लेखवद्ध किये जायेंगे, यथास्थिति उस समाचारपत्र, समाचार एजेंसी, सम्पादक या पत्रकार को चेतावनी दे सकेगी, उसकी भर्त्सना कर सकेगी या उसकी परिनिंदा कर सकेगी या उस संपादक या पत्रकार के आचरण का अनुमोदन कर सकेगी, परंतु यदि अध्यक्ष की राम में जाँच करने के लिए कोई पर्याप्त आधार नहीं है तो परिषद् किसी परिवाद का संज्ञान नहीं कर सकेगी।
  • यदि परिषद् की यह राय है कि लोकहित् में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है तो वह किसी समाचारपत्र से यह अपेक्षा कर सकेगी कि वह समाचारपत्र या समाचार एजेंसी, संपादक या उसमें कार्य करने वाले पत्रकार के विरूद्ध इस धारा के अधीन किसी जाँच से संबंधित किन्हीं विशि¬टयों को, जिनके अंतर्गत उस समाचारपत्र, समाचार एजेंसी, सम्पादक या पत्रकार का नाम भी है उसमें ऐसी नीति से जैसा परिषद् ठीक समझे प्रकाशित करे।
  • उपधारा 1, की किसी भी बात से यह नहीं समझा जायेगा कि वह परिषद् को किसी ऐसे मामले में जाँच करने की शक्ति प्रदान करती है जिसके बारे में कोई कार्रवाई किसी न्यायालय में लम्बित हो।
  • यथास्थिति उपधारा 1, या उपधारा 2, के अधीन परिषद् का विनिश्चय अंतिम होगा और उसे किसी भी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जायेगा।

परिषद् की साधारण शक्तियाँ

इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों के पालन या कोई जाँच करने के प्रयोजन के लिए परिषद् को निम्नलिखित बातों के बारे में संपूर्ण भारत में वे ही शक्तियाँ होंगी जो वाद का विचारण करते समय
1908 का 5, सिविल न्यायालय में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अधीन निहित हैं, अर्थात-

  • क, व्यक्तियों को समन करना और हाजिर कराना तथा उनकी शपथ पर परीक्षा करना,
  • ख, दस्तावेजों का प्रकटीकरण और उनका निरीक्षण,
  • ग, साक्ष्य का शपथ कर लिया जाना,
  • घ, किसी न्यायालय का कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रतिलिपियों की अध्यपेक्षा करना,
  • ड़, साक्षियों का दस्तावेज की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना,
  • च, कोई अन्य विषय जो विहित जाए।


  1. उपधारा 1, की कोई बात किसी समाचारपत्र, समाचार एजेंसी, संपादक या पत्रकार को उस समाचारपत्र द्वारा प्रकाशित या उस समाचार एजेंसी, संपादक या पत्रकार द्वारा प्राप्त रिपोर्ट किये गये किसी समाचार या सूचना का स्रोत प्रकट करने के लिए विवश करने वाली नहीं समझी जायेगी।
  2. परिषद् द्वारा की गयी प्रत्येक जाँच भारतीय दंड संहिता की धारा 193 और 228 के अर्थ में न्यायिक कार्यवाही समझी जायेगी।
  3. यदि परिषद् अपने उद्देश्यों को क्रियान्वित करने के प्रयोजन के लिए या अधिानियम के अधीन अपने कृत्यों का पालन करने के लिए आवश्यक समझती है तो वह अपने किसी विनिश्चय में या रिपोर्ट में किसी प्राधिकरण के, जिसके अन्तर्गत सरकार भी है, आचरण के संबंध में ऐसा मत प्रकट कर सकेगी जो वह ठीक समझे। शिक्षाविदों की विशि¬ट मंडली द्वारा संवारा गया है। उच्चतम न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश न्यायामूर्ति श्री जे. आर. मधोलकर, पहले अध्यक्ष थे जिन्होंने 16 नवंबर, 1966 से 1 मार्च, 1968 तक परिषद् की अध्यक्षता की। इसके पश्चात न्यायामूर्ति श्री एन. राजगोपाला अय्यनगर 4 मई, 1968 से 1 जनवरी, 1976 तक, न्यायामूर्ति श्री एन. एन. ग्रोवर 3 अप्रैल, 1979 से 9 अक्टूबर, 1985 तक, न्यायामूर्ति श्री एन. एन. सेन 10 अक्टूबर, 1985 से 18 जनवरी, 1989 तक और न्यायामूर्ति श्री आर. एस. सरकारिया 19 जनवरी, 1989 से 24 जुलाई, 1995 तक और श्री पी. बी. सार्वेत 24 जुलाई, 1995 से अब तक परिषद् के अध्यक्ष रहे हैं। ये उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश थे। इन सभी ने परिषद् के दर्शन और कार्यों में गहन वचनवद्धता के साथ, परिषद् का मार्गदर्शन किया। परिषद् इनसे निर्देश पाकर, इनके ज्ञान और बुद्धि से अत्यधिक लाभान्वित हुई।

Sunday 30 June 2013

संचार

संचार एक तकनीकी शब्द है जो अंग्रेजी के कम्यूनिकेशन का हिन्दी रूपांतरण है। इसका अर्थ होता है, किसी सूचना या जानकारी को दूसरों तक पहुंचाना। इसके माध्यम से मनुष्य के सामाजिक संबंध बनते और विकसित होते हैं। मानवीय समाज की समस्त प्रक्रिया संचार पर आधारित है। इसके बिना मानव नहीं रह सकता। प्रत्येक मनुष्य अपनी जाग्रतावस्था में संचार करता है अर्थात बोलने सुनने सोचने देखने पढ़ने लिखने या विचार विमर्श में अपना समय लगाता है। जब मनुष्य अपने हाव भाव संकेतों और वाणी के माध्यम से सूचनाओं का आदान प्रदान करता है तो वह संचार कहलाता है।

संचार की परिभाषा

· संकेतों द्वारा होने वाला संप्रेषण संचार है – लुडबर्ग
· मनुष्य के कार्यक्षेत्र विचारों व भावनाओं के प्रसारण व आदान प्रदान की प्रक्रिया संचार है - लीलैंड ब्राउन
· संचार एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को भेजे गये संदेश के संप्रेषण की प्रक्रिया है - डैनिस मैक कवैल
· संचार समानुभूति का विनिमय है – कौफीन और शाँ
· संचार वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सूचना व संदेश एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचे – थीयो हैमान

संचार प्रक्रिया

संचार प्रक्रिया में संदेश भेजने वाला प्रेषक कहलाता है और संदेश प्राप्त करने वाला प्राप्तकर्ता। दोनों के बीच एक माध्यम होता है जिसके सहयोग से प्रेषक का संदेश प्राप्तकर्ता के पास पहुंचता है। प्राप्तकर्ता के दिल दिमाग पर प्रभाव डालता है जिससे सामाजिक सरोकारों में बदलाव आता है। देश तथा विदेश में मनुष्य की दस्तकें बढ़ती है इसलिये संचार प्रक्रिया का पहला चरण प्रेषक होता है। इसे इनकोडिंग भी कहते है । इनकोडिंग के बाद विचार सार्थक संदेश के रूप में ढल जाता है। जब प्राप्तकर्ता अपने मस्तिक में उक्त संदेश को ढाल लेता है तो संचार की भाषा में डीकोडिंग कहतें हैं। डीकोडिंग के बाद प्राप्तकर्ता उस संदेश का अर्थ समझता है। वह अपनी प्रतिक्रिया प्रेषक को भेजता है। तो उस प्रक्रिया को फीडबैक कहतें हैं।

संचार के कार्य

संचार प्रक्रिया निम्नलिखित कार्यों को संपंन करती है –
· सूचना या जानकारी देना ।
· संचार से जुड़े व्यक्तियों को प्रेरित और प्रभावित करना।
· संचार व्यक्तियों समाजों और देशों के बीच संबंध स्थापित करता है।
· संचार विभिन्न तथ्यों विचारों मसलों पर व्यापक विचार विमर्श करने में सहायक होता है।
· मनुष्यों का मनोरंजन करना संचार का एक महत्वपूर्ण कार्य है।
· संचार राष्ट्र की आर्थिक व औद्योगिक उन्नति में सहायक होता है।

संचार के प्रकार: 

अंत:व्यक्तिक संचार

यह एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसकी परिधि में स्वंय व्यक्ति होता है। मनुष्य अपने अनुभवों घटनाओं व्यक्तियों प्रभावों एवं परिणामों का आकलन करता है। संदेश प्राप्त करने वाला और संदेश भेजने वाला स्वंय ही होता है। आत्मक विश्लेषण आत्मविवेचन आत्मप्रेरणा आदि इसी प्रकार के संचार कहलाते हैं। अर्थात दूसरे शब्दों में कह सकते है जब एक व्यक्ति अकेला अपने आप से बात करता है तो उसे स्वगत संचार कहा जाता है। क्योंकि वह स्वयं से ही संचार करता है।

अंतरवैयक्तिक संचार

जब व्यक्ति एक दूसरे बातचीत करता है तो उसे अंतरवैयक्तिक संचार कहते हैं। बातचीत सामने बैठकर टेलीफोन मोबाइल पेजर संगीत चित्र ड्रामा लोककला इत्यादि से हो सकती है। इस संचार प्रक्रिया में संदेशों का प्रेषण मौखिक भी हो सकता है और स्पर्श मुस्कुराहट आदि से भी। इसमें प्रतिपुष्टि तुरंत हो सकती है। संदेश प्रेषक और संदेश ग्राहक की निकटता इस प्रकार के संचार की सबसे बड़ी विशेषता मानी जाती है।
अंतरवैयक्तिक संचार दुतरफा प्रक्रिया है अर्थात स्त्रोता संदेश प्राप्त करते ही प्रतिक्रया देता है। यह संचार प्रक्रिया गतिशील होता है।

समूह संचार

जब व्यक्तियों का समूह आमने सामने बैठकर विचार विमर्श, विचार गोष्ठी वाद विवाद कार्य शिविर सार्वजनिक व्याख्यान इंटरव्यू आदि करता है तो उसे समूह संचार कहते है। यह बहुत प्रभावशाली होता है। क्योंकि इसमें वक्ता को अपने अपने क्षेत्र में अभिव्यक्ति का अवसर मिलता है। स्कूल कॉलेज प्रशिक्षण केन्द्र चौपाल रंगमंच कमेटी हॉल जैसे प्रमुख स्थानों पर संचार गतिशील होता । दूसरे शब्दों में समूह संचार उन व्यक्तियों के बीच संभव है जो किसी उद्देश्य के लिये अमुख स्थान पर एकत्र होते हैं।

जन संचार

जनसंचार का अर्थ विस्तृत आकार के बिखरे हुये समूह तक संचार माध्यमों द्वारा संदेश पहुंचाना है। पर इस प्रकार के संचार में भी किसी न किसी माध्यम की आवश्यकता होती है। रेडियो टेलीविजन टेपरिकार्डर फिल्म वीडियो कैसेट सीडी के अलावा समाचारपत्र पत्रिकायें पुस्तकें पोस्टर इत्यादि इसके माध्यम कहलाते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य बहुत विशाल है इसे किसी परिधि में रखना कठिन है। वर्तमान समाज में जनसंचार का कार्य सूचना प्रेषण विश्लेषण ज्ञान एवं मुल्यों का प्रसार तथा मनोरंजन करना है।

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